घोटालेबाजों पर शिकंजा कसने के लिए नए कानून को मोदी मंत्रिमंडल की मंजूरी

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अब अदालत की अनुमति के बगैर भी हो सकेगी संपत्ति जब्त 

भगौड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक, 2018 संसद में पेश करने का रास्ता साफ़ 

 

सुभाष चौधरी/प्रधान संपादक 

नई दिल्ली : देश में बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों  में करोड़ों का घोटाला करने वालों पर त्वरित शिकंजा कसने और गबन की राशि वसूलने के लिए उनकी संपत्ति तत्काल जब्त कर बेचने की अनुमति सम्बन्धी कानून बनाने का रास्ता अब साफ हो गया है . प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने संसद में भगौड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक, 2018 को रखने के वित्‍त मंत्रालय के प्रस्‍ताव को अनुमति प्रदान कर दी है। इस विधेयक में अदालतों की अनुमति के विना भी कार्रवाई के प्रावधान किया गए है. इससे कानूनी प्रक्रिया से बचने वाले घोटालेबाजों पर अंकुश लगाना संभव होगा.

इस कानून के अंतर्गत कुल 100 करोड़ रुपए या इससे अधिक पैसे का घोटाला करने वाले अपराधियों पर कार्रवाई हो सकेगी . 

 

इस कानून का क्या होगा असर :

इस विधेयक से भगौड़ा आर्थिक अपराधियों के संबंध में त्वरित कार्रवाई की संभावना है क्‍योंकि इससे उन्‍हें भारत वापस आने के लिए बाध्‍य किया जाएगा.  वे सूचीबद्ध अपराधों का कानूनी सामना करने के लिए बाध्‍य होंगे। इससे ऐसे भगौड़ा आर्थिक अपराधियों द्वारा की गई वित्‍तीय चूकों में अंतर्विष्‍ट रकम वसूल करने में बैकों व अन्‍य वित्‍तीय संस्‍थओं को भी मदद मिलेगी.  घोटाले पर अंकुश लगेगा और ऐसी संस्‍थाओं की वित्तीय स्‍थिति में सुधार होगा।

 उम्मीद है कि भगौड़े अपराधियों द्वारा भारत और विदेशों में उनकी संपत्‍तियों को तेजी से जब्‍त करने के लिए उन्‍हें भारत लौटने और सूचीबद्ध अपराधों के संबंध में कानून का सामना करने के लिए भारतीय न्‍यायालयों के समक्ष पक्ष रखने के लिए एक विशेष तंत्र का सृजन हो सकेगा।

 

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विधेयक की मुख्‍य-मुख्‍य बातें : 

  • किसी व्‍यक्‍ति के भगौड़ा आर्थिक अपराधी घोषित होने पर विशेष न्‍यायालय के समक्ष आवेदन करना
  • अपराध के जरिए भगौड़ा आर्थिक के रूप में घोषित व्‍यक्‍ति की संपत्‍ति को जब्‍त करना
  • भगौड़ा आर्थिक अपराधी होने के आरोपित व्‍यक्‍ति को विशेष न्‍यायालय द्वारा नोटिस जारी करना
  • अपराध के फलस्‍वरूप व्‍युतपन्‍न संपत्‍ति के चलते भगौड़ा आर्थिक अपराधी घोषित किए गए व्‍यक्‍ति की संपत्‍ति को जब्‍त करना
  • ऐसे अपराधी की बेनामी संपत्‍ति सहित भारत और विदेशों में अन्‍य संपत्‍ति को जब्‍त करना
  • भगौड़े आर्थिक अपराधी को किसी सिविल दावे का बचाव करने से अपात्र बनाना, और
  • अधिनियम के अंतर्गत जब्‍त की गई संपत्‍ति के प्रबंधन व निपटान के लिए एक प्रशासन की नियुक्‍ति की जाएगी।
  • ऐसे मामले में जहां किसी व्‍यक्‍ति के भगौड़ा घोषित होने के पूर्व किसी भी समय कार्यवाही की प्रक्रिया के समानांतर भगौड़ा आर्थिक अपराधी भारत लौट आता है और सक्षम न्‍यायालय के समक्ष पेश होता है, तो उस स्‍थिति में प्रस्‍तावित अधिनियम के अंतर्गत कनूनन कार्यवाही रोक दी जाएगी।
  • सभी आवश्‍यक संवैधानिक रक्षा उपाय जैसे अधिवक्‍ता के माध्यम से व्‍यक्‍ति को सुनवाई का अवसर, उत्‍तर दाखिल करने के लिए समय प्रदान करना, उसे भारत अथवा विदेश में समन भिजवाना तथा उच्‍च न्‍यायालय में अपील करने जैसे प्रावधान किए गए हैं। इसके अलावा, कानूनी प्रावधानों के अनुपालन में संपत्‍ति के प्रबंधन व निपटान के लिए प्रशासन की नियुक्‍ति का भी प्रावधान किया गया है।

नीति का क्रियान्‍वयन व लक्ष्‍य :

वर्तमान कानूनों में व्‍याप्‍त कमियों के परिहार व भारतीय न्‍यायलों के कार्यक्षेत्र से बाहर रहकर भारतीय कानूनों की प्रक्रिया से बचने वाले आर्थिक अपराधियों की प्रवृत्‍ति के निरोधात्‍मक तय करने के दृष्‍टिगत, यह विधेयक प्रस्‍तावित किया जा रहा है। इस विधेयक में किसी व्‍यक्‍ति को भगौड़ा आर्थिक अपराधी के रूप में घोषित करने के लिए इस विधेयक में एक न्‍यायालय (धन-शोधन रोकथाम अधिनियम, 2002 के अंतर्गत विशेष न्‍यायालय) का प्रावधान किया गया है। भगौड़ा आर्थिक अपराधी से एक ऐसा व्‍यक्‍ति अभिप्रेत है, जिसके विरूद्ध किसी सूचीबद्ध अपराध के संबंध में गिरफ्तारी का वारंट जारी किया जा चुका है और जिसने आपराधिक कार्यवाही से बचने के लिए भारत छोड़ दिया है अथवा विदेश में रह रहा है और आपराधिक अभियोजन का समाना करने के लिए भारत लौटने से इंकार कर रहा है। आर्थिक अपराधों की सूची को इस विधेयक की तालिका में अंतर्विष्‍ट किया गया है। इसके अलावा, यह सुनिश्‍चित करने के लिए कि ऐसे मामले में न्‍यायालयों पर कार्य का ज्‍यादा भार न पड़े, केवल उन्‍हीं मामलों की इस विधेयक की परिसीमा में लाया गया है, जहां ऐसे अपराधों में कुल 100 करोड़ रुपए या अधिक की राशि अन्‍तर्विष्‍ट हो।

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पृष्‍ठभूमि:

आर्थिक अपराधियों के ऐसे अनेक मामले घटित हुए हैं जहां भारतीय न्‍यायालयों को न्‍याय क्षेत्र से भागने, आपराधिक मामलों के शुरूआत की प्रत्‍याशा अथवा मामले अथवा आपराधिक कार्यवाही को लंबित करने के दौरान आर्थक अपराधी भाग निकला है। भारतीय न्‍यायालयों के ऐसे अपराधियों की अनुपस्‍थिति का कारण अनेक विषय परिस्‍थितियां उत्‍पन्‍न हुई हो, जैसे प्रथमत: इससे आपराधिक मामलों में जांच रूक सी जाती है, दूसरे, इससे न्‍यायालयों का मूल्‍यवान समय बर्बाद होता है, तीसरे, इससे भारत में कानून के राज का अवमूल्‍यन होता है। इसके अलावा, आर्थिक अपराध के अधिकांश ऐसे मामलों में बैंक ऋणों की गैर-अदायगी शामिल होती है, जिससे भारत के बैंकिंग क्षेत्र की वित्तीय स्‍थिति बदतर हो जाती है। इस समस्‍या की गंभीरता से निपटने के लिए कानून के वर्तमान सिविल और आपराधिक प्रावधान पूर्णत: पर्याप्‍त नहीं हैं। अतएव, ऐसी कार्यवाहियों की रोकथाम सुनश्‍चित करने के लिए प्रभावी, तीव्रतम और संवैधानिक दृष्‍टि में मान्‍य प्रावधान किया जाना आवश्‍यक समझा गया है।

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यहां उल्‍लेखनीय है कि भ्रष्‍टाचार से संबंधित मामलों में गैर-दोषसिद्धि-आधारित संपत्‍ति के जब्‍त करने की प्रवृत्‍ति अपराध के प्रति यूनाइटेड नेशन्‍स कन्‍वेंशन (भारत द्वारा 2011 में मान्‍य) से अनुसमर्थित है। विधेयक में इसी सिद्धांत को अंगीकार किया गया है। उपरोक्‍त संदर्भ के मद्देनजर, सरकार द्वारा बजट 2017-18 में यह घोषणा की गई थी कि सरकार विधायी संशोधन लाने अथवा जब तक ऐसे अपराधी समुचित विधि न्‍यायालय मंच के समक्ष समर्पण नहीं करता, ऐसे अपराधियों की संपत्‍ति को जब्‍त करने के लिए नया कानून तक लाया जाएगा।

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