अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरपी गोयल की अदालत ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
532 पृष्ठ का अदालत ने दिया फैसला
13 दोषियों को 5-5 हजार रुपए जुर्माने भी भरने होंगे
4 दोषियों को 3850-3850 रुपए जुर्माने भी भरने होंगे
14 दोषियों को जेल अवधि को पर्याप्त मानते हुए किया अंडरगोन
अभियोजन पक्ष ने की थी 13 दोषियों को फांसी की सजा की मांग
वर्ष 2012 की 18 जुलाई को घटित हुई थी मारुति प्लांट में ङ्क्षहसात्मक घटना
कंपनी के एचआर हैड अवनीश देव की हुई थी मौत, कंपनी के 94 अधिकारी हुए थे घायल
गुडग़ांव (अशोक): बहुचर्चित मारुति सुजूकी हिंसात्मक प्रकरण में शनिवार को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरपी गोयल की अदालत ने दोषियों एवं अभियोजन पक्ष की उपस्थिति में अपना फैसला देर सायं सुना दिया है। खचाखच भरे अदालत कक्ष में पूरी सुरक्षा व्यवस्था के बीच न्यायाधीश आरपी गोयल ने अपने 532 पृष्ठ के फैसले में सभी 31 दोषियों को सजा सुना दी है, जिसमें 13 दोषियों को भादंस की धारा 302, 307, 120बी, 436, 427, 323, 452, 201 व 34 के तहत आजीवन कारावास एवं 5-5 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है। इसी प्रकार 4 दोषियों को 323, 325, 452, 147, 148, 149 के तहत 5-5 साल की कैद व 3850-3850 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। न्यायाधीश ने 14 दोषियों को जेल में काटी गई अवधि को पर्याप्त सजा मानते हुए उन्हें अंडरगोन कर दिया है, लेकिन अदालत ने इन सभी 14 दोषियों पर 2500-2500 रुपए जुर्माना भी लगाया है। जुर्माने का भुगतान करने पर उन्हें जेल से रिहा कर दिया जाएगा। बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं ने देर सायं ही सभी 14 दोषियों के जुर्माने का भुगतान अदालत में कर दिया, जिस पर अदालत ने जेल अधीक्षक को आदेश जारी किए कि इन सभी 14 दोषियों ने अपना जुर्माना का भुगतान अदालत में कर दिया है। इसलिए उन्हें जेल से रिहा कर दिया जाए। देर सायं इन सभी दोषियों को जेल से रिहा कर दिया जाएगा। जब अदालत ने अपना फैसला सुनाया तो अदालत में सभी 31 दोषी अपने अधिवक्ताओं के साथ पुलिस संरक्षण में मौजूद थे। उन्हें जेल से लाया गया था।
अभियोजन पक्ष ने की थी फांसी की सजा की मांग
गत दिवस दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की बहस सुनने के बाद अदालत ने सभी 31 दोषियों की सजा पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जो अदालत ने शनिवार को सुना दिया। अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता अनुराग हुड्डा, लालसिंह यादव, एसएस गुलिया, विकास पाहवा व दयाचंद गुप्ता ने वर्ष 2012 की 18 जुलाई को घटित हुई हिंसात्मक घटना, जिसमें एचआर हैड अवनीश देव की मौत हो गई थी। इस मामले को जघन्य अपराध की श्रेणी में रखते हुए 13 दोषियों को फांसी की सजा देने का आग्रह अदालत से किया था और उन्होंने फांसी की दिए जाने से संबंधित कई दलीलें भी अदालत में पेश की थी, जबकि बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं वृंदा ग्रोवर, रेबेका जोन, राजेंद्र पाठक, मोनू, राजकुमार, संजीत वत्स आदि ने अभियोजन पक्ष की दलीलों के विरोध में कई उच्च न्यायालयों व सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों की दलीलें भी दी थीं और अदालत से आग्रह किया था कि सभी दोषी युवावस्था में हैं और इनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है। इसलिए उनके साथ नरमी बरतते हुए उन्हें उम्रकैद से अधिक की सजा न दी जाए।
इन्हें मिला आजीवन कारावास
राममेहर, संदीप ढिल्लन, रामविलास, सर्वजीत सिंह, पवन कुमार, सोहन कुमार, प्रदीप गुर्जर, अजमेर सिंह, सुरेश कुमार, अमरजीत, धनराज भामी, योगेश कुमार सभी श्रमिक यूनियन पदाधिकारी तथा घटित हुए विवाद का मुख्य दोषी जियालाल।
18 दोषियों के लिए की थी 7-7 साल की सजा की मांग
इसी प्रकार अन्य 4 व 14 दोषियों के लिए भी अभियोजन पक्ष ने 7-7 साल की सजा देने का आग्रह अदालत से किया था और अपने आग्रह को प्रबल बनाने के लिए कई न्यायालयों के फैसलों का हवाला दिया था। अभियोजन पक्ष ने अदालत से यह भी आग्रह किया था कि यदि इन दोषियों को समुचित सजा नहीं दी गई तो इसका समाज व औद्योगिक क्षेत्रों में भी गलत संदेश जाएगा। इस प्रकार की घटना को करने से पूर्व श्रमिक कई बार सोचेंगे। इसलिए उन्हें सजा देनी जरुरी है, जबकि बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं ने अदालत से आग्रह किया था कि दोषियों के परिवारों में माता-पिता वृद्ध हैं और उनके यहां कोई अन्य कमाने वाला भी नहीं है। छोटे-छोटे बच्चे हैं और इनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है। इसलिए उन्हें कम से कम सजा दी जाए।
4 दोषियों को दी 5-5 साल की कैद
अदालत ने दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की दलीलों को सुनने के बाद 532 पृष्ठ के फैसले में 4 दोषियों रामसबद, इकबाल सिंह, जोगेंद्र सिंह व नवीन पुत्र बलवान को 5-5 साल की कैद व 3850-3850 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। अदालत का कहना था कि अधिकांश दोषी जेल में करीब 4 साल बिता चुके हैं। वे अब बाकी की सजा जेल में ही काटेंगे। ये सभी दोषी जमानत पर रिहा हुए थे।
जेल अवधि को पर्याप्त मानते हुए इन्हें किया रिहा
14 दोषियों विजयलाल, आनंद, विशाल भारत, सुनील कुमार, प्रवीण कुमार, कृष्ण लांगड़ा, विरेंद्र, हरमिंद्र सिंह, कृष्ण कुमार, नवीन पुत्र महासिंह, शिवाजी, सुरेंद्र, प्रदीप कुमार और नवीन कुमार को अदालत ने भादंस की धारा 325 के तहत उनकी जेल अवधि को पर्याप्त सजा मानते हुए उन्हें अंडरगोन कर दिया है और उनके ऊपर जुर्माना भी लगाया है। यानि कि जुर्माने का भुगतान कर देने पर इन दोषियों को जेल से रिहा कर दिया जाएगा।
कितनी होती है उम्रकैद….?
मारुति सुजूकी प्रकरण में अदालत के फैसले की प्रतिक्षा में शनिवार की प्रात: से ही दोषियों व उनके परिजनों, शुभचिंतकों तथा श्रमिक संगठनों, मीडिया का जमावड़ा अदालत परिसर में लगना शुरु हो गया था। 5 नंबर अदालत कक्ष के बाहर दोषियों के परिजन डेरा डाले पड़े थे। सभी को अदालत के फैसले का इंतजार था। न्यायाधीश ने अधिवक्ताओं को बताया कि सायं करीब 4 बजे फैसला सुनाया जाएगा। 4 बजते-बजते अदालत परिसर में फैसले को सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोगों का तांता लगा दिखाई दिया। जब अदालत ने 13 दोषियों को उम्रकैद व जुर्माने की सजा सुनाई तो परिजनों की आंखों में आंसू छलक गए। परिजन अधिवक्ताओं से यह स्पष्ट करते हुए दिखाई दिए कि उम्रकैद कितने वर्षों की होती है। सर्वजीत की बहन ने यह सवाल कई अधिवक्ताओं से किया, लेकिन अधिवक्ता उसे कोई स्पष्ट जबाव नहीं दे सके। उनका यही कहना था कि उम्रकैद की परिभाषा हर प्रदेश में अलग-अलग है। अदालत में आए सभी 31 दोषियों के परिजन अपने-अपने बेटों से मिलने के लिए आतुर दिखाई दिए, लेकिन पुलिस के भारी बंदोबस्त के कारण वे नहीं मिल सके।
अदालत परिसर में रही पूरी सुरक्षा व्यवस्था
गुडग़ांव, 18 मार्च, (अशोक): अदालत के फैसले को सुनाए जाने को लेकर अदालत परिसर में भारी सुरक्षा व्यवस्था रही। सैंकड़ों की संख्या में अदालत परिसर व अदालत की ओर जाने वाली सभी सडक़ों पर हर व्यवस्था से लैस पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। अदालत परिसर की सुरक्षा व्यवस्था के प्रभारी जगदीश ने बताया कि क्षेत्र की खांडसा रोड चौकी प्रभारी अपने दल-बल के साथ अदालत परिसर में मौजूद रहे। अदालत परिसर के सभी 9 द्वारों पर परिसर में आने-जाने वाले लोगों की जांच पुलिसकर्मियों द्वारा की गई। किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए पुलिस पूरी तरह से तैयार दिखाई दी। शहर पुलिस थाना प्रभारी के अलावा क्षेत्र के एसीपी भी अदालत परिसर में सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेते दिखाई दिए। जिला प्रशासन व सीआईडी पल-पल की खबरें चंडीगढ़ सरकार को भेजते दिखाई दिए। सरकार भी इस मामले को लेकर गंभीर थी और प्रशासन को आदेश दिए हुए थे कि हर स्थिति पर नजर रखी जाए और किसी प्रकार की अप्रिय घटना घटित होने न पाए। जिला प्रशासन को आशंका थी कि अदालत के फैसले आने के बाद श्रमिक संगठन शायद कोई कार्यवाही कर सकते हैं। इस सब से निपटने के लिए प्रशासन ने फायर बिग्रेड, दंगा रोधक दस्ता, वज्र वाहन आदि की व्यवस्था की हुई थी, लेकिन श्रमिक संगठनों ने किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की। फैसला आ जाने के बाद सभी दोषियों के जेल भेज दिए जाने के बाद उनके परिजन व शुभचिंतक भी अदालत परिसर से चले गए और तभी जिला व पुलिस प्रशासन ने राहत की सांस ली।
मारुति के दोनों प्लांटों में रही कड़ी सुरक्षा
अदालत के फैसले को लेकर जिला प्रशासन ने गुडग़ांव व आईएमटी मानेसर स्थित मारुति सुजूकी के दोनों प्लांटों में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की हुई थी, ताकि फैसले के आने के बाद किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना घटित न हो सके। दोनों प्लांटों के आस-पास बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। हालांकि जिला प्रशासन ने पहले से ही धारा 144 लगा दी थी, ताकि श्रमिक व श्रमिक संगठन किसी प्रकार की कोई सभा या बैठक न कर सकें। यह व्यवस्था जिला प्रशासन ने पिछले कई दिनों से यानि कि 10 मार्च से पहले ही कर दी थी, जब अदालत ने आरोपियों को दोषी करार देकर उनकी सजा पर बहस सुनने व उनकी सजा पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में दी जाएगी चुनौती
शनिवार को अदालत ने दोषियों की सजा पर फैसला सुना दिया है। जहां 13 दोषियों को उम्रकैद व वहीं 4 दोषियों को 5-5 साल की कैद की सजा सुनाई है। अदालत के फैसले के सुनाए जाने के समय सभी 31 दोषी व उनकी वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर, स्थानीय अधिवक्ताओं के साथ अदालत में उपस्थित रहीं। वृंदा ग्रोवर ने बताया कि 17 दोषियों के खिलाफ दिए गए अदालत के फैसले को पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी। उन्होंने बताया कि अदालत में मौजूद सभी 17 दोषियों के वकालतनामे भरवा दिए गए हैं और उनको अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरपी गोयल से प्रमाणित भी करा दिए हैं। दोषियों ने पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय की अधिवक्ता तरन्नुम चीमा को अपना अधिवक्ता नियुक्त किया है। उन्हीं के नाम के वकालतनामे अदालत से प्रमाणित कराए गए हैं। इस मामले में उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता आरएस चीमा अदालत में बहस कर दोषियों को न्याय दिलाएंगे।
न्यायाधीश ने की दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं के सहयोग की सराहना
दोषियों को सजा सुनाने के बाद अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरपी गोयल ने कहा कि सभी दोषियों के साथ न्याय करने में न्याय के सिद्धांत के अनुसार किसी प्रकार की कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी गई है। सभी दोषियों को प्राकृतिक न्याय प्राप्त करने के अधिकार का पूरा ध्यान उन्होंने फैसले में रखा है। उन्होंने अभियोजन पक्ष व बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं के धैर्य एवं उनकी कार्य प्रणाली की सराहना करते हुए कहा कि दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं ने अदालत को पूरा सहयोग दिया है। न्यायाधीश का कहना है कि उन्हीं के प्रयासों व सहयोग द्वारा ही वह इस बहुचर्चित मामले में इतने कम समय में फैसला दे पाए हैं। दोषियों को सजा सुनाने को लेकर कहा कि दोषी उनके फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील कर सकते हैं, जिसके लिए दोषी पूरी तरह से स्वतंत्र हैं।
अदालत ने दोषियों को उपलब्ध कराई फैसले की प्रतियां
अदालत का फैसला आ जाने के बाद न्यायाधीश ने दोषियों को फैसले की प्रतियां भी दी। अदालत ने बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं को भी फैसले की प्रतियां दी, ताकि वे अपने मुवक्किलों को न्याय दिलाने के लिए इस अदालत के फैसले के खिलाफ पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सके। अदालत ने अधिवक्ताओं से यह भी आग्रह किया कि यदि उन्हें फैसले की अन्य प्रतियों की भी जरुरत है तो उन्हें उपलब्ध करा दी जाएंगी।