भारतीय वैज्ञानिकों ने केले के रेशों से घावों के लिए पर्यावरण-अनुकूल ड्रेसिंग विकसित की

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नई दिल्ली : केले के रेशों का उपयोग करके घावों के लिए बनाई गई पर्यावरणअनुकूल ड्रेसिंग सामग्री घाव की देखभाल के लिए एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करती है। विश्व  के सबसे बड़े केले की खेती वाले देश भारत में केले के छद्म तने (स्यूडो स्टेम्सप्रचुर मात्रा में हैंजिन्हें कटाई के बाद फेंक दिया जाता है।

एक अग्रणी प्रयास मेंविज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत  एक स्वायत्त संस्थान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उच्च अध्ययन संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी आईएएसएसटीके वैज्ञानिकों ने केले के छद्म तनेजिसे अक्सर कृषि अपशिष्ट माना जाता हैको घावों के उपचार के लिए पर्यावरणअनुकूल घाव ड्रेसिंग सामग्री में बदल दिया है। .

भारतीय वैज्ञानिकों ने केले के रेशों से घावों के लिए पर्यावरण-अनुकूल ड्रेसिंग विकसित की 2प्रोफेसर देवाशीष चौधरी और प्रोफेसर (सेवानिवृत्तराजलक्ष्मी देवी के नेतृत्व मेंआईएएसएसटीडीकिन यूनिवर्सिटी संयुक्त पीएचडी कार्यक्रम में एक शोध विद्वान मृदुस्मिता बर्मन सहित अनुसंधान टीम ने  एक उत्कृष्ट यांत्रिक शक्ति और एंटीऑक्सीडेंट गुणों वाला एक बहुक्रियाशील (मल्टीफंक्शनल)  पैच बनाने के लिए केले के रेशों को चिटोसन और ग्वार गम जैसे जैव बहुलकों  (बायोपॉलिमर्स)  के साथ कुशलतापूर्वक संयोजित किया है।

इसे एक कदम और आगे बढ़ाते हुएशोधकर्ताओं ने विटेक्स नेगुंडो एलपौधे के सत्व (एक्स्ट्रेक्ट)  के साथ इस पैच को लोड कियाजो कृत्रिम परिवेशीय औषधि निकास (इन विट्रो ड्रग रिलीज)  और जीवाणुरोधी एजेंटों के रूप में पौधे के सत्वमिश्रित  केले के रेशे  (फाइबर) –बायोपॉलीमर मिश्रित पैच की क्षमताओं का प्रदर्शन करता है। इस अभिनव ड्रेसिंग सामग्री को बनाने में उपयोग की जाने वाली सभी सामग्रियां प्राकृतिक और स्थानीय रूप से उपलब्ध हैं और जो विनिर्माण प्रक्रिया को सरललागत प्रभावी और गैर विषैली (नॉनटॉक्सिक)  बना देती  हैं।

घाव की ड्रेसिंग सामग्री घाव की देखभाल के लिए एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करती है और प्रचुर मात्रा में केले के पौधे के लिए अतिरिक्त उपयोग का सुझाव देती हैजिससे किसानों को लाभ हो सकता है और पर्यावरणीय प्रभाव भी  कम हो सकता है।

प्रोफेसर चौधरी कहते हैं  कि  यह जांच घाव भरने में एक नए युग का द्वार खोलने के साथ ही  कम लागत वालाविश्वसनीय और पर्यावरण के अनुकूल ऐसा विकल्प प्रस्तुत  करती है जो जैव चिकित्सकीय  (बायोमेडिकलअनुसंधान में महत्वपूर्ण क्षमता रखती है।” केले के फाइबरबायोपॉलिमर मिश्रित यह ड्रेसिंग अपने व्यापक अनुप्रयोगों एवं  स्वास्थ्य और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव के साथ घाव की देखभाल में क्रांति ला सकती है। एल्सेवियर ने हाल ही में इस कार्य  को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल मैक्रोमोलेक्युलस में प्रकाशित किया है ।

इस अभूतपूर्व शोध को हाल ही में एल्सेवियर द्वारा इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल मैक्रोमोलेक्यूल्स में प्रकाशित किया गया हैजो वैज्ञानिक समुदाय में इसके महत्व को और अधिक  उजागर करता है।

प्रकाशन लिंकhttps://doi.org/10.1016/j.ijbiomac.2024.129653

किसी भी स्पष्टीकरण के लिएप्रोफेसर देवाशीष चौधरी devasish@iasst.gov.in से सम्पर्क कर सकते हैं

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