कित्तूर विजयोत्सव की 200वीं वर्षगांठ पर स्मारक डाक टिकट जारी किया गया

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नई दिल्ली :  कित्तूर विजयोत्सव की 200वीं वर्षगांठ पर ऐतिहासिक कित्तूर रानी चेन्नम्मा के कित्तूर किला परिसर में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। यह भव्य आयोजन 23 अक्टूबर, 1824 को ब्रिटिश शासन के विरूद्ध रानी चेन्नम्मा की शानदार विजय की स्मृति में किया गया।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों की स्मृति को लोक मानस में लाने की डाक विभाग की समृद्ध परंपरा रही है। भारतीय डाक विभाग ने पिछले कुछ वर्षों में स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में कई डाक टिकट जारी किए हैं। यह उनकी स्मृतियों को संजोने के अलावा आगामी पीढ़ी को देश की आज़ादी के नायकों के बलिदान याद रखने के लिए भी प्रेरित भी करती है। ब्रिटिश शासन के विरूद्ध कित्तूर के ऐतिहासिक प्रतिरोध की 200वीं वर्षगांठ के अवसर पर डाक विभाग ने भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले पहले शासकों में से एक कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी चेन्नम्मा की वीरता और विरासत की स्मृति में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया।

श्री राजेंद्र कुमार, मुख्य पोस्टमास्टर जनरल, कर्नाटक सर्कल, बेंगलुरु ने आध्यात्मिक नेता पूज्य श्री श्री मदिवाल राजयोगेंद्र महा स्वामीजी, पूज्य श्री. पमचक्षरी महा स्वामीजी, श्री. श्री बासवा जया मृत्युंजय स्वामीजी और अन्य सम्मानित अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति में यह स्मारक डाक टिकट जारी किया।

कित्तूर विजयोत्सव के 200 वर्ष पूरा होने पर डाक टिकट का विमोचन

स्मारक टिकट में रानी चेन्नम्मा का एक आकर्षक चित्र है जिसमें वे तलवार खींचे घोड़े पर सवार अंग्रेजों से लड़ती दिख रही हैं, जो उनकी शक्ति और वीरता को दर्शाता है। उनकी चित्र के पीछे किला दिख रहा है जो कित्तूर की समृद्ध विरासत और कित्तूर की ऐतिहासिक युद्ध का प्रतीक हैं। श्री ब्रह्म प्रकाश द्वारा डिजाइन किया गए यह डाक टिकट जीवंत रंगों से बना है। इसमें रानी चेन्नम्मा के प्रतिरोध और समय अनुरूप भाव को दर्शाया गया है। इस ऐतिहासिक अवसर की स्मृति के स्मरण में चित्र पर “कित्तूर विजयोत्सव – 200 वर्ष” लिखा हुआ है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्थायी विरासत के रूप में मर्मस्पर्शी श्रद्धांजलि है।

 

कित्तूर विजयोत्सव के 200 वर्ष के उपलक्ष्य में डाक टिकट

यह डाक टिकट भारत की आज़ादी की लड़ाई के महत्वपूर्ण दौर में रानी चेन्नम्मा की अदम्य भावना और नेतृत्व के प्रति श्रद्धांजलि है और कित्तूर के समृद्ध इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम पर इसके स्थायी प्रभाव का स्मरण कराता है। आईए उत्पीड़न का विरोध करने

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