केन्द्र्य कृषि मंत्री के नाम खुला पत्र

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केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए आपका शुक्रगुजार, पर सत्याग्रह शताब्दी वर्ष में चंपारण में एम्स के लिए पहल जरुरी!

माननीय कृषि मंत्री जी को खुला पत्र

कुणाल प्रताप सिंह

माननीय मंत्री जी,
मोदी मंत्रालय के वरिष्ठ मंत्रियों में शुमार किये जाने वाले केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह जी सर्वप्रथम मोतिहारी में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना में आपकी अहम भूमिका के लिए आपकी जितनी तारीफ की जाये कम होगी। आपने विश्वविद्यालय में परिवहन सुविधा की बहाली के लिए अपने कोष से एक करोड़ की राशि निर्गत की। साथ ही विश्वविद्यालय के लिए जमीन मिलने के बाद कृषि अनुशंधान केंद्र व विभाग की स्थापना की प्रतिबद्धता दुहरायी। यह आपके विकसोन्मुखी सोच का परिचायक है।

लेकिन कार्यक्रम में आप अपने विरोधियों के व्यवहार से खासे आहत दिखे। पूरे संबोधन में यह फैक्टर इतना हावी रहा कि विरोधियों को काउंटर करने में ही आधा से अधिक समय व ऊर्जा जाया किया। आपकी पीड़ा को देखते हुए आपसे उम्र में कम केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने आपको अपना काम करते रहने की नसीहत दे डाली। जावड़ेकर ने कहा कि अच्छा काम करने निकलने पर कई बार लोग पत्थर मारते है। महात्मा फुले और ज्योतिबा फुले के अलावा जयप्रकाश नारायण को लोगों ने लाठी व पत्थर मारा। इतिहास के इन तथ्यों को कौन नहीं जानता। लेकिन संच पूछिये तो आपके जैसे वरिष्ठ मंत्री को जावड़ेकर का यह उपदेश देना हम चंपारंणवासियों को ठीक नहीं लगा।

वैसे विरोधियों का प्रभाव हो या कोई और वजह रही हो, लेकिन संबोधन के क्रम में आपकी जुबान भी थोड़ी लड़खड़ा गयी। और आपने पूर्व मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी को प्रधानमंत्री बना डाला तो यूजीसी के बजाय यूसीजी बोल गए।

दरअसल आपकी पीड़ा यह थी कि चाहे सरकार किसी की रही, विश्वविद्यालय की स्थापना में हुई विलम्ब के लिये हरबार कठघरे में आपको खड़ा किया जाता रहा। विरोधियों ने आपके खिलाफ ही कैंडल मार्च निकाला। मंत्री जी आपकी पीड़ा से हम इतेफाक रखते है। आपका इस बात पर दुखी होना उचित है कि 2014 में मोदी सरकार के गठन के बाद पहली कैबिनेट मीटिंग में इस प्रस्ताव को मंजूरी दिलाने के बाद भी आपकी आलोचना होती रही। दिसम्बर 14 तक संसद के दोनों सदनों से यह अध्यादेश पारित होने के बाद राष्ट्रपति ने भी इस पर मुहर लगा दी। लेकिन कुलपति की नियुक्ति से लेकर विश्वविद्यालय खोले जाने की तमाम प्रक्रिया में समय लगा।

अब आपको इतना तो पता ही होगा कि कैंडल मार्च निकालनेवलों लोगों को आपके जैसे संसदीय जीवन का कोई अनुभव नहीं है। वो सड़क के लोग है। इस प्रणाली की पेचीदगियों की सूक्ष्म जानकारी उन्हें नहीं है। सो विश्वविद्यालय खुलने में विलम्ब होने पर उन्हें जरूर लगा होगा कि काँग्रेस की तरह मोदी सरकार भी गोला दे रही है। लिहाजा सरकार के कैबिनेट मंत्री व इलाके के जनप्रतिनिधि होने के नाते आप पर लोगों का गुस्सा होना स्वाभाविक था। हो सकता है इसमें आपके विरोधी भी हवा देते हो। लेकिन जनता रिजल्ट खोजती है, प्रक्रिया जानने की सब्र उसमे नहीं होती है।

आपका यह कथन बिलकुल जायज है कि कैंडल मार्च निकालनेवाले केंद्रीय विद्यालय व केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए जल्द जमीन नहीं मिलने पर क्यों नहीं मार्च निकलते है? जबकि इसके निर्माण के लिए बजट की राशि केंद्र सरकार कब की उपलब्ध करा चुकी है।

बीच सभा में बैनर दिखाकर मोतिहारी में एम्स की मांग करनेवाले किसी संगठन का मजाक उड़ाना भी आपके जैसे कद्दावर नेता के गरिमा के अनुरूप नहीं लगा। आपने नाराजगी प्रकट करते हुए कहा कि ये लोग देश की राजधानी व यूएनओ की मुख्यालय भी मोतिहारी स्थापित करने की मांग कर सकते है। ये वही लोग है जो किसी राजनितिक दल या किसी संसथान में नौकरी करते हुए आगे नहीं बढ़ पाये तो अपनी एक दुकान खोल ली है।

कपिल सिब्बल की राह पर तो नहीं जा रहे आप ?

लेकिन ऐसा बयान देते समय आप यह भूल गए कि कलतक जब ऐसा ही बयान कांग्रेसी मंत्री कपिल सिब्बल देते थे आप समेत सभी चंपारंवासियों को कितना गुस्सा आता था? जब वे कहते कि केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए मोतिहारी उपयुक्त जगह नहीं है, तो मोतिहारी के कांग्रेसी तक उनके पुतला दहन के कार्यक्रम में शामिल होते थे। ऐसे में आपके द्वारा एम्स स्थापना की मांग की तुलना यूएनओ के मुख्यालय खोलने की मांग से करना कितना उचित है? यदि मोतिहारी में केंद्रीय विश्वविद्यालय खुल सकता है तो एम्स क्यों नहीं? क्या एम्स की आवश्यकता सिर्फ देश व राज्य की राजधानी को है, पिछड़े इलाकों को नहीं। क्या आप इस बात से अनभिज्ञ है कि आज भी बिहार में एक एम्स खुलने के बाद भी दिल्ली के एम्स में सर्वाधिक बिहारी मरीजों की भीड़ है। ऐसे में यदि केंद्र सरकार दूसरा एम्स बिहार में खोलने की पहल करती है तो कही न कही खुलेगा ही। इसमें क्या बुराई है कि चंपारण जैसे बुनियादी सुविधाओं से वंचित इलाके में एम्स की स्थापना हो? आप जैसे लोगों के रहते चंपारण के एक पत्रकार का दाखिला एम्स में नहीं हो पाता है और वह दम तोड़ देता है। मन वह गरीब आपके संसदीय क्षेत्र का नहीं था। लेकिन था तो वह भी चंपारण का ही।

क्यों नहीं खुल सकता एम्स?

यदि केंद्र के एजेंडे में यह नहीं हो तब भी बिहार में स्वास्थ्य सेवा जैसी बुनियादी सुविधा का घोर अभाव के मद्देनजर सरकार पर दूसरे एम्स की स्थापना के लिए दबाव बना सकते है। जिस गाँधी की चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष की धूम पूरी दुनिया में है, उस चंपारण में सौ साल बाद भी बेहतर स्वास्थ्य सुविधा की मांग करना आपको उचित नहीं लगता है? हलाकि राष्ट्रपिता गांधी सौ साल पहले इस पिछड़े इलाके के लोगों की स्वास्थ्य की चिंता कर चुके है। वे खुद चंपारण में वर्षों रहकर यहां के लोगों की अविद्या और बीमारी को दूर भगाने के लिए पहल किये थे। इस काम के लिए अपने पूरे कुटुम्ब को झोंक दिया था। उनकी बुनियादी शिक्षा की अवधारणा में भी शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए जगह था। ऐसे में सत्याग्रह शताब्दी वर्ष के बहाने भी यदि गांधी के सपनो के अनुरूप बेहतर स्वास्थ्य सुविधा की बहाली इस पिछड़े इलाके में हो जाये तो गांधी के प्रति इससे बेहतर श्रद्धांजलि क्या हो सकती है। यह गांधी के अंतिम जन की सेवा होगी।

माननीय मंत्रीजी आपने बतौर सांसद से लेकर मंत्री के रूप में इस पिछड़े इलाके में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना करने में जो कड़ी मशक्कत की इसके लिए चंपारण आपका ऋणी रहेगा। जब मोतिहारी में राष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालय की स्थापना हो सकती है, तो राष्ट्रिय स्तर के अस्पताल की स्थापना क्यों नहीं हो सकती है? माफ़ कीजियेगा अगर बिहार के मुख्यमंत्री भी ऐसा ही सोंच रखते तो यह केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी की बजाय पटना में कब का खुल गया होता और आज चंपारण व गया इस लाभ से वंचित हो गए होते।

बन सकता है पीड़ित मानवता की सेवा व अंतराष्ट्रीय सौहार्द की मिसाल

पहली बार चंपारण को भारत सरकार के कैबिनेट में प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला है। इसका लाभ चंपारण को अवश्य ही मिलना चाहिए। जगह मोतिहारी हो सकता है या पश्चिमी चंपारण के सुदूर थरुहट का इलाका, जहाँ गांधी के अंतिम जन आज भी गरीबी और स्वास्थ्य सेवा के आभाव में असमय दम तोड़ देते है। यह संसथान भारत-नेपाल सीमा पर होने के कारण पिडित मानवता की सेवा के साथ ही नेपाल की गरीब जनता की सेवा कर अंतर्राष्ट्रीय सेवा व सौहार्द की मिसाल कायम कर सकता है।

क्रेडिट का पेंच

अच्छे कामो में कई बार पेंच क्रेडिट को लेकर भी फंस जाता है। जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालय के मामले में ही हुआ। तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल को लगा कि केंद्र के माल पर मिर्जा को होली नहीं खेलने देंगे। जब रंग और पिचकारी हमारी है तो होली भी मेरी ही पसंदीदा जगह पर होगी। लेकिन इसका नतीजा क्या हुआ ? बिहार सरकार ने अपने हाथ खड़े कर दिए और सिब्बल को होली खेलने के लिए अपनी ही जमीं तलाशनी पड़ी। गया में सेना की जमीन पर विश्वविद्यालय खोलनी पड़ी। बिहार सरकार को क्रेडिट न मिले इसके लिए जो करतब दिखाये उससे अपनी सरकार और पार्टी की मिट्टी पलीद की।

मंत्री जी आप सक्षम है और आपको अपनी बात मनवाने की कला भी आती है। इसलिए गुस्सा थुकिये और इस दिशा में कुछ सोचना शुरू कीजिए। यकीं मानिये सरकार के ताकतवर मंत्री के रूप में इसका क्रेडिट भी आपको ही मिलेगा। हाँ, लेकिन इसी तर्ज पर आप रियेक्ट करेंगे तो आपके विरोधी जनता को यह समझाने में जरूर कामयाब हो जायेंगे कि आपपर भी सिब्बल की तरह सत्ता का हनक सवार हो चूका है और आप चंपारण का भला नहीं चाहते। सिब्बल तो बाहरी थे। चंपारण को उनसे उम्मीद नहीं थी। आपसे बहुत सारी उम्मीदें चंपारण की जनता को है।

राजनीती का सवाल

आपने एक और अच्छी बात कही कि शिक्षा के मंदिर में राजनीती नहीं होनी चाहिए और मैं अपने लोगों से इसे पालन करने को कह रखा है। लेकिन इस केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए गठित एकेडमिक कॉउंसिल सहित अन्य कमिटियों में जैसे लोगो का चयन किया गया है, वह क्या है?
चलिये मैं उसे राजनीती नहीं मानता। हर सरकार अपना पसंदीदा चेहरा चुनती है। लेकिन इसका स्तर गाँवो के विद्यालय शिक्षा समिति से जरूर बेहतर रखती है। इसमें इक्के-दुक्के गड़बड़ व पैरवी पुत्र वाले भी होते है। इन कमिटियों में शामिल लोगो की आकादमिक जगत में चर्चा होती है। लेकिन विश्वविद्यालय की नवगठित कमिटी में ऐसे किसी शख्शियत को ढूढने में आकादमिक जगत को अबतक कामयाबी नहीं मिली है।

यदि शिक्षा के इस मंदिर को आप राजनीती से मुक्त रखना चाहते थे तो क्या यह उचित नहीं होता कि उद्घाटन के अवसर पर प्रयास कर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी को भी बुलाया जाता। आपके कुलपति जी ने माननीय केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी जी को बुलाने के लिए जितनी जोर लगाई उससे हम वाकिफ है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना में उनकी प्रतिबद्धता व स्टैंड लेने की क्षमता से पूरा देश वाकिफ है। और तो और जिले में महागठबंधन के चारों विधयकों की कार्यक्रम में अनुपस्थिति और आपके पार्टी के कार्यकर्ताओं का नाम लेकर विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अधिकारी द्वारा धनयवाद ज्ञापन किये जाने को भी राजनीती मानने की जरुरत जिलेवासियों को नहीं है।

वैसे कार्ड पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने जिले के सभी विधायकों का नाम जरूर छपवाया था। अब आना या न आना उनकी मर्जी व पुछनेवालों के भावपर निर्भर है। वैसे सूबे के शिक्षा मंत्री सार्वजानिक बयान दे चुके है कि उन्हें इस कार्यक्रम में निमंत्रण नहीं मिला था।

बावजूद इसके इन छोटे-मोटे बातों से उबरकर चंपारण में एम्स स्थापना की दिशा में कोई कारगर पहल हो तो इसे सत्याग्रह शताब्दी वर्ष की सार्थकता मानी जा सकती है।

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