महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा ‘जेलों में महिलाएं’ विषय पर रिपोर्ट जारी
केंदीय महिला और बाल विकासमंत्री मेनका गांधी ने गृह मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट
अधिकतम सजा का एक तिहाई समय जेल में बिताने वाली महिलायें हो सकती हैं रिहा
सुभाष चौधरी /प्रधान सम्पादक
नई दिल्ली : वह दिन दूर नहीं जब भारत की जेलों में महिला कैदियों के लिए विशेष प्रबंध देखने को मिलेंगे. इसे अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार किये जाने की सिफारिश केंदीय महिला और बाल विकास मंत्रालय की ओर से की गयी है. मंत्रालय की ओर से देश की ‘जेलों में महिलाएं’ विषय पर एक रिपोर्ट जारी की गयी है. इसका उद्देश्य महिला बंदियों के विभिन्न अधिकारों के बारे में समझदारी कायम करना है. साथ उनकी समस्याओं पर विचार करना और उनका संभव समाधान करने पर बल दिया गया है। इस रिपोर्ट में 134 सिफारिशें की गई हैं, ताकि जेल में बंद महिलाओं के जीवन में सुधार लाया जा सके। गर्भधारण तथा जेल में बच्चे का जन्म, मानसिक स्वास्थ्य, कानूनी सहायता, समाज के साथ एकीकरण और उनकी सेवाभाव जिम्मेदारियों पर विचार के लिए ये सिफारिशें की गई हैं। रिपेार्ट में राष्ट्रीय आदर्श जेल मैन्युअल 2016 में विभिन्न परिवर्तन का सुझाव दिया गया है ताकि इसे अंतर्राष्टीय मानकों के अनुरूप बनाया जा सके।
रिपोर्ट के बारे में महिला और बाल विकास मंत्री मेनका संजय गांधी ने कहा कि इस पहल से महिला बंदियों के प्रति जेल प्रशासन की धारणा बदलेगी।
रिपोर्ट की विशेषताएं :-
- रिपोर्ट में महिला बंदियों की अनेक समस्याओं को कवर किया गया है और इसमें बुजुर्गों तथा दिव्यांग लोगों की आवश्यकताओं को शामिल किया गया है। रिपोर्ट में न केवल गर्भवती महिलाओं की आवश्यकताओं पर बल दिया गया है बल्कि उन महिलाओं पर भी विचार किया गया है जिन्होंने हाल में बच्चे को जन्म दिया गया है लेकिन उनके बच्चे जेल में उनके साथ नहीं हैं।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि जेल में बंद करने से पहले सेवा देखभाल जिम्मेदारी वाली महिलाओं को अपने बच्चों को प्रबंध करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
- रिपोर्ट में उन विचाराधीन महिला कैदियों को जमानत देने की सिफारिश की गई है जिन्होंने अधिकतम सजा का एक तिहाई समय जेल में बिताया है। ऐसा कानूनी प्रक्रिया संहिता के अनुच्छेद 436 ए में आवश्यक परिवर्तन करके किया जा सकता है। इस अनुच्छेद में अधिकतम सजा की आधी अवधि पूरी करने पर रिहाई का प्रावधान है।
- प्रसव पश्चात के चरणों में महिलाओं की आवश्यकताओं पर विचार करते हुए रिपोर्ट में माताओं के लिए बच्चा जन्म देने के बाद पृथक आवासीय व्यवस्था की सिफारिश की गई है, ताकि साफ-सफाई का ध्यान रखा जा सके और नवजात शिशु को संक्रमण से बचाया जा सके।
- कानूनी सहायता को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए रिपोर्ट में कहा गया है कि कानूनी विचार-विमर्श गोपनीयता के साथ और बिना सेंसर के किया जाना चाहिए।
- समाज में महिलाओं का फिर से एकीकरण गंभीर समस्या है क्योंकि जेल में बंद होने से महिलाओं पर धब्बा लगता है। महिला और बाल विकास मंत्रालय के एक अध्ययन में पाया गया है कि जेल में बंद महिलाओं को उनके परिवारों द्वारा छोड़ दिया गया है।
- रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश की गई है कि जेल अधिकारी स्थानीय पुलिस के साथ यह सुनिश्चित करने के लिए समन्वय करें, कि महिला बंदी रिहाई के बाद प्रड़ताडि़त न हों। बंदी महिलाओं को मताधिकार देने की सिफारिश की गई है।
- जेलों में शिकायत समाधान व्यवस्था अपर्याप्त है और इस व्यवस्था में दुरूपयोग और बदले की भावना से काम करने की गुंजाइश बनी हुई है। इस तरह एक मजबूत शिकायत निवारण प्रणाली बनाने की आवश्यकता महसूस की गई।
- बंदियों की मानसिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए रिपेार्ट में सिफारिश की गई है कि कम से कम साप्ताहिक आधार पर बंदियों का संपर्क महिला काउंसिलरों और महिला मनोवैज्ञानिकों से हो सके।
- यह सामान्य रूप से ज्ञात है कि जेल में बंद महिलाओं को अपने पुरूष बंदियों की तुलना में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनकी बंदी से उन पर सामाजिक धब्बा लगता है क्योंकि महिला बंदी वित्तीय रूप से अपने परिवारों और पतियों पर निर्भर करती हैं। ऐसी कठिनाईयां और बढ़ जाती हैं जब महिला बंदियों के बच्चे होते हैं।
बताया जाता है कि यह रिपोर्ट गृह मंत्रालय के साथ साझा की जाएगी ताकि गृह मंत्रालय रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को लागू करने के लिए राज्य को परामर्श जारी कर सके।