खास खबर : जुनैद के गांव खंदावली के मेव समाज से नहीं मिलते गौत्र-पाल

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: मरहूम हाफ़िज जुनेद का खानदान मेव नहीं वशिष्ठ (पंडित) है

: गांव खंदावली में अलग बसी हुई है दामाद कालौनी

: मेवात में मेव समाज के लोग करीब एक हजार साल पहले मुस्लिम बने थे

यूनुस अलवी

 
मेवात:    हरियाणा, राजस्थान और उत्तप्रदेश कि मेवात में बसे करीब 40 लाख मेव और लाखों हिंदु समाज के लोगों के 52 गौत्र और 12 पाल हैं। एक पाल और गौत्र के दर्जन भर गांव मौजूद हैं। यहां के मेव समाज के लोगों के गौत्र-पाल, जाठ, गूजर, ठाकुर आदि से मिलते हैं लेकिन मरहूम जुनैद के गांव खंदावली का गौत्र वश्ष्ठि है उनका 12 पालों से कोई सम्बंध नहीं हैं। मेव समाज में दहंगल, छिरकलौत, दूलौत, पूंगलोत सहित कुल 52 गौत्र हैं। खंदावली गांव की चौधर भी मेवात में ना होकर पलवल जिले के पंडितों के गांव बघोला में लगती है।

खन्दावली नाम कैसे पडा ? 

 
भारत के ग्रामीण परिवेश मे लफ़्ज देहाती खंदावा यानि जब लड़की पीहर से ससुराल जाती है तो उसकी बिदाई को खंदावा कहते हैं। करीब 600 साल पूर्व एक वरिष्ठ ब्राह्मण परिवार में जन्मे पंडित नेंन सुख ने ससुराल से अपनी पत्नि को लाने के बाद उसने अलग गांव बसाया। जो बाद में खंदावा से खंदावली पडा।
 

खंदावली की अनूठी कहानी ? 

 
   गांव खंदावली के शिक्षित नासिर हुसैन और पूर्व सरंपच सगीर अहमद ने बताया कि उनके बुजुर्ग पंडित नेनसुख जो पलवल जिले के करनेरा गांव का रहने वाला था और उसकी शादी पहले ही गांव बघोला गांव में हीरा बाई से हो रखी थी। करीब 600 साल पहले पंडित नेनसुख मुसलमान हो गऐ थे। मुसलमान होने पर गांव करनेरा के लोगो ने नेनसुख का सामाजिक बहिष्कार कर दिया था जिसकी वजह से वह अपना गांव छोड ससुराल बघोला पहुंच गऐ। पंडित ने ससुराल पक्ष को सारा हाल बतलाया की मै अब एक मुसलमान हूं, अगर आप चाहते है की आपकी बेटी मेरे साथ रहे तो उसको इस्लाम धर्म मे रहना होगा। इस बात को सुनकर कोई विवाद नही हुआ बल्कि इस विचार के लिए हीरा बाई को स्वतंत्र होकर फैसला करने को कहा गया। बाद में हीरा बाई ने पतिवृता नियम निभाते हुऐ अपने पति के ही साथ रहने को हां कर दी।
   प्राचीन समय में लड़की और दामाद के ससुराल में रहने को बुरा माना जाता था। गांव के लोगों ने कहा कि जब ये फैसला हीरा बाई ने लिया तो अब गांव की बेटी जाएगी कहा? इस पर गांव बघोला के पंडितों ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया की बेटी को विदा किया जायेगा पर करनेरा गांव नहीं भेजा जाऐगा। इस लिये गांव बघौला से करीब दस किलोमीटर दूर अपनी जमीन में से बघौला के लोगों ने हीरा बाई और पंडित नेनसुख को खंदावा (बिदाई)में दो हजार बीघा जमीन दान में दे दी। उसके बाद हीरा बाई और नेनसुख अपनी दान में दी गई 2 हजार एकड पर आ बसे और बाद में खंदावा में दी गई जमीन की वजह से इसका नाम खंदावली पड गया।
 

खंदावली में एक मुक्कम्मल दामादों की कालोनी

 
 आज के दौर में भी दामाद को ससुराल में रहने को अच्छा समझा नहीं जाता है। गांव खंदावली के पूर्व सरपंच सगीर अहमद ने बताया कि उनके पिता ने करीब 40 साल पहले गांव में अपनी  जमीन से दामाद कालौली बसाई थी। आज इस दामाद कालौनी में तीन सौ से अधिक घर बसे हुऐ हैं। जिसमें केवल दामाद या उनके बच्चे आबाद हैं।
 

क्या कहते हैं मेव पंचायत के प्रवक्ता ? 

 
 मेव पंचायत के प्रवक्ता एंव समाजसेवी कासिम मेवाती का कहना है कि जुनैद की हत्या के बाद खन्दावली के स्वर्णिम अतीत पर वर्तमान की नफरत और कालिख पोतने का काला कारनामा अब दर्ज हो गया है। जिसे मिटाने में वर्षो लग जाएगें। खन्दावली गांव आपसी मेल-मिलाप, प्रेम-प्रभाव, सुख-सम्रद्धि एंव शान्ति का प्रतीक रहा है। जो ऐतिहासिक सौंदर्य अपने सीने मे पाले हुए है।  खंदावली गांव आज मुसलमान वश्ष्ठि के रूप मे अपने इलाके में प्रसिद्ध है।
 

क्या कहते हैं इतिहासकार ? 

 
मेवात के इतिहास पर करीब 10 किताबें लिख चुके सद्दीक मेव का कहना है कि मेव समाज करीब एक हजार साल पहले मुसलमान हुआ था और खंदावली को करीब 600 साल पहले पंडित नेनसुख ने बयासा था। पंतिड नेन सुख का हरियाणा में केवल एक गांव खंदावली है। उनका कहना है कि कवर्टिड होने वाले मुसलमान मेव कहलाते हैं। 

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