हिंदू अध्यात्मिक एवं सेवा मेले के तीसरे दिन आचार्य पूजन दिवस
मातृ-पितृ वंदन के लिए भी झुके हजारों सिर
अध्यात्म पर टिकी है समाज की नींव : स्वामी राघवानंद
तीन हजार विद्यार्थियों ने वैदिक पद्धति से किया आचार्य वंदन
गुरुग्राम : हिंदू अध्यात्मिक एवं सेवा मेले के तीसरे दिन लेजरवैली के मैदान में दो बार ऐसे क्षण आए, जब मेले में उपस्थित हजारों लोग श्रद्धा से झुक गए। सुबह दस बजे हुए आचार्य वंदन में 3000 विद्यार्थियों ने उपस्थित अपने 551 गुरुओं के चरण पूजे, जबकि दोपहर बाद आयोजित मातृ पितृ वंदन में एक हजार से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया। जिसमें पुत्र-पुत्रियों ने अपने माता-पिता के पैरों को पानी से धोने के बाद उन्हें श्रद्धा स्वरूप नारियल भेंट किया।
इन दोनों ही कार्यक्रमों के दौरान उपस्थित हजारों लोगों के सिर भी श्रद्धा से झुक गए। आचार्य वंदन में आर्यसमाज प्रतिनिधि सभा दिल्ली के अध्यक्ष स्वामी राघवानंद जी एवं अन्य ने माता सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित किया। इस दौरान विद्यार्थियों ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। स्वामी राघवानंद ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि अध्यात्म पर ही समाज की नींव टिकी है।
अध्यात्म से ही प्रेरणा लेकर हमारे पूर्वजों ने समाज के लिए उत्कृष्ट कार्य किए हैं। उन्होंने कहा कि संसार का ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो सुख व शांति नहीं चाहता हो लेकिन सुख व शांति दोनों को प्राप्त करने के साधन अलग-अलग हैं। सुख का साधन श्रम है। श्रम से ही धन की प्राप्ति होती है और धन से ही सुख के साधन प्राप्त किए जाते हैं लेकिन शांति का साधन आध्यात्मिकता है। इसके बिना जीवन में शांति संभव नहीं है। शांति की अनुभूति आत्मा से होती है और आत्मा से ही सृष्टि का संचालन होता है यानी इस श्रृष्टि का संचालन अध्यात्म से ही है।
स्वामी जी ने कहा कि शब्द तो बदलते रहते हैं लेकिन ‘मैं’ कभी नहीं बदलता। इस ‘मैं’ के साथ आत्मा का मिलन करवाना ही अध्यात्म है। आचार्य वंदन जैसे कार्यक्रमों से ही बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण होता है। उन्होंने कहा कि समूचा विज्ञान जो अभी तक देश के लिए अज्ञान है, वह समूचा ज्ञान हिंदू धर्म है। क्योंकि हिंदू धर्म सदियों पुराना है और सभी धर्मों का मूल भी है। उन्होंने विद्यार्थियों को लक्ष्य निर्धारण का मंत्र देते हुए कहा कि जब तक लक्ष्य निर्धारित नहीं होता तब तक जीवन में उत्साह व उमंग नहीं होती। इसके बिना जीवन में शांति नहीं। इसलिए विद्यार्थियों को लक्ष्य निर्धारण करना चाहिए। शिक्षा व विद्या के भेद को भेदना ही एक शिक्षक का कर्तव्य है।
शिक्षक होता है समाज का निर्माता
इस अवसर पर संघ के सहक्षेत्र प्रचारक बनवीर जी ने कहा कि समाज में शिक्षक की अहम भूमिका होती है। अच्छे विद्यार्थियों के निर्माण के बिना अच्छे समाज का निर्माण संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि हम तो उस संस्कृति से संबंध रखते हैं जहां गुरु को भगवान से भी ऊपर दर्जा दिया गया है। हमारे शास्त्रों में भी लिखा है- गुरु गोविंद दोऊं खड़े काके लागूं पांव, बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो मिलाय।
उन्होंने कहा कि बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं और शिक्षक इस कच्ची मिट्टी को आकार देने का काम करता है। यदि शिक्षक चाहे तो इस कच्ची मिट्टी से ही भगवान बना सकता है।
भारतीय संस्कारों का प्रकटीकरण है मातृ-पितृ वंदन : विश्वेश्वरानंद
पंचायती निर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर एवं ब्रह्मवेदामृत कुटिया रोहतक के महंत स्वामी विश्वेश्वरानंद जी मातृ-पितृ वंदन कार्यक्रम के मुख्यवक्ता रहे। उन्होंने कहा कि जिन व्यक्तियों ने बच्चों को संस्कार नहीं दिए वे बालक के शत्रु तुल्य हैं। उन्होंने बताया कि माता-पिता-पुत्र का संबंध एक जन्म का नहीं, बल्कि जन्म-जनमांतर का है। मातृ-पितृ वंदन का कार्यक्रम ऐतिहासिक है। क्योंकि भारत की भूमि ने संसार को अध्यात्म का जो मार्ग दिया है, उसका प्रत्यक्षीकरण यहां हो रहा है। कार्यक्रम में एक हजार के करीब अभिभावक शामिल हुए। कार्यक्रम में स्कॉलर्स कत्थक नृत्यशाला की विद्यार्थियों ने कत्थक नृत्य के माध्यम से मातृ-पितृ वंदन की प्रस्तुति दी।
एक हजार बच्चों को बांटी गई बाल गीता
आचार्य वंदन के दौरान स्वामी अडगडनंद की ओर से यथार्थ गीता वालों ने वंदन में भागीदार बच्चों को बाल गीता भेंट की गई व सभी आचार्यों को यर्थाथगीता भेंट की गई। उन्होंने कहा कि बच्चों को गीता का ज्ञान व अपने सनात्तन संस्कार देने के लिए बाल गीता का वितरण बच्चों में किया गया है। देश का बच्चा यदि संस्कारित होगा तो हमारे देश का भविष्य भी निश्चत तौर पर उज्जवल होगा।