निजी भूमि पर भी मकान बनाने के लिए अब प्रति मकान 2.50 लाख रुपये तक की केंद्रीय सहायता उपलब्ध
आवास और शहरी मामले मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने अनुकूल माहौल के बावजूद निजी क्षेत्र द्वारा निवेश करने से हिचकिचाने पर सवालिया निशान लगाया
नीति का उद्देश्य 8 पीपीपी विकल्पों के तहत किफायती आवास के लिए निजी और सार्वजनिक दोनों ही भूमि का दोहन करना है
नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने आज किफायती आवास के लिए नई सावर्जनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) नीति की घोषणा की है। इसके तहत अब से निजी भूमि पर भी प्राइवेट बिल्डरों द्वारा निर्मित किए जाने वाले प्रत्येक मकान के लिए 2.50 लाख रुपये तक की केंद्रीय सहायता दी जाएगी। इसके अलावा, शहरी क्षेत्रों में सरकारी भूमि पर क्रियान्वित होने वाली किफायती आवास परियोजनाओं में निजी निवेश की संभावनाएं भी काफी हद तक बढ़ जाएंगी।
आवास और शहरी मामले मंत्री श्री हरदीप सिंह पुरी ने इस नीति की घोषणा की है, जिसमें किफायती आवास वर्ग में निवेश करने के वास्ते निजी क्षेत्र को आठ पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) विकल्प दिए गए हैं। वह मुंबई में अचल परिसंपत्ति से जुड़े निकाय एनएआरईडीसीओ द्वारा आयोजित ‘अचल परिसंपत्ति और बुनियादी ढांचा निवेशक शिखर सम्मेलन-2017’ को संबोधित कर रहे थे। श्री पुरी ने बताया कि इस नीति का उद्देश्य सरकार, डेवलपर्स और वित्तीय संस्थानों के समक्ष मौजूद जोखिमों को उन लोगों के हवाले कर देना है, जो उनका प्रबंधन बेहतर ढंग से कर सकते हैं। इसके अलावा इस नीति के तहत 2022 तक सभी के लिए आवास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अल्प प्रयुक्त एवं अप्रयुक्त निजी और सार्वजनिक भूमि का उपयोग भी किया जा सकता है।
निजी भूमि पर किफायती आवास में निजी निवेश से जुड़े दो पीपीपी मॉडलों में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के ऋण संबंधी सब्सिडी घटक (सीएलएसएस) के तहत बतौर एकमुश्त भुगतान बैंक ऋणों पर ब्याज सब्सिडी के रूप में प्रति मकान लगभग 2.50 लाख रुपये की केन्द्रीय सहायता देना भी शामिल है। दूसरे विकल्प के तहत अगर लाभार्थी बैंक से ऋण नहीं लेना चाहता है तो निजी भूमि पर बनने वाले प्रत्येक मकान पर डेढ़ लाख रुपये की केंद्रीय सहायता प्रदान की जाएगी।
श्री पुरी ने बताया कि राज्यों, प्रमोटर निकायों और अन्य हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद आठ पीपीपी विकल्प तैयार किए गए हैं जिनमें से छह विकल्प सरकारी भूमि का उपयोग करते हुए निजी निवेश के जरिए किफायती आवास को बढ़ावा देने से संबंधित हैं। सरकारी भूमि के इस्तेमाल वाले छह मॉडल निम्नलिखित हैं:-
डीबीटी मॉडल: इस विकल्प के अंतर्गत प्राइवेट बिल्डर सरकारी भूमि पर आवास की डिजाइनिंग के साथ-साथ इसका निर्माण कर इन्हें सरकारी प्राधिकारियों को हस्तांतरित कर सकते हैं। निर्माण की सबसे कम लागत के आधार पर सरकारी भूमि आवंटित की जाएगी। तय पैमाने पर आधारित सहमति के अनुरूप परियोजना की प्रगति के आधार पर सरकारी प्राधिकारी द्वारा बिल्डरों को भुगतान किया जाएगा और खरीदार सरकार को भुगतान करेगा।
क्रॉस-सब्सिडी वाले आवास का मिश्रित विकास: प्राइवेट बिल्डरों को दिए गए प्लॉट पर निर्मित किए जाने वाले किफायती आवासों की संख्या के आधार पर सरकारी भूमि का आवंटन किया जाएगा। ऊंची कीमतों वाले भवनों अथवा वाणिज्यिक विकास से अर्जित होने वाले राजस्व से इस सेगमेंट के लिए सब्सिडी दी जाएगी।
वार्षिकी आधारित रियायती आवास: सरकार के स्थगित वार्षिकी भुगतान के सापेक्ष बिल्डर निवेश करेंगे। बिल्डरों को भूमि का आवंटन आवास निर्माण की यूनिट लागत पर आधारित है।
वार्षिकी सह-पूंजी अनुदान आधारित किफायती आवास : वार्षिकी भुगतान के अतिरिक्त बिल्डरों को एकमुश्त भुगतान के रूप में परियोजना लागत के एक हिस्से का भुगतान किया जा सकता है।
प्रत्यक्ष संबंध स्वामित्व वाले आवास: उपर्युक्त चार मॉडलों के तहत बिल्डरों को सरकारी मध्यस्थता के जरिए भुगतान और लाभार्थियों को आवासों के हस्तांतरण के विपरीत इस विकल्प के तहत प्रमोटर सीधे खरीदार के साथ सौदा करेंगे और लागत राशि वसूलेंगे। सार्वजनिक भूमि का आवंटन आवास निर्माण की यूनिट लागत पर आधारित है।
प्रत्यक्ष संबंध किराया वाले आवास : सरकारी भूमि पर निर्मित आवासों से प्राप्त किराया आमदनी के जरिए बिल्डरों द्वारा लागत की वसूली की जा सकती है।
सरकारी भूमि आधारित इन छह पीपीपी मॉडलों के तहत लाभार्थी प्रति मकान 1.00 लाख से लेकर 2.50 लाख रुपये तक की केन्द्रीय सहायता पा सकते हैं, जिसका प्रावधान प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के विभिन्न अवयवों के तहत किया गया है। लाभार्थियों की पहचान प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के मानकों के अनुसार की जाएगी।
श्री पुरी ने किफायती आवास के सेगमेंट में निजी क्षेत्र के अब तक प्रवेश न करने पर चिंता जताई, जबकि प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) में इसके लिए अपार संभावनाएं हैं। इसके अलावा अनेक तरह की रियायतों और प्रोत्साहनों के जरिए अनुकूल स्थितियां भी बना दी गई हैं। इस सेगमेंट के लिए ढांचागत दर्जे की मंजूरी भी इन रियायतों में शामिल है।
केपीएमजी और एनएआरईडीसीओ द्वारा पिछले महीने एक प्रकाशन में दिये गये सुझाव के तहत अचल परिसंपत्ति क्षेत्र में विकास के एक नये युग के शुभारंभ के लिए ‘आगे की राह’ का उल्लेख करते हु आवास एवं शहरी मामले मंत्री श्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि सरकार ने इसमें निहित प्रत्येक सुझाव के मद्देनजर आवश्यक कार्रवाई पहले ही शुरू कर दी है। इस बारे में विस्तार से बताते हुए श्री पुरी ने कहा कि पिछले ही हफ्ते उन्होंने 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले 53 शहरों और राज्यों की राजधानियों में एफएसआई/एफएआर मानकों की समयबद्ध समीक्षा की घोषणा की है, ताकि शहरों में मौजूद अपर्याप्त भूमि का बेहतर उपयोग संभव हो सके।
मंत्री महोदय ने यह जानकारी दी कि परिधीय गांवों में शहरी आवास परियोजनाओं को इजाजत देने के बारे में जल्द ही कोई राय बनाई जाएगी। इस बारे में ग्रामीण विकास मंत्रालय से बातचीत जारी है। भवन निर्माण योजनाओं और निर्माण परमिटों के लिए समयबद्ध मंजूरी हेतु ऑनलाइन व्यवस्था पहले ही मुंबई और दिल्ली में की जा चुकी है। इसी तरह की व्यवस्था जल्द ही 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले 53 शहरों में भी की जाएगी। श्री पुरी ने जानकारी दी कि मॉडल किराएदारी अधिनियम और राष्ट्रीय रेंटल हाउसिंग नीति की घोषणा जल्द ही की जाएगी।
श्री पुरी ने यह कहते हुए निजी डेवलपरों से मौजूदा अनुकूल माहौल में किफायती आवास के क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों से लाभ उठाने का आह्वान किया कि ‘अब इस विषय पर जारी बहस पर विराम लगाने और आवश्यक कदम उठाने का वक्त आ गया है।’