श्री मुखर्जी ने स्पष्ट किया कि देश की विविधता में एकता ही हामरी राष्ट्रीयता है
हमारे लिए कोई पराया नहीं है बल्कि सभी भारतीय हैं : मोहन भागवत
सुभाष चौधरी /प्रधान संपादक
नागपुर : देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आर एस एस के दीक्षांत समारोह में अपने संबोधन में कहा कि भारत की विविधता में एकता ही राष्ट्रीयता है. हमें विविधता एवं बहुलता का सम्मान करना होगा. हमें विभिन्न भाषा, क्षेत्र, धर्मं और सम्प्रदाय के प्रति आदर का भाव रखना होगा. उन्होंने कहा कि राष्ट्र पहले और धर्मं बाद में हैं. हमें विचारों के मतभेद के बावजूद आपस में बातचीत व विचारों के आदान प्रदान की संस्कृति विकसित करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि हमेशा से भारत एक मुक्त समाज और विश्व व्यवस्था का भाग रहा है. यहां और अन्य देशों के बीच में शिक्षा, व्यवासय , व्यवस्था, कॉमर्स एवं कला के क्षेत्र में आपस में आदान प्रदान होता रहा है . यहाँ से बुद्धिज़्म सेंट्रल एशिया और चीन में एक साथ हिंदू के दर्शन के साथ पहुंचा फिर पश्चिमी ट्रैवलर्स भारत आए और उन्होंने अपना कंसेप्ट दिया. सभी ने भारत को बहुत ही दक्ष प्रशासनिक व्यवस्था वाला देश के रूप में बताया. उन्होंने अपने साहित्य में भारत को बेहतरीन आधारभूत संरचना वाला देश बताया.
प्रणव मुखर्जी ने देश के पौराणिक विश्वविद्यालयों के नाम का उल्लेख करते हुए कहा कि तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला व मलावी और अन्य यूनिवर्सिटी के माध्यम से भारत ने पूरे विश्व को 18oo सालों तक अपना दबदबा बनाये रखा. इस देश में दुनिया के बेहतरीन दर्शनशास्त्री इंटेलेक्चुअल वैज्ञानिक रचनात्मकता, कलाकार व साहित्यकार मौजूद थे. चाणक्य के अर्थशास्त्र की चर्चा करते हुए श्री मुखर्जी ने कहा किचाणक्य का शास्त्र वास्तव में दुनिया को निर्देशित करने वाला शास्त्र रहा.
उन्होंने भारत और यूरोपियन देशों के बीच की व्यवस्था के अंतर को रेख्नाकित किया. उन्होंने बताया कि में यूरोपियन देशों एक भाषा व एक सीमा का दर्शन था लेकिन भारत में आंतरिक विविधता और बहुलता एवं बहुभाषी भारतीय राष्ट्रीयता रही. हमारा वैश्विक दर्शन वसुदेव कुटुंबकम के दर्शन पर विश्वास करने वाली व्यवस्था था. सर्वे संतु निरामया के माध्यम से भारत हमेशा पूरे विश्व को एक परिवार के रुप में मानता रहा और हम उनके कल्याण की बात सोचते रहे हैं.
उन्होंने कहा कि हमें अपनी विविधता का आदर करना चाहिए. यहाँ सदियों से आपसी सद्भाव का वातावरण रहा है. प्रणब मुखर्जी ने डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के दर्शन का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने कहा कि आपस में घृणा करना देश की राष्ट्रीयता को कमजोर करता है. उनका कहना था कि हमें विभिन्न प्रकार की रंग, समाज, धर्म, संप्रदाय व पंथ की विविधता को दरकिनार करना होगा.
प्रणब मुखर्जी ने चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य की चर्चा की. उन्होंने मौर्य साम्राज्य से लाकर गुप्त साम्राज्य के पतन के कारणों का भी उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि गुप्त साम्राज्य का प्रभाव 500 वर्षों में समाप्त हो गया. उन्होंने कहा कि भारत में 16oo वर्षों तक मुस्लिम साम्राज्य रहा.
उन्होंने बताया कि किस प्रकार से ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर कब्जा किया. उनके अनुसार ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहले भारत के पूर्वी भाग पर कब्जा जमा लिया फिर दक्षिण भारत पर कब्जा जमाया और बाद में पश्चिम भारत का बहुत बड़ा भूभाग अंग्रेज शासकों ने गिफ्ट के रूप में प्राप्त किया.
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश में विभिन्न प्रकार की संस्थाओं की स्थापना की और एक केंद्रीय शासन की व्यवस्था का प्रादुर्भाव किया. अंग्रेजों ने दो गवर्नर नियुक्त किए एक मद्रास में और एक मुंबई में. धीरे-धीरे भारत पर महारानी का शासन स्थापित हो गया. उन्होंने अपने भाषण में आगाह किया कि इंटॉलरेंस राष्ट्रीयता को कमजोर करती है. उन्होंने अपने भाषण में आधुनिक भारत की संरचना की भी चर्चा की.
उन्होंने कहा कि इसमें विभिन्न प्रकार के साहित्यकार, राजनेता एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित सभी समाज का बड़ा योगदान रहा. उन्होंने बाल गंगाधर तिलक द्वारा दिया गया नारा स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार की चर्चा की. उन्होंने कहा कि उनके इस आह्वान पर देश के सभी संप्रदाय जाति धर्म और पंथ के लोग उनके साथ खड़े हो गए थे. इसमें कोई भाषा और क्षेत्र विवाद नहीं बना.
प्रणब मुखर्जी ने आपने भाषण में द डिस्कवरी ऑफ इंडिया बुक में पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा भारत की संरचना का उल्लेख करने वाले वाक्यों की चर्चा भी की. उन्होंने स्पष्ट किया कि पंडित जवाहरलाल नेहरु ने साफ शब्दों में कहा था कि भाषा, धर्म, संप्रदाय, पंथ को पूरी तरह से अलग करके ही राष्ट्रीयता मजबूत हो सकती है. उन्होंने कहा कि अंततः हमें आजादी मिली और हम सरदार पटेल के आभारी हैं कि उन्होंने 600 से अधिक देशी रियासतों को भारत में शामिल कराया. उन्होंने कहा कि भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ तो हमने भारत को पूर्ण गणतंत्र दिया और देश के सभी समाज भाषा क्षेत्र संप्रदाय पंथ में जीने वाले लोगों को उनकी संप्रभुता की सुरक्षा की गारंटी दी.
उन्होंने कहा कि हमारे लिए आजादी कोई गिफ्ट में नहीं मिली बल्कि यह हमारे त्याग का परिणाम है. हमारी राष्ट्रीयता संविधान पर आधारित है उनसे दी हुई एक संरचना है जिस पर आधारित है.
उन्होंने कहा कि मैं कुछ सत्य बातों को आप के साथ अपने पिछले 50 वर्षों की राजनीतिक अनुभव को शेयर करना चाहता हूं कि भारत की आत्मा विविधता और सहिष्णुता में वास करती है. धर्मनिरपेक्षता हमारी आवश्यकता और हमारी संस्कृति है .जब मैं अपनी आंखें बंद करता हूं और भारत के बारे में स्वप्न देखता हूं तो यह कल्पना करता हूं कि 1.3 बिलियन लोग सैकड़ों लैंग्वेज , बोली और खान पान की विविधता से भारत की एकता कैसे संभव है. यह इसलिए कि हम किसी को भी अपना दुश्मन नहीं मानते वही हमारी भारतीयता है जो विविधता में हमारी एकता है.
उन्होंने स्पष्ट किया कि देश में हमें बहुलता और विविधता के वास्तविकता को स्वीकारना होगा. हमें उनके अपने अपने धर्म और पंथ के द्वारा प्रदत्त उनकी पूजा की पद्धतियों का भी सम्मान करना होगा.
उन्होंने यह कहते हुए चिंता व्यक्त की कि आज हम देखते हैं हमारे आस-पास लगातार हिंसा की घटनाएं बढती जा रही है. हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है. हमें इसे हतोत्साहित करने की जरूरत है क्योंकि उन्होंने कहा कि मैं आज संघ के उन सभी प्रशिक्षुओं को संबोधित कर रहा हूं जो योग्य हैं, प्रोफेशनल हैं अनुशासित हैं . उन्होंने संघ के प्रशिक्षुओं से काह कि आपसे हम आग्रह कर रहे हैं कि आप शांति के लिए काम करें. देश के प्रत्येक नागरिक का यह अधिकार है कि उसे स्वस्थ वातावरण मिले. उन्होंने कौटिल्य के उस श्लोक की चर्चा की जो संसद के गेट नंबर 6 के सामने अंकित है. उन्होंने कहा कि कौटिल्य ने देश के लिए लोगों को केंद्रित किया. लोगों को ही मुख्य बताया कि अगर प्रजा सुखी है तो राजा सुखी है.
इससे पूर्व आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि प्रणब मुखर्जी जी के नागपुर आने के विषय पर जिस तरह से देश में पक्ष और विपक्ष में बातें चली वह पूरी तरह से निरर्थक है. हमारी परंपरा के अनुसार हम हमेशा देश के प्रबुद्ध जनों को आमंत्रित करते हैं और उनसे मार्गदर्शन लेकर आगे का अपना मार्ग तय करते हैं. इसलिए हमारे लिए कोई पराया नहीं है. हमने सहृदयता से श्री मुखर्जी जि को आमंत्रित किया उन्होंने हमारा स्नेह समझ कर उसे स्वीकार किया और आज हमारे बीच हमें मार्गदर्शन करने उपस्थित हैं.
श्री भागवत ने कहा कि वास्तव में विविधता में एकता यह हमारे देश की हजारों वर्षों से परंपरा रही है. हम भारतवासी हैं. संजोग से इस धरती पर जन्म लिया पैदा हुए इसलिए हम भारतवासी हैं. सारे भारतीय हमारे बांधव हैं. यह हमारे प्रशिक्षण में भी बताया जाता है. यह केवल नागरिकता की बात नहीं है. भारत की धरती पर जन्मा प्रत्येक व्यक्ति भारतवासी है. इस मातृभूमि की इसी भाव से भक्ति करना उसका काम है. और जैसे-जैसे जिसको समझ में आता है छोटे तरीके से बड़े तरीके से सभी लोग ऐसा करते हैं. धरती ने केवल हमें पोषण के लिए या आजीविका के लिए संसाधन नहीं दिए बल्कि हम वंदे मातरम के उन पंक्तियों पर आधारित दर्शन के आधार पर देश की सेवा करें.
मोहन भगवत ने कहा कि हमारे देश के अंदर भरपूर समृद्धि चाहिए. स्वाभाविक दृष्टि से हम इस मनोवृति के बन गए कि सर्वत्र संसाधन भरपूर है. हम उसका उपयोग कर रहे हैं अपने जीवन के लिए. देश में भाषा और संप्रदायों की विविधता तो पहले से ही है. अलग-अलग प्रांतों की रचनाएं बदलती रहती है. राजनीतिक मतभेद विभिन्न विचारों में पहले से रहे है. लेकिन इस विविधता में हम सब भारत माता के पुत्र हैं और अपने अपने विविधता की विशेषता पर पक्का रहते हुए दूसरों की भावनाओं का सम्मान करते हुए स्वागत करते हुए और उनके अपने विविधता पर रहने का स्वीकार करते हैं. मिलजुल कर रहना विविधता में जो अंतरनिहित हो सकता है भारत के लिए परिश्रम करने वाले उस अंतर्निहित एकता का साक्षात्कार जीवन में रहना चाहिए.
उन्होंने कहा कि उसी संस्कृति के अनुसार इस देश के जीवन बने. सारे विश्व के भेद और स्वार्थ मिटाकर विश्व के कल्याण व सुख शांति पूर्ण जीवन देने वाला धर्म उन्हें दिया जाए. इस प्रयोजन से इस राष्ट्र को अनेक महापुरुषों ने खड़ा किया. अपने प्राणों की बलि देकर सुरक्षित रखा. अपने पसीने से सींच कर बड़ा किया. उन सभी महापुरुषों की हमारे पूर्वज होने के कारण हमें उन पर गर्व है. हम उनके आदर्शों का अनुसरण करने का अपने अपने तरीके से प्रयास करते हैं . मत मतांतर तो रहते हैं अपने अपने मत को व्यक्त करने का अधिकार है. उसका विवाद भी होता है लेकिन इन सब बातों की एक मर्यादा रहती है क्योंकि हम सब भारत माता के पुत्र हैं. उन्होंने कहा कि मत-मतांतर कुछ भी होंगे हम अपने अपने मत के द्वारा यह मानकर चल रहे हैं कि हम भारत का भाग्य बदल देंगे एक ही लक्ष्य के लिए अलग-अलग रास्ते लेने वाले लोगों को विविधता में विश्वास करना चाहिए. उससे हमारा जन जीवन समृद्ध होता है.