यूपी में हिंदुओं को मिली बड़ी कामयाबी : लाक्षा गृह का मालिकाना हक मिला

Font Size

बागपत । पहले राम मंदिर, फिर ज्ञानवापी और अब लाक्षागृह जी हां , वही लाक्षागृह जहां महाभारत काल में कौरवों ने अपने चचेरे भाई यानी पांडवों को जलाकर मारने की नाकाम कोशिश की थी। इस धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर पर लंबी कानूनी लड़ाई के बाद हिंदुओं को अब इसका मालिकाना हक मिल गया। हिंदू पक्ष का मुस्लिम पक्ष के साथ लंबा विवाद चला और अदालत ने हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया। विवाद शुरू होने के साथ ही इस पर पुरातत्व विभाग का कब्जा था।

उत्तर प्रदेश राज्य के बागपत जिले के गांव बरनावा में अवस्थित लाक्षागृह जो लगभग 108 बीघे में फैला हुआ है । इस पर पिछले 53 वर्षों से कानूनी विवाद चल रहा था। हिंदू पक्ष इसे महाभारत काल का लाक्षागृह बता रहा था तो मुस्लिम पक्ष इस स्थल को सूफी संत बदरुद्दीन शाह की मजार बताकर कब्जा करने की कोशिश में लगा हुआ था। बागपत की कोर्ट में सभी प्रमाणों और साक्ष्यों के आधार पर लंबी बहस हुई और अब इस स्थल का मालिकाना हक हिंदू पक्ष को दे दिया गया।

लक्ष मंडप क्षेत्र पर कानूनी विवाद 1970 से शुरू हुआ था। मुस्लिम पक्षकार मुकीम खान ने दावा किया था कि यह सूफी संत बदरुद्दीन शाह की मजार है। उनका तर्क था कि यहां उक्त सूफी रहते थे लेकिन पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिले महाभारत काल के प्रमाण से यह स्पष्ट हो गया कि मुस्लिम पक्ष का कहना सर्वथा गलत है।कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष का दावा सही नहीं है।

हिंदू पक्ष का कहना था कि यह महाभारत कालीन लाक्षागृह है। वही लाक्षागृह जहां कौरवों ने पांडवों को जलाकर मारने की नाकाम कोशिश की थी। महाभारत से संबंधित धार्मिक ग्रंथो में इस प्रकार का वर्णन आता है कि कौरवों ने पांडवों को जलाने के लिए लाक्षागृह का निर्माण करवाया था और धोखे से उसमें आग लगा दी थी। लेकिन पांडव उस लाक्षागृह में आग लगने से पहले ही निकल चुके थे। जाहिर है यह क्षेत्र ऐतिहासिक महत्व रखता है।


महाभारत कालीन राजधानी हस्तिनापुर यहां से सिर्फ 30 से 35 किलोमीटर दूरी पर है। बताया जाता है कि पुरातत्व विभाग ने इस स्थल की खुदाई की थी जिसमें महाभारत कालीन बहुत सारे प्रमाण मिले। इससे यह साफ हो गया कि यह जगह किसी सूफी संत की मजार नहीं है बल्कि हिंदुओं से जुड़ा ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। लगभग 53 वर्ष बाद इस ऐतिहासिक स्थल को लेकर कोर्ट का निर्णय आया जिससे हिंदू पक्ष को इसका मालिक आना हक मिल गया।

You cannot copy content of this page