जयपुर की एक अदालत ने दिया आदेश
अस्पताल के लिए मिली जमीन की हेराफेरी का मामला
सीएलयू चेंज करवा कर बेच डालने का आरोप
जयपुर। देश के प्रसिद्ध हार्ट सर्जन नरेश त्रेहान और फोर्टिस-एस्कार्ट अस्पताल के मालिकों के खिलाफ अदालत ने जयपुर में धोखाधड़ी सहित कई अन्य संगीन धाराओं के तहत मामला दर्ज करने का आदेश दिया है। उक्त मामला राजस्थान में फोर्टिस-एस्कार्ट अस्पताल की जमीन से जुड़ा हुआ है। मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट जयपुर सुनील गोयल ने अभियान संस्था की ओर से राजकुमार शर्मा की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मशहूर हार्ट सर्जन डा. नरेश कुमार त्रेहन , प्रमुख व्यवसायी रितु नन्दा, राजन नन्दा, शिवेन्द्र मोहन सिंह , मानवेन्द्र मोहन सिंह, के विरुद्ध धारा 467, 468, 471, 420, 120बी, 199, 200, 177, 181भादस के तहत एफ.आई.आर दर्ज करने के आदेश दिया है। अदालत का यह आदेश पुलिस थाना जवाहर सर्किल को दिया गया है । परिवादी की ओर से आदित्य जैन एडवोकेट कोर्ट में उपस्थित थे।
क्या है मामला ?
अदालत में दायर याचिका में यह कहा गया है कि जयपुर विकास प्राधिकरण ने जेएलएन मार्ग पर 1995 में एस्कार्ट हार्ट इंस्टीट्यूट को मात्र एक रुपए में 4.7 एकड़़ भूमि आवंटित कर दी थी। आवंटन की शर्त थी कि दस प्रतिशत बैड गरीबों के निशुल्क इलाज के लिए रहेंगे। अस्पताल इस जमीन और भवन का व्यावसायिक लाभ नहीं उठा सकते। इसका बेचने या किराए आदि के लिए स्थानांतरित नहीं किया जा सकेगा। संस्था का उद्देश्य पूरा होने या बंद होने पर यह संपत्ति राज्य सरकार के अधीन आ जाएगी।
परिवाद में बताया है कि डा. नरेश त्रेहान का उद्देश्य अस्पताल के जरिए लोगों की सेवा करना नहीं था। उनका उद्देश्य जनता की भूमि हड़प कर लाभ कमाना था। यह इस बात से स्पष्ट होता है कि उन्होंने इसका निर्माण कार्य शुरू ही नहीं किया। 30 मई 2000 को एस्कार्ट हार्ट इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर लिमिटेड के नाम से पंजाब के जालंधर में एक व्यवासियक कंपनी बना ली। जिसके मुख्य शेयर होल्डर राजन नंदा व रितु नंदा थे।
कंपनी ने इस जमीन का इस जमीन संस्थानिक से व्यावसायिक रुपांतरण करा लिया। सरकार ने यह शर्त लगा दी कि वे अपने शेयर्स को किसी दूसरी कंपनी को प्राधिकरण की शर्त के बिना ट्रांसफर नहीं कर सकेंगे। इसके बाद भी कंपनी ने 31 अगस्त 2005 को रितु नंदा के शिवेन्द्र मोहन सिंह को और दूसरे शेयर धारकों ने अपने शेयर मालवेन्द्र मोहन सिंह व फोर्टिस हॉस्पिटल को दे दिए। इसकी सूचना जयपुर विकास प्राधिकरण को नहीं दी।
इन सभी ने धोखाधड़ी और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जनता की संपत्ति हड़प ली जो गंभीर अपराध है। इस मामले में परिवादी ने 3 दिसंबर 2015 को समस्त दस्तावेज देकर जवाहर सर्किल थाने में परिवाद दिया था। इसके बाद भी कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की, तब जाकर प्रार्थी को परिवाद दायर करना पड़ा।