देश में पहली बार जानिए शहीद राजा नाहर सिंह के बारे में सनसनीखेज कानूनी खुलासा!
फरीदाबाद 9 जनवरी (आतिश)। यह सब करना मजबूरी थी, यदि मेरा मुवक्किल (राजा नाहर सिंह) 50 हजार फौज के मालिक बादशाह बहादुर को छोटी सी भेंट देने से मना करता तो उसका यह निर्णय पागलपन ही माना जाता। वह भी तब कि जब मुवक्किल की जागीर (बल्लभगढ़) मुख्यालय (दिल्ली) के बहुत ही करीब हो और उसकी खुद की फौज भी विद्रोह पर उतर आई हो। यदि वह बादशाह को भेंट देने से इनकार करता तो हो सकता है कि किसी सुबह देखने को मिलता कि उसकी ही फौज के कुछ लोग उसके और परिवार के खिलाफ हो जाते और उनसे दया की कोई उम्मीद नहीं थी।
यह तर्क राजा नाहर सिंह के अटार्नी एचएम कोर्टनी ने 19 दिसंबर 1858 को शुरू हुई अदालती कार्रवाई में दिया था। अदालत मेें राजा नाहर सिंह पर विद्रोहियों (बहादुर शाह जफर और फौज) से राजद्रोह संबंधी पत्राचार करने, उन्हें धन(स्वर्ण मोहरें), फौजी और अस्त्र शस्त्र उपलब्ध कराने, ब्रिटिश परगना पलवल को हड़पने और ब्रिटिशर्स के खिलाफ युद्ध करने का चार्ज लगाया गया था।
खुद राजा नाहर सिंह ने अदालत में अपने को निर्दाेष साबित करने के लिए प्रश्न के रूप में ही जवाब दिया था कि ‘आप क्या करते जब आप ऐसी अनिश्चित परिस्थितियों में हो कि आप चारों ओर से नमक हराम और दुष्ट सलाहकारों से घिरे हों और आपकी ही फौज का एक हिस्सा दिल्ली में छिड़े धर्मयुद्ध में शामिल होने को आमादा हो।
अटार्नी एचएम कोर्टनी ने अदालत को बताया कि राजा ने माइकल टेलर, रीड्स, स्पेंसर जैसे कई यूरोपियन और ईसाईयों को बचाने में अहम भूमिका निभाई। गजेटियर ऑफ दिल्ली(इंडिया) में 1857 के विद्रोह के बारे मेें यह बातें दर्ज हैं। इनसे लगता है कि राजा नाहर सिंह देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में अपनी ही फौज, जनता की भावनाओं और बादशाह बहादुर शाह जफर भारी भरकम फौज के दबाव में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में शामिल हुए थे।
अदालत में राजा नाहर सिंह और उनके अटार्नी की ओर से पेश किए गए तर्क बताते हैं कि ब्रिटिश कंपनी के साम्राज्य के खिलाफ छिड़े 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में राजा नाहर सिंह मजबूरी में शामिल हुए थे। गजेटियर ऑफ दिल्ली (इंडिया) में प्रकाशित इस अदालती कार्रवाई के अलावा 1857 की क्रांति के बारे में लिखा है कि उस समय अधिकतर जागीरदारों ने दोहरा चरित्र प्रस्तुत किया। जागीरदार विद्रोही सिपाहियों और ब्रिटिश कंपनी दोनों का ही साथ देने का खेल खेल रहे थे। दिल्ली के पास के कुछ जागीरदारों ने स्वार्थ में विद्रोहियों का साथ दिया जबकि बहुत थोड़े ही सच्चाई से विद्रोह में शामिल हुए।
गजेटियर के मुताबिक राजा और उनके अटार्नी के वजनदार तर्कों के बावजूद बदले की आग में झुलस रहे ब्रिटंस ने राजा नाहर सिंह को दोषी करार देते हुए 2 जनवरी 1858 को फांसी की सजा सुनाई। 9 जनवरी 1858 को चांदनी चौक कोतवाली में फांसी देकर शहीद कर दिया गया।
अदालती कार्रवाई में बचाव के लिए भले ही राजा और उनके अटार्नी ने कुछ तर्क दिए हों लेकिन उनकी शहादत इस बात का सुबूत है कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने ब्रिटिश कंपनी के साम्राज्य के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी। उनके परिवार के वंशज होने का दावा करने वाले राजकुमार तेवतिया कहते हैं कि देश में ब्रिटिशर्स से सिर्फ दो ही राजाओं ने युद्ध किया पहला टीपू सुल्तान और दूसरे उनके पूर्वज राजा नाहर सिंह। आज राजा नाहर सिंह के 160वें शहीदी दिवस पर शहर में कई जगह उनको श्रद्धांजलि के कार्यक्रम किए जा रहे है।