नई दिल्ली : कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने आज अपना नामांकन दाखिल किया. नामांकन दाखिल करने के बाद उन्होंने पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए भाजपा सरकार पर जमकर प्रहार किया. उन्होंने कहा कि उनसे विपक्ष के चौथे नम्बर का विकल्प होने का सवाल किया जाता है . उन्होंने कहा कि अगर मैं दसवें नंबर पर होता फिर भी मैं उसे स्वीकार करता. चौथा नंबर तो सही है क्योंकि यह बहुत बड़ी लड़ाई है. इस बड़ी लड़ाई में अगर मेरा छोटा योगदान भी है तो मैं बराबर तत्पर रहूंगा उस योगदान को देने के लिए। उन्होंने कहा कि जब तक मेरे शरीर में खून का एक कतरा भी रहेगा तब तक प्रजातंत्र को बचाने के लिए लड़ता रहूंगा. उनका कहना था कि वह अपने चुनाव प्रचार के लिए मंगलवार से देश के सभी राज्यों की राजधानियों का दौरा करेंगे और वहां विभिन्न दलों के नेताओं एवं विधायकों से मुलाकात करेंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि एनसीपी नेता शरद पवार और टीएमसी नेता ममता बनर्जी की ओर से आयोजित विपक्ष की दो बैठकों में जेडीएस और जे एम् एम् शामिल थे और मेरी उम्मीदवारी का उन्होंने समर्थन किया था .
उन्होंने कहा कि हमने अपने बयान में कहा है कि यह दो व्यक्तियों की लड़ाई नहीं है. अक्सर यह प्रश्न मुझ से पूछा जा रहा है कि उस तरफ कौन है ? इसलिए आप मैदान से हट क्यों नहीं जाते? ऐसी बातें हमारे सामने आ रही लेकिन मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि मेरे नाम की घोषणा पहले हुई थी। एक सवाल के जवाब में यशवंत सिन्हा ने कि एक समुदाय से किसी व्यक्ति के ऊँचे पद पर जाने से उस पूरे समुदाय का विकास नहीं होता है. यह केवल सरकार की ओर से इसे उठाया जा रहा है. उन्होंने सवाल किया वर्तमान राष्ट्रपति भी किसी समुदाय से हैं , क्या उस समुदाय की साड़ी समस्या समाप्त हो गई ? उन्होंने हमें सरकार के इस षड्यंत्र का शिकार नहीं होना चाहिए .
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति का पद बहुत गरिममाय और बेहद महत्वपूर्ण पद है . इस देश के लिए बेहतर होता कि किसी एक व्यक्ति के लिए इस पद की दृष्टि से आम सहमति बनती लेकिन आम सहमति बनाने की पूरी जिम्मेदारी सरकार की होती है. लेकिन सरकार ने इस दिशा में कोई कोशिश नहीं की. उन्होंने कहा की सरकार के कुछ मंत्रियों के औपचारिक कॉल विपक्षी नेताओं को आए. उन्होंने हमसे कोई बातचीत नहीं की. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने जानबूझकर विपक्ष के नाम की घोषणा होने का इंतजार किया और उसके बाद अपने उम्मीदवार की घोषणा की। उन्होंने कहा कि सरकार इस स्थिति के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है कि देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद के उम्मीदवार के नाम पर आम सहमति बनाने की कोशिश नहीं की।
पत्रकारों के सवाल पर उनका कहना था कि एम्आई एम् नेता अदुद्दीन ओवैसी से उनकी बातचीत हुई है और उन्हें समर्थन का भरोसा दिया है जबकि बिहार और झारखण्ड से उन्हें बड़ी उम्मीद है. उन्होंने कहा झारखण्ड के सीएम हेमंत सोरेन से वे बात करेंगे साथ ही बिहार के सीएम नितीश कुमार से भी उनकी बात होगी.
उन्होंने कहा कि दूसरा हमारा मुद्दा यह है कि यह देश संविधान पर आधारित है और भारतीय संविधान में चेक एवं बैलेंस इसकी पूरी व्यवस्था है. जहां तक राष्ट्रपति का सवाल है तो वह इस सिस्टम के महत्वपूर्ण अंग है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति की जिम्मेदारी होती है कि चाहे कार्यपालिका हो या फिर अन्य शाखा कोई भी संविधान द्वारा निर्धारित सीमा रेखा को किसी भी सूरत में उल्लंघन न करें. अगर ऐसा किसी भी परिस्थिति में होता है तो इसे रोकना राष्ट्रपति की जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा कि भारत में राष्ट्रपति की मुख्य भूमिका सरकार को सलाह देना भी है. उन्होंने कहा कि हालांकि सरकार कौंसिल ऑफ मिनिस्टर्स की सलाह पर चलती है लेकिन राष्ट्रपति संबंधित विषयों में हस्तक्षेप कर सकते हैं . सलाह दे सकते हैं और राष्ट्रपति कार्यालय को संबंधित विषय में हस्तक्षेप करने को कह सकते हैं। उन्होंने कहा कि इसलिए मेरा मानना है कि राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति के रूप में वही व्यक्ति जाए जो इन महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को ठीक से निभा सके। उन्होंने कहा कि अगर कोई ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति भवन में जाए जो सरकार के कब्जे में है तो उन्हें तो कभी हिम्मत ही नहीं होगी सरकार से बात करने की। ऐसे में इस पद का इस देश में कोई फायदा नहीं है।
उन्होंने यह कहते हुए याद दिलाया कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कई बार ऐसा देखने को मिला है जब राष्ट्रपति केवल रबर स्टैंप बन कर रह गए और अपने संवैधानिक जिम्मेदारियों का उन्होंने निर्वहन नहीं किया। उन्होंने वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों की चर्चा करते हुए कहा कि देश में आज किस प्रकार की विषम्एंताएं हैं. उन्होंने कहा कि देश में आज सभी राजनीतिक और नैतिक मान्यताएं एवं मूल्य समाप्त हो गए हैं. देश की सभी संस्थाएं बर्बाद हो रही हैं और प्रजातंत्र हमारे देश में पंगु बनकर रह गया है।
यशवंत सिन्हा ने सीधे शब्दों में कहा कि इन सब स्थितियों से भी सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि आज सरकार अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रही है. सरकारी एजेंसी का खुलकर दुरुपयोग कर रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग अपराधियों के खिलाफ नहीं बल्कि अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ यह सरकार कर रही है। उन्होंने कहा कि ऐसा देश के इतिहास में हमने पहले कभी नहीं देखा।
उन्होंने कहा कि हम अपने अनुभव के आधार पर यह कह सकते हैं कि किसी भी एजेंसी अगर किसी नेता से पूछताछ करनी होती थी तो वह अपने सवालों को लेकर उनके घर पर जाते थे और उनसे उनका जवाब मांग लेते थे .लेकिन इस तरह से सड़कों पर दौडाना , रोज कार्यालय बुलाना, ऐसा पहले कभी नहीं देखा. उन्होंने कहा कि आज ईडी के दफ्तर में लोगों को बुलाया जाता है. 50 घंटे सवाल जवाब किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह रवैया सरकार का यह दर्शाता है कि सरकार की नीयत मामले की जांच करने की नहीं है। उन्होंने कहा कि इससे यह स्पष्ट है कि सरकार की नियत लोगों को केवल जलील करने का और बेइज्जत करने की है। उन्होंने कहा कि केवल देश को दिखाने के लिए यह रवैया अपनाया जा रहा है जो देश के लोकतंत्र के लिए बेहद दुखद है।
उन्होंने कहा कि देश में सुनवाई होनी चाहिए और जिस दिन सुनवाई खत्म हो जाएगी लोकतंत्र खत्म हो जाएगा. लेकिन आज देश में सुनवाई नहीं हो रही है । उन्होंने कहा कि मैं बेहद जिम्मेदारी के साथ यह कहना चाहता हूं कि न्यायपालिका सहित देश में आज आम लोगों की सुनने की व्यवस्था में गिरावट आई है ।
श्किरी सिन्हा ने कहा कि आर्टिकल 370 और सी ए ए का मुद्दा लंबे समय से लंबित है. यह बेहद महत्वपूर्ण विषय हैं . देश के लिए इन पर तत्काल सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना चाहिए था. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी चाहिए थी. लेकिन इन मुद्दों पर सुनवाई नहीं हुई. ऐसे में लोग किंकर्तव्यविमूढ़ हैं. इसीलिए मैं यह कहता हूं कि देश में लोगों की सुनने की व्यवस्था नहीं बची है। जब यह परिस्थिति बनती है तो इससे समाज में अशांति फैलती है और लोग सड़क पर उतरते हैं। उन्होंने कहा कि हम देख रहे हैं कि आज देश के युवा किस तरह सड़कों पर उतरे हुए हैं।
उन्होंने पिछले दिनों रेल भर्ती को लेकर देश में आए युवाओं के उबाल की चर्चा करते हुए कहा कि तब भी इस प्रकार की स्थिति बनी थी और आज फिर अग्नीपथ को लेकर युवा सड़क पर उतरे हैं. लेकिन इस पर सलाह मशविरा करने की कोई व्यवस्था ही नहीं है। उनकी शिकायत सुनने वाला कोई नहीं है. उन्होंने कहा कि जब मैं संसद में था तो विपक्ष में रहते हुए भी स्टैंडिंग कमिटी ऑन फाइनेंस में था और तब के वित्त मंत्री पी चिदंबरम और प्रणब मुखर्जी हमेशा हम से सलाह मशविरा करते थे . हमारे दिए हुए सुझाव को वह मानते भी थे. उन्होंने कहा कि जीएसटी सहित कई ऐसे महत्वपूर्ण मामले हैं जिस पर हमने रिपोर्ट दी लेकिन तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री ने उसका विरोध किया था।
यशवंत सिन्हा ने आरोप लगाया कि वर्तमान समय में संसद से बनने वाले कानून से संबंधित बिल, स्टैंडिंग कमेटी में नहीं भी जाते हैं . आज स्टैंडिंग कमेटी फंक्शन करने की स्थिति में नहीं है. केवल 25% बिल ही स्टैंडिंग कमेटी के पास भेज जाते हैं। उन्होंने याद दिलाया कि इससे पहले 75 से 80% बिल स्टैंडिंग कमिटी को भेजे जाते थे।
उन्होंने पूछा कि ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है कि स्टैंडिंग कमिटी की पार्लियामेंट्री सिस्टम में क्या भूमिका है ? उन्होंने कहा कि संसद को पूरी तरह पंगु बना दिया गया है. केवल नई बिल्डिंग बनाने से संसद में जान नहीं आने वाली है। पार्लियामेंट की गरिमा तभी बढ़ेगी जब पार्लियामेंट्री सिस्टम, प्रावधान और परंपराओं का पालन किया जाएगा।
राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार श्री सिन्हा ने बल देते हुए कहा कि इस बार का राष्ट्रपति चुनाव दो व्यक्तियों की लड़ाई नहीं है. बल्कि दो विचारधाराओं की लड़ाई है. अधिकतर विपक्षी दल इस लड़ाई को धार देने के लिए एक साथ आ गए हैं। उन्होंने कहा यह लड़ाई यहीं समाप्त नहीं होगी. उन्होंने उम्मीद जताई कि सभी एकजुट रहेंगे और आगे भी इस लड़ाई को जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है की जीत हमारी होगी क्योंकि हम सच्चाई पर हैं और किसी भी गलत कदम का सहारा नहीं दे रहे है।
यशवंत सिन्हा ने मोदी सरकार द्वारा लिए गए नोट बंदी के निर्णय की चर्चा भी की. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि यह केंद्र प्रायोजित देश का सबसे बड़ा घोटाला था. इसमें हजारों करोड़ ब्लैक मनी सफ़ेद कर दी गई। और हम सब को भूलने के लिए मजबूर कर दिया गया. सरकार आज इस स्थिति में नहीं है कि नार बंदी से कितना काला धन वापस आया.