शिकायतकर्ता 75 वर्षीय आर एल नरूला सरकारी दफ्तर और अदालत के बीच झूल रहा है
गांव गैरतपुर बास और रायसीना की 65 एकड़ जमीन को बिल्डरों ने बेच दी
100 करोड़ की जमीन घोटाले पर सरकारी अधिकारी पर्दा डालने की कोशिश में जुटे हैं
सरकारी जमीन की सेल डीड कराने और फार्म हाउस बनाने का मामला एक दशक बाद भी अनसुलझा
40 एकड़ गांव गैरतपुर बास की पंचायती जमीन जबकि 25 एकड़ दो गांव के बीच का गैप
सुभाष चौधरी/प्रधान संपादक
गुरुग्राम । जिला गुरुग्राम के गांव गैरतपुर बास और रायसीना की 65 एकड़ जमीन को हड़पने एवं उसकी रजिस्ट्री कराने ,उस पर अवैध तरीके से फार्म हाउस निर्माण करने का मामला लगभग एक दशक बाद भी अनसुलझा है। पहले सीएम मनोहर लाल और अब अतिरिक्त मुख्य साचो द्वारा जिला मामले में ऍफ़ आई आर दर्ज करने और सख्त कार्रवाई के आदेश जारी करने के बाद भी ढाक के तीन पात वाली स्थिति बनी हुई है. जिला प्रशासन न तो कार्रवाई करने का संकेत दे रहा है और न हो इस मामले पर कुछ बोलने को तैयार है. सीएम विंडो पर शिकायत करने वाला व्यक्ति 75 वर्षीय बुजुर्ग आर एल नरूला सरकारी दफ्तर और अदालत के बीच चक्कर काट रहा है। संकेत है कि सरकारी अधिकारी मामले पर अब भी पर्दा डालने की कोशिश में जुटे हुए हैं । कभी डिमार्केशन के नाम पर तो कभी जांच के नाम पर करोड़ों रुपए की जमीन के घोटाले की तह तक जाने से अधिकारी या तो कतरा रहे हैं या फिर इस मामले में को अंजाम तक पहुंचाने के इच्छुक नहीं हैं।
मामला जिला गुड़गांव के गांव गैरतपुर बास और रायसीना का है। यहां की लगभग 65 एकड़ जमीन जो लगभग 100 करोड़ से ऊपर की कीमत की है पर दिल्ली टावर एन्ड आदर्श नामक कंपनी जो प्रसिद्ध व्यावसायी और बिल्डर अंसल बंधुओं की है का अवैध कब्जा बना हुआ है। शिकायतकर्ता रामलाल नरूला के अनुसार इसमें 40 एकड़ जमीन गांव गैरतपुर बास की पंचायती जमीन है जबकि 25 एकड़ जमीन उन दो गांव के बीच का गैप है जिस पर अवैध तरीके से कब्जा किया गया। आश्चर्यजनक रूप उसे बेच दिया गया। सारे नियमों को धता बताते हुए उसकी सेल डीड करा दी गई और उस पर फार्म हाउस का निर्माण भी कर दिया गया।
गौरतलब है कि इस मामले का खुलासा पहली बार तब हुआ जब नगर निगम के कूड़ा डंपिंग के लिए गांव गैरतपुर बास की जमीन का मामला सामने आया। इन बिल्डरों ने नगर निगम की कूड़ा डंपिंग की जमीन पर कब्जा कर लिया और बदले में आर एल नरूला की जमीन पर कूड़ा डंपिंग कराया जाने लगा. श्री नरूला ने अपनी जमीन पर कूड़ा डंपिंग का विरोध करते हुए इसके लिए प्रस्तावित जमीन की हकीकत प्रशासन के समक्ष उजागर कर दिया. जन इसकी जांच की गयी तो प्रशासनिक अधिकारी हक्के बक्के रह गए क्योंकि हकीकत में कूड़ा डंपिंग के लिए प्रस्तावित जमीन पर बिल्डर का अवैध कब्जा था.
बकौल श्री नरूला इस सम्बन्ध में उन्होंने पहली शिकायत 26 मई 2005 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से की थी। उन्होंने शिकायत में ग़ैरतपुर बॉस की 45. 58 एकड़ और ग़ैरतपुर बास एवं रायसीना गांव के बीच के गैप की 25 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा होने की जानकारी देते इस अवैध कब्जे से मुक्त करवाने की गुहार लगाई थी। लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि लंबे अर्से तक इस मामले में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के जमाने में कोई कार्रवाई नहीं हुई। लेकिन बुजुर्ग नरूला की लड़ाई जारी रही.
वर्ष 2014 में जिला गुरुग्राम के तत्कालीन डी सी शेखर विद्यार्थी ने इस कंप्लेंन पर संज्ञान लेने की हिम्मत दिखाई और उक्त जमीन की डिमार्केशन के आदेश जारी कर दिए। डिमार्केशन के दौरान इस बात का खुलासा हो गया कि वास्तव में लगभग 65 एकड़ जमीन पर अवैध तरीके से फार्म हाउस का निर्माण किया गया है और उक्त बिल्डर कंपनी से खरीदी हुई जमीन दिखाई गई है. डिमार्केशन से स्पष्ट सिद्ध हो गया कि उक्त वेशकीमती जमीन पर अंसल का अवैध कब्जा है।
बताया जाता है कि तब के डी सी के इस साहसिक कदम के खिलाफ अंसल ने चंडीगढ़ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। न्यायाधीश सूर्यकांत की अदालत ने इस मामले में 26 सितंबर 2015 को निर्णय दिया. अदालत ने अपने आदेश में साफ़ कर दिया कि 7 सदस्यों की एक कमेटी गठित कर इस जमीन की डिमार्केशन कराई जाए। अदालत के निर्णय के आलोक में तत्कालीन जिला उपायुक्त ने 7 सदस्यों की कमेटी गठित की और वर्ष 2016 में उक्त जमीन का डिमार्केशन किया गया जिससे यह स्पष्ट हो गया कि लगभग 65 एकड़ जमीन जो 100 करोड़ की कीमत की है पर अवैध कब्जा है।
जब जिले के उपायुक्त टी एल सत्यप्रकाश बने फिर एक बार यह मामला अधर में लटक गया। शिकायतकर्ता श्री नरुला जिला उपायुक्त के दफ्तरों के चक्कर लगाकर थक गए लेकिन मामला जस का तस वहीँ अटका रहा। जिला उपायुक्त के रूप में हरदीप सिंह की तैनाती के बाद फिर इसको लेकर सक्रियता बढ़ी. उन्होंने इस मामले पर संज्ञान लिया और डिमार्केशन की प्रक्रिया को हरी झंडी दी और इस संबंध में कोर्ट में केस डालने और दो गांव के बीच में गैप एरिया को ठीक कराने का आदेश जारी कर दिया।
आश्चर्यजनक रूप से तब से ही सोहना SDM की कोर्ट में बीसीएल केस की इस संबंध में सुनवाई चल रही है। अब तक इस पर निर्णय नहीं हो पाया है। हालांकि इस संबंध में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने साफ तौर पर निर्देश जारी किया था कि वीसीएल केस अगले 4 माह के अंदर निस्तारित किया जाए ।
श्री नरूला के अनुसार ग़ैरतपुर बास एवं रायसीना गांव के बीच की 25 एकड़ खेत वाली जमीन का मामला अभी डीआरओ गुड़गांव के पास लंबित है। उनका आरोप है कि इस गेप एरिया वाली जमीन को भी संबंधित बिल्डर ने बेच दिया है। शिकायतकर्ता का आरोप है कि पंचायती जमीन को अवैध तरीके से कब्जाने और बेचने के धंधे को लेकर डीडीपीओ गुरुग्राम का रवैया सुस्त है। इस मामले में बीडीपीओ की ओर से भी कार्रवाई के कदम बहुत धीरे चल रहे हैं।
उन्होंने यहां तक आरोप लगाया है कि जिला प्रशासन के अधिकारियों ने इससे संबंधित केस को जानबूझकर डिले किया गया। SDM गुड़गांव ने पत्र लिखकर इस पर की गई कार्रवाई की जानकारी डीडीपीओ गुरुग्राम से मांगी लेकिन डीडीपीओ ने किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने की जानकारी एसडीएम कार्यालय को नहीं दी. अंततः SDM गुड़गांव ने डीडीपीओ की ओर से एक्शन टेकन संबंधी रिपोर्ट नहीं देने का हवाला देते हुए शिकायतकर्ता को अपना जवाब नकारात्मक रूप में दे दिया। यानी इतना सब कुछ करने के बाद भी शिकायतकर्ता के हाथ खाली रहे.
यह स्थिति तो तब है जब मार्च 2006 में तत्कालीन सीटीएम आसिमा गर्ग ने स्वयं इस मामले की इंक्वायरी की थी और उन्होंने एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी. उक्त रिपोर्ट डीडीपीओ गुरुग्राम के पास थी जो अब उक्त कार्यालय से गायब बताई जाती है।
शिकायतकर्ता का कहना है कि SDM गुड़गांव ने इस संबंध में वीसीएल केस की हियरिंग के दौरान संबंधित कंपनी से जब लैंड रिकॉर्ड की जानकारी मांगी तब भी अंसल कंपनी के प्रतिनिधि उक्त जमीन की रिकॉर्ड प्रस्तुत करने में असफल रहे।
एक बार फिर वर्तमान सीएम से उन्होंने इसमें हस्तक्षेप की मांग करते हुए तत्काल कार्रवाई की गुहार लगाईं. उनकी शिकायत पर सीएम ने इस सम्बन्ध में ऍफ़ आई आर दर्ज कर कार्रवाई शुरू करने का आदेश जारी किया है लेकिन प्रशासन निष्क्रीय है. अभी हाल ही में गत 12 मई को भी अतिरिक्त मुख्य सचिव ने जिला प्रशासन से कार्रवाई करने को कहा लेकिन अब तक किसी कार्रवाई के कोई संकेत नहीं हैं.