योगी,पर्रिकर और स्वामी राष्ट्रपति चुनाव के बाद ही देंगे इस्तीफा !

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योगी,पर्रिकर और स्वामी राष्ट्रपति चुनाव के बाद ही देंगे इस्तीफा ! 2नई दिल्ली : मीडिया में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि यू पी के सीएम योगी आदित्यनाथ और गोवा के सीएम मनोहर पर्रिकर राष्ट्रीय राजनीति से हटे लेकिन लेकिन वे अपनी संसदीय सीट से इस्तीफा राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने के बाद ही देंगे. इस कड़ी में यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का भी नाम लिया जा रहा है.

 

राष्ट्रपति चुनाव से पूर्व सत्ता पक्ष के बीच खिची तलावारों ने एक-एक वोट को महत्वपूर्ण बना दिया है. खबर है कि विपक्ष साझा उम्मीदवार उतारने की पूरी कोशिश में हैं जबकि भाजपा किसी भी स्थिति में अपना राष्ट्रपति चाहती है. ऐसे में भाजपा नेतृत्व की कोशिश है कि योगी और पर्रीकर दोनों नेता राष्ट्रपति चुनाव में वोट देने के बाद ही लोकसभा से अपना इस्तीफा दें.

 

इसलिए इस बात की संभावना प्रबल है कि उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी राष्ट्रपति चुनाव के बाद ही लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देंगे. उत्तर प्रदेश और गोवा के मुख्यमंत्रियों के साथ मौर्य को भी शपथ लेने के 6 महीने के अंदर अपने राज्य की विधायिका में चुनकर आना होगा. उनके पास इस लिहाज से अभी काफी समय है उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति चुनाव आगामी जुलाई में होन तय हैं इसलिए तीनों के पास पर्याप्त समय है कि वे लोकसभा की सदस्यता त्यागने के बाद राज्य विधानसभा के लिए निर्धारित समय सीमा में ही चुनाव लड़ सकते हैं.

 

गौरतलब है कि मनोहर पर्रिकर ने गत 14 मार्च को गोवा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी वहीं आदित्यनाथ और मौर्य ने 19 मार्च को क्रमश: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभाली थी. राष्ट्रपति चुनाव जुलाई में होने हैं और उपराष्ट्रपति के लिए चुनाव अगस्त में होगा तय है .

अब तक के संकेत से स्पष्ट है कि उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल भाजपा नीत राजग के पक्ष को बहुमत दिलाने की स्थिति में है. लोकसभा और राज्यसभा के कुल 787 सदस्यों में से 418 सदस्य एन डी ए गठबंधन के हैं. जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी के सत्तारूढ़ गठबंधन को अपनी पार्टी का समर्थन देने की सहमति के बाद एन डी ए राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी निर्वाचक मंडल में बहुमत के आंकड़े से आगे निकल गया लगता है.

 

मीडिया की ख़बरों में यह दावा किया जा रहा है कि तेलंगाना में भी सत्तारूढ़ टीआरएस ने एन डी ए का समर्थन करने का संकेत दिया है जबकि तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के दोनों गुटों का समर्थन मिलने की उम्मीद है. दूसरी तरफ चर्चा यह भी है कि भाजपा को अपनी सहयोगी शिवसेना को लेकर चिंता है क्योंकि पिछले दो राष्ट्रपति चुनावों में शिवसेना भाजपा के साथ नहीं था.

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