न्याय को प्राथमिकता मिलेगी, देरी की जगह स्पीडी ट्रायल और स्पीडी जस्टिस मिलेगा : अमित शाह

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-किसी भी मामले में FIR दर्ज होने से सुप्रीम कोर्ट तक 3 साल में न्याय मिल सकेगा
-नए कानूनों में अंग्रेजों का बनाया राजद्रोह का कानून जड़ से समाप्त कर दिया गया है

– नए कानूनों के तहत भी रिमांड का समय पहले की तरह 15 दिनों का ही

-नए कानूनों में 7 साल या उससे अधिक की सज़ा वाले अपराधों में फॉरेंसिक जांच अनिवार्य

-नए कानूनों पर लगभग 22.5 लाख पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग के लिए 12000 मास्टर ट्रेनर्स के लक्ष्य से कहीं अधिक 23 हजार से ज्यादा मास्टर ट्रेनर्स प्रशिक्षित

-इस तरह का प्रावधान भी किया गया है कि अगले 50 सालों में आने वाली सभी तकनीकें इसमें समाहित हो सके

नई दिल्ली : केन्द्रीय गृह एव सहकारिता मंत्री अमित शाह ने देशभर में आज से लागू हुए 3 नए आपराधिक कानूनों को दंड की जगह न्याय देने वाला और पीड़ित-केन्द्रित बताया। उन्होंने कहा कि नए कानूनों में दंड की जगह न्याय को प्राथमिकता मिलेगी, देरी की जगह स्पीडी ट्रायल और स्पीडी जस्टिस मिलेगा और पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होगी। नई दिल्ली में आयोजित एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए श्री शाह ने कहा कि नए आपराधिक कानूनों के बारे में कई प्रकार की भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं, जिनका उद्देश्य जनता के मन में इन कानूनों के बारे में भ्रम पैदा करना है। उन्होंने कहा कि नए कानूनों को हर पहलू पर 4 वर्षों तक विस्तार से अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा करके लाया गया है और आजादी के बाद से अब तक किसी भी कानून पर इतनी लंबी चर्चा नहीं हुई है।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि आजादी के 77 साल बाद भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली आज पूर्णतया स्वदेशी हो रही है और यह तीन नए कानून आज से देश के हर पुलिस थाने में लागू हो जाएंगे। श्री शाह ने कहा कि इन कानूनों के आधार में दंड की जगह न्याय, देरी की जगह त्वरित ट्रायल और त्वरित न्याय को रखा गया है। इसके साथ ही पहले के कानूनों में सिर्फ पुलिस के अधिकारों की रक्षा की गई थी लेकिन इन नए कानूनों में अब पीड़ितों और शिकायतकर्ता के अधिकारों की भी रक्षा करने का प्रावधान है।

श्री शाह ने कहा कि कल मध्यरात्रि से देशभर में प्रभाव में आए इन तीन नए कानूनों के लागू होने से हमारे देश की पूरी आपराधिक न्याय प्रणाली में भारतीय आत्मा दिखाई देगी। उन्होंने कहा कि इन कानूनों में कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं जिनसे देश के नागरिकों को कई प्रकार के फायदे होंगे। उन्होंने कहा कि इन कानूनों में अंग्रेजों के समय विवाद में रहे कई प्रावधानों को हटाकर आज के समय के अनुकूल धाराएं जोड़ी गई हैं।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि इन कानूनों में भारतीय संविधान की स्पिरिट के अनुरूप धाराओं ओर अध्यायों की प्राथमिकता तय की गई है। उन्होंने कहा कि नए कानूनों में सबसे पहली प्राथमिकता महिलाओं व बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को दी गई है। उन्होंने कहा कि बच्चों व महिलाओं के प्रति अपराध पर नया अध्याय, जिसमें 35 धाराएं और 13 प्रावधान हैं, जोड़कर इसे और भी संवेदनशील बनाया गया है। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार मॉब लिंचिंग के अपराध के लिए पहले के कानून में कोई प्रावधान नहीं था लेकिन इन कानूनों में पहली बार बार मॉब लिंचिंग को परिभाषित और इसके लिए कड़ी सज़ा का प्रावधान किया गया है। श्री शाह ने कहा कि नए कानूनों में अंग्रेजों का बनाया राजद्रोह का कानून जड़ से समाप्त कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि नए कानून में देशविरोधी गतिविधियों के लिए नई धारा जोड़ी गई है जिसके तहत भारत की एकता और अखंडता को क्षति पहुंचाने वालों को कड़ी सज़ा का प्रावधान है।

श्री शाह ने कहा कि तीनों नए कानून पूरी तरह से लागू होने के बाद सबसे आधुनिक न्याय प्रणाली का सृजन करेंगे। इन कानूनों के देशभर में पूरी तरह लागू होने के बाद भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली दुनिया की सबसे आधुनिकतम न्याय प्रणाली बन जाएगी। उन्होंने कहा कि तीनों नए कानूनों में तकनीक को न केवल अपनाया गया है, बल्कि इस तरह का प्रावधान भी किया गया है कि अगले 50 सालों में आने वाली सभी तकनीकें इसमें समाहित हो सके। उन्होंने कहा कि देशभर के 99.9 प्रतिशत पुलिस थाने कंप्यूटराइज़्ड हो चुके हैं, ई-रिकॉर्ड जनरेट करने की प्रक्रिया भी 2019 से शुरू हो गई थी, जीरो-FIR, E-FIR और चार्जशीट सभी डिजिटल होंगे। श्री शाह ने कहा कि नए कानूनों में सभी प्रक्रियाओं के पूरा होने की समयसीमा भी तय की गई है, पूरी तरह लागू होने के बाद तारीख पर तारीख से निजात मिलेगी। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी मामले में FIR दर्ज होने से सुप्रीम कोर्ट तक 3 साल में न्याय मिल सकेगा।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि नए कानूनों में 7 साल या उससे अधिक की सज़ा वाले अपराधों में फॉरेंसिक जांच को अनिवार्य किया गया है, इससे न्याय जल्दी मिलेगा और दोष-सिद्धि दर को 90% तक ले जाने में सहायक होगा। श्री शाह ने कहा कि फॉरेन्सिक विजिट को अनिवार्य बनाने में हमने दूरदर्शिता के साथ काम कर 2020 में ही नेशनल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी बना दी थी। उन्होंने कहा कि इसके लिए ट्रेंड मैनपावर की ज़रूरत होगी और तीन साल के बाद देश में हर साल 40000 से ज्यादा ट्रेंड मैनपावर हमारी न्यायिक प्रणाली की सेवा में उपलब्ध होगा। उन्होंने बताया कि हाल ही में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने निर्णय लिया है कि 9 राज्यों में फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी के कैंपस खोले जाएंगे और 6 सेंट्रल फॉरेंसिक लैबोरेट्रीज भी स्थापित की जाएंगी।

श्री शाह ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 में भी साक्ष्‍य के संबंध में टेक्नोलॉजी को बढ़ावा दिया गया है। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्‍य के प्रति विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। अब सर्वर लॉग्स, स्थान संबंधी साक्ष्य और वॉयस मैसेजेज़ की व्याख्या की गई है। उन्होंने कहा कि तीनों कानून देश की 8वीं अनुसूची की सभी भाषाओं में उपलब्ध होंगे और केस भी उन्हीं भाषाओं में चलेंगे।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि इन कानूनों को अमली जामा पहनाने के लिए भारत सरकार के गृह मंत्रालय, हर राज्य के गृह विभाग और न्याय मंत्रालय ने बहुत प्रयास किए हैं। उन्होंने कहा कि नए कानूनों में आज के समय के हिसाब से धाराएँ जोड़ी गयी हैं और कई ऐसी धाराएँ हटाई भी गयी हैं, जिससे देशवासियों को परेशानी थी। श्री शाह ने कहा कि नए कानूनों पर लगभग 22.5 लाख पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग के लिए 12000 मास्टर ट्रेनर्स तैयार करने का लक्ष्य था, हालांकि कई इंस्टीट्यूशंस को अधिकृत किया करके 23 हजार से अधिक मास्टर ट्रेनर्स का प्रशिक्षण किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि ज्यूडिशरी में 21000 सबोर्डिनेट ज्यूडिशरी की ट्रेनिंग हो चुकी है, साथ ही 20 हजार पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को ट्रेंड किया गया है। श्री शाह ने बताया कि इन कानूनों पर लोकसभा में कुल 9 घंटे 29 मिनट चर्चा हुई जिसमें 34 सदस्यों ने हिस्सा लिया, जबकि राज्यसभा में 6 घंटे 17 मिनट चर्चा हुई और उसमें 40 सदस्यों ने हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि एक ऐसा भी झूठ फैलाया जा रहा है कि संसद सदस्यों को बाहर निकालने के बाद यह कानून पारित किए गए। उन्होंने कहा कि निष्कासित सदस्यों के पास फिर भी एक विकल्प था कि वे सदन में आकर चर्चा में शामिल होकर अपना मत रख सकते थे, लेकिन एक भी सदस्य ने ऐसा नहीं किया।

श्री शाह ने कहा कि 2020 में उन्होंने सभी सांसदों, मुख्यमंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को पत्र लिखकर उनके सुझाव मांगे थे। उन्होंने कहा कि केन्द्रीय गृह सचिव ने देश के सभी आईपीएस अधिकारियों और ज़िलाधिकारियों से इस संबंध में सुझाव मांगे थे। श्री शाह ने बताया कि उन्होंने स्वयं 158 बार इन कानूनों की समीक्षा बैठक की। इसके बाद इन कानूनों को गृह मंत्रालय की समिति के पास भेजा गया जहां ढाई- तीन महीने इन पर गहन चर्चा हुई और सभी दलों के सांसदों ने इसमें हिस्सा लिया और अपने सुझाव दिए। श्री शाह ने कहा कि कुछ राजनीतिक सुझावों को छोड़कर हर सुझाव को समाहित कर कुल 93 बदलावों के साथ इस बिल को फिर से कैबिनेट ने पारित किया और फिर इसे संसद में रखा गया। उन्होंने कहा कि इतने बड़े सुधार को पॉलिटिकल कलर देना ठीक नहीं है और यह कानून देश के 140 करोड़ नागरिकों को संविधान की स्प्रिट के अनिसार समय पर न्याय और आत्मसम्मान दिलाने की एक प्रक्रिया है।  उन्होंने कहा कि भारत के आजादी के बाद से अब तक किसी भी कानून पर इतनी लंबी चर्चा नहीं हुई है। गृह मंत्री ने सभी राजनीतिक दलों से अपील की कि वे राजनीति से ऊपर उठकर इन कानूनों का समर्थन करें और जनता के हित में अपने सुझावों पर चर्चा करें।

 

प्रेस वार्ता के दौरान 15 दिनों की पुलिस रिमांड पर पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि कुछ लोग यह भ्रम फैला रहे हैं कि नए कानूनों में रिमांड का समय बढ़ गया है, पर सच यह है कि नए कानूनों के तहत भी रिमांड का समय पहले की तरह 15 दिनों का ही है। इस बारे में भ्रांति फैलाई गई है कि रिमांड का समय बढ़ाया गया है। उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि इन कानूनों में 60 दिनों के अंदर कुल 15 दिनों की रिमांड का प्रावधान किया गया है। श्री शाह ने कहा कि 15 दिन की रिमांड की लिमिट को नहीं बढ़ाया गया है और इस बारे में भ्रांति फैलाई जा रही है।

श्री शाह ने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि नए कानून के तहत पहला मामला दिल्ली के स्ट्रीट वेंडर के खिलाफ नहीं दर्ज हुआ बल्कि ग्वालियर के पुलिस थाने में एक चोरी के मामले में दर्ज किया गया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में वेंडर के खिलाफ जो मामला रजिस्टर हुआ है वो पुराने प्रावधान के तहत हुआ था जिसे पुलिस ने रिव्यू के प्रावधान का उपयोग कर खारिज कर दिया है। श्री शाह ने ये भी कहा कि देश की हर क्षेत्रीय भाषा में इन कानूनों को उपलब्ध कराया जाएगा और अगर फिर भी किसी के मन में कोई शंका है तो वे उनसे मिल सकते हैं और अपना विरोध दर्ज करा सकते हैं। उन्होंने कहा कि कानूनों का बहिष्कार करने की बजाय मिलकर बात करने का रास्ता अपनाना चाहिए।

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