नई दिल्ली : लम्बे अर्से बाद सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर मंगलवार को सुनवाई शुरू तो हुई लेकिन फिर लम्बे समय के लिए टाल दी गयी. शीर्ष न्यायालय ने ऐसा निर्णय मामले के अलग-अलग पक्षकारों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद लिया. मिडिया की ख़बरों के अनुसार इसकी अगली सुनवाई अब 8 फरवरी 2018 को होगी। आज देश के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और अब्दुल नजीर की खंडपीठ इसकी सुनवाई कर रही थी .
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला दिया गया था. इस फैसले के खिलाफ की सम्बंधित पक्षों ने सुप्रीम में अपील याचिका दायर की थी जिस पर आज सुनवाई शुरू हुई।
गौरतलब है कि बुधवार 6 दिसंबर को विवादित बावरी ढांचा गिराए जाने को 25 साल पूरे होने को है लेकिन मामले का निपटारा अब भी लंबित है। 25 साल पूर्व 6 दिसंबर 1992 को हजारों कारसेवकों ने कथित रूप से 16वीं सदी में बने बाबरी ढांचे को ढहा दिया था तब से यह विवाद और तूल पकड़ गया।
वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच 3 बराबर-बराबर हिस्सों में बांटने का निर्णय सुनाया था।
मीडिया की खबरों में दावा किया गया कि एक एनजीओ की कर्ताधर्ता तीस्ता सीतलवाड़ सहित कई तथाकथित सामाजिक एक्टिविस्ट्स ने याचिका दायर कर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में हस्तक्षेप करने की अपील की.
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तीन सदस्यों वाली बेंच के सामने इलाहाबाद हाई कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेजों को पढ़ा और दलील दी कि सभी सबूत कोर्ट के सामने पेश नहीं किए गए हैं. दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश राज्य का पक्ष रख रहे अडिशनल सॉलिसिटिर जनरल तुषार मेहता ने कपिल सिब्बल के सभी दावों को गलत करार दिया. उन्होंने कोर्ट को बताया कि सभी आवश्यक दस्तावेज जमा करा दी गयीं हैं.
उल्लेखनीय है कि कपिल सिब्बल सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील है. उन्होंने अपनी दलील में अडिशनल सॉलिसिटिर जनरल के दावों पर यह कहते हुए सवाल उठाया और कि इतने कम समय में 9000 पन्नों के दस्तावेज कैसे जमा हुए ? सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी शिकायत की कि उन्हें और मामले के अन्य याचिकाकर्ताओं को भी सभी संबंधित दस्तावेज मुहैया नहीं कराये गए हैं.
मीडिया की खबर में में भी दावा किया गया कि आज केंद्र सरकार की ओर से इस अति संवेदनशील मामले की सुनवाई, बिना स्थगन के रोज करने की मांग की गयी. इस पर आपत्ति जताते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने 2019 के आम चुनाव के बाद इसकी सुनवाई करने की मांग की. सिब्बल का तर्क था है कि 2019 के लोक सभा चुनाव में इस मसले का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश हो सकती है. उन्होंने दलील दी कि जब भी इस मामले की सुनवाई होगी, कोर्ट के बाहर भी इसका प्रभाव पड़ेगा. इसलिए सिब्बल ने कानून व्यवस्था बनाए रखने का हवाला देते हुए 15 जुलाई 2019 के बाद इसकी सुनवाई करने की मांग की.
खबर है कि सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने सभी दस्तावेजों और सबूतों का अनुवाद करने के लिए पर्याप्त समय की मांग की. दूसरी तरफ शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट ने उनका सुझाया फॉर्म्यूला मान लिया है.
कोर्ट के बाहर मिडिया में यह भी चर्चा तैरती रही कि वरिष्ठ कपिल सिब्बल, राजीव धवन व अन्य याचिकाकर्ताओं के वकीलों इस मामले में कम से कम 7 जजों की बेंच गठित करने पर जोर दिया है. सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 8 फरवरी 2018 की तारीख निर्धारित की.