जी20 व्यापार और निवेश कार्य समूह ने विश्व के हीरा केंद्र, भारत डायमंड बोर्स का दौरा किया

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मुंबई : भारतीय हीरा उद्योग ने आज भारत डायमंड बोर्स (बीडीबी) में जी20 व्यापार और निवेश कार्य समूह (टीआईडब्ल्यूजी) के प्रतिनिधियों की मेजबानी की। भारत डायमंड बोर्स, दुनिया का सबसे बड़ा हीरा एक्सचेंज है, जिसमें 2500 से अधिक कार्यालय हैं और जो मुंबई के एकदम मध्य में 20 एकड़ / 0.87 मिलियन वर्ग फुट क्षेत्र में फैला हुआ है।

 

भारतीय हीरा उद्योग, कट और पॉलिश किए गए हीरों के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी है, जो सालाना 23 बिलियन डॉलर मूल्य के हीरों का निर्यात करता है। दुनिया भर के आभूषणों के 15 में से 14 हीरे भारत में संसाधित होते हैं। भारत पूरी दुनिया में हीरे और हीरे जड़ित आभूषणों का निर्यात करता है, जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, मध्य पूर्व, एशिया और अन्य शामिल हैं।

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के सक्षम नेतृत्व में, उद्योग ने पिछले कई वर्षों में कई गुना वृद्धि दर्ज की है। आज सरकार द्वारा निरंतर समर्थन, मार्गदर्शन और व्यावहारिक व्यापार अनुकूल नीतियों के साथ, भारत ने विश्व स्तर पर रत्न और आभूषण के विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी स्थिति प्राप्त कर ली है। रत्न और आभूषण का निर्यात देश से कुल व्यापारिक निर्यात का 10 प्रतिशत है। उल्लेखनीय है कि इस उद्योग में एमएसएमई कंपनियों की संख्या 85 प्रतिशत से अधिक है, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए इस क्षेत्र के महत्व को और अधिक रेखांकित करता है।

प्रतिनिधियों को मुंबई डायमंड मर्चेंट्स एसोसिएशन (एमडीएमए), इंडिया डायमंड ट्रेडिंग सेंटर (आईडीटीसी), जेम एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी), जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (जीआईआई), प्रेशियस कार्गो कस्टम्स क्लीयरेंस सेंटर (पीसीसीसीसी) के कार्यालयों के साथ-साथ सुरक्षा कमान और नियंत्रण केंद्र सहित भारत डायमंड बोर्स परिसर के भीतर उपलब्ध विश्व स्तरीय सुविधाओं का दौरा कराया गया। हीरे के व्यापार और उसके संचालन के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए, जी20 के प्रतिनिधियों ने मोहित डायमंड, श्री रामकृष्ण एक्सपोर्ट्स, महेंद्र ब्रदर्स, वीनस ज्वेल, फाइनस्टार ज्वैलरी एंड डायमंड्स, अंकित जेम्स और धर्मनंदन डायमंड्स का दौरा किया।

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प्रतिनिधियों की इस यात्रा के दौरान, उन्हें देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार सृजन की दिशा में हीरा उद्योग द्वारा किए गए महत्वपूर्ण योगदानों के बारे में बताया गया। विवरण प्रस्तुत करने के दौरान इस उद्योग द्वारा न केवल भारत के भीतर बल्कि वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत किए जाने वाले विभिन्न अवसरों पर भी प्रकाश डाला गया। भारतीय हीरा उद्योग अपनी कुशल शिल्प कौशल, अत्याधुनिक तकनीक और एक मजबूत इकोसिस्टम के लिए प्रसिद्ध है। यही विशेषताएं इसे वैश्विक हीरा उद्योग का एक प्रमुख अंग बनाती हैं। इस दौरे के माध्यम से, जी20 टीआईडब्ल्यूजी को पहली बार हीरा उद्योग की क्षमता और वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका को जानने का अवसर मिला।

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इस अवसर पर बीडीबी के अध्यक्ष श्री अनूप मेहता ने कहा, “भारत डायमंड बोर्स को गर्व से दुनिया के हीरों का केंद्र कहा जाता है। यह बोर्स 2500 से अधिक हीरा व्यापारियों का एक समूह है, जिसमें कुछ सबसे बड़े व्यापारी भी शामिल हैं। यह बोर्स अपनी प्रकृति में समावेशी है और जितना यह बड़े व्यवसायों की जरूरतों को पूरा करता है, उतना ही सबसे छोटे हीरा व्यापारियों की जरूरतों का भी ध्यान रखता है। यह न केवल भारत में बल्कि विभिन्न अन्य देशों को हीरे के निर्यात के दौरान प्रमुख रोजगार सृजक की भूमिका निभाता है।“

अनूप मेहता ने कहा कि, “आमतौर पर भारतीय हीरा उद्योग और खासकर बीडीबी में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) की एक शानदार परंपरा रही है। हमारे सीएसआर प्रयास स्वास्थ्य, शिक्षा, कल्याण, खेल और परोपकार के लगभग सभी क्षेत्रों को कवर करते हैं।”

अपने स्वागत भाषण के दौरान जीजेईपीसी के अध्यक्ष श्री विपुल शाह ने कहा, “दुनिया के जौहरी – भारत के पास आभूषण बनाने की 5000 वर्षों की समृद्ध विरासत है। ये स्किल्स और विशेषज्ञता पीढ़ी दर पीढ़ी प्रदान की जाती रही है और आज हमारे कुशल कारीगर अपने असाधारण शिल्प कौशल, उत्कृष्ट डिजाइनों के लिए मशहूर हैं और उन्होंने दुनिया भर में पहचान पाई है। भारत का आभूषण उद्योग संस्कृतियों, देशों और लोगों के बीच एक सेतु का काम करता है, और दुनिया भर के लाखों उपभोक्ताओं को खुशी और आनंद देता है।”

श्री विपुल शाह ने कहा, “भारतीय रत्न और आभूषण उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण योगदान देता है। ये 5 मिलियन लोगों को रोजगार देता है और भारत के कुल मर्चेंडाइज निर्यात में इसका 10 प्रतिशत हिस्सा है। 1 मिलियन से ज्यादा रत्न और आभूषण निर्माण इकाइयों के साथ 390 जिलों की पहचान जीएंडजे क्लस्टर के रूप में की गई है। भारत के पास एक फलता-फूलता निर्यात क्षेत्र है, जिसका आकार सालाना 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है। हमारा देश अमेरिका, यूरोप, मिडिल ईस्ट, एशिया और कई अन्य देशों सहित दुनिया भर के देशों को आभूषण निर्यात करता है।”

श्री शाह ने जी-20 के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया कि वे भारतीय रत्न और आभूषण उद्योग के साथ व्यापार करने के अवसर तलाशें और जी-20 के वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर के सूत्रवाक्य के हिस्से के रूप में साथ मिलकर एक उज्जवल भविष्य निर्मित करें। श्री शाह ने कहा, “एक देश के रूप में हम इस जीवंत उद्योग को और विकसित करने के लिए दुनिया भर में अपने भागीदारों के साथ काम करने के लिए तत्पर हैं।”

ये उद्योग मानता है कि स्थिरता एक वैश्विक जरूरत है और इसलिए हमारे कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और संसाधनों के संरक्षण के लिए ये नई तकनीकों और प्रक्रियाओं में निवेश कर रहा है। ये उद्योग नैतिक प्रथाओं और जिम्मेदार सोर्सिंग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करता है, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि ये उसके श्रमिकों, समुदायों और इस ग्रह की भलाई में योगदान दे।

रत्न और आभूषण उद्योग में बड़े पैमाने पर परोपकारी गतिविधियों में संलग्न होने की एक लंबी परंपरा रही है। इसने लगातार सामाजिक जिम्मेदारी, शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी पहलों का समर्थन करने और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान सहायता प्रदान करने की प्रतिबद्धता दिखलाई है। कई प्रमुख आभूषण कंपनियों ने चैरिटेबल ट्रस्ट बनाए हैं जो महिला सशक्तिकरण, बाल कल्याण और पर्यावरण संरक्षण सहित कई कार्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

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 जहां जी20 प्रतिनिधिमंडल पहुंचा : 

रत्न और आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) :

भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय ने 1966 में रत्न और आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) की स्थापना की थी। यह भारत सरकार के विभिन्न निर्यात संवर्धन परिषदों (ईपीसी) में से एक है। जीजेईपीसी रत्न और आभूषण उद्योग की शीर्ष संस्था है और आज इस क्षेत्र के 9000 सदस्यों का प्रतिनिधित्व करती है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। इसके साथ ही जीजेईपीसी के नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, सूरत और जयपुर में क्षेत्रीय कार्यालय हैं जो उद्योग के लिए प्रमुख केंद्र का काम करते हैं। पिछले कुछ दशकों में जीजेईपीसी सबसे सक्रिय ईपीसी में से एक बनकर उभरा है। प्रचार के जरिए यह अपनी पहुंच को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। साथ ही अपने सदस्यों तक सेवाओं के विस्तार और दायरे को बढ़ाने की दिशा में भी प्रयासरत है।

 

मुंबई हीरा व्यापारी संघ:

मुंबई हीरा व्यापारी संघ (एमडीएमए) की स्थापना 1906 में हुई थी और यह हीरा व्यापार संगठन जगत में एक कीमती रत्न की तरह चमक रहा है। यह महत्वपूर्ण संस्था उद्यमिता को बढ़ावा देने के साथ ही अपने सदस्यों का सहयोग करने के लिए काम करती है, जो सच मायने में उद्योग के लिए हीरे हैं।

 

भारत हीरा कारोबार केंद्र (आईडीटीसी):

भारत हीरा कारोबार केंद्र (आईडीटीसी- विशेष अधिसूचित क्षेत्र (एसएनजेड) का उद्घाटन 20 दिसंबर 2015 को हुआ था। आईडीटीसी की लगातार कोशिश वैश्विक माइनिंग कंपनियों को एक उपयुक्त मंच प्रदान करने की है, जिससे वे अपने सामानों को प्रदर्शित कर सकें और व्यापक स्तर पर ग्राहक मिलने में भी मदद हो। इसके बदले में निर्यात बढ़ने और जीडीपी को बढ़ावा मिलने से अर्थव्यवस्था को लाभ होता है।

 

जेमोलॉजिकल इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया:

रत्न और आभूषण निर्यात संघ, मुंबई के अंतर्गत जेमोलॉजिकल इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (जीआईआई) की स्थापना की गई थी। यह संस्थान एक गैर-लाभकारी पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत किया गया है। यह भारत में रत्न के क्षेत्र में पहली अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला है, जिसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार की ओर से एसआईआरओ के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह रत्न और हीरे के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र है। इसकी प्रयोगशाला विश्वस्तरीय है और अत्याधुनिक उपकरणों से लैस है।

 

कीमती कार्गो सीमा शुल्क क्लीयरेंस केंद्र (भारतीय सीमा शुल्क):

1985 से ओपेरा हाउस में हीरा प्लाजा कस्टम्स क्लीयरेंस (डीपीसीसी) केंद्र ने काम करना शुरू किया। 2010 में यह सुविधा केंद्र भारत डायमंड बोर्स, बांद्रा कुर्ला के परिसर में शिफ्ट कर दिया गया और इसका नाम कीमती कार्गो कस्टम्स क्लीयरेंस केंद्र (पीसीसीसीसी) रखा गया। 35 सीमा शुल्क कर्मचारी यहां पीसीसीसीसी में तैनात हैं। यह केंद्र हीरे, कीमती पत्थरों, मोती, सोने या दूसरे कीमती धातुओं से बने आभूषणों के आयात और निर्यात से संबंधित कामकाज देखता है। रोजाना 600-700 निर्यात पार्सल और 100-150 आयात पार्सल कस्टम्स द्वारा फाइनल किए जाते हैं। पीसीसीसीसी के जरिए कुल करीब 98 प्रतिशत कट और पॉलिश हीरों का निर्यात 52 देशों में किया जाता है। इसमें अमेरिका, हॉन्ग कॉन्ग, संयुक्त अरब अमीरात, इजरायल और बेल्जियम प्रमुख हैं।

 

सुरक्षा कमान और नियंत्रण केंद्र (एससी3)

सुरक्षा कमान और नियंत्रण केंद्र एक ऐसी सुविधा है, जिसे वास्तविक समय में निगरानी और सुरक्षा संबंधी गतिविधियों पर नियंत्रण प्रदान करने के लिए शुरू किया गया। एससी3 का मुख्य उद्देश्य एक ऐसा केंद्र तैयार करना है, जहां सुरक्षाकर्मी निगरानी के साथ ही सुरक्षा से संबंधित घटनाओं पर जल्द से जल्द और कुशलतापूर्वक प्रतिक्रिया दे सकें। इसमें वीडियो निगरानी प्रणाली, एक्सेस कंट्रोल सिस्टम, अलार्म प्रणाली, आग का पता लगाने संबंधी जैसी सुरक्षा प्रणालियां शामिल हैं।

 

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