सुभाष चौधरी
नई दिल्ली : केंद्रीय नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लोकसभा में कांग्रेस पार्टी को आईना दिखाते हुए यह साफ कर दिया एयर इंडिया को बदहाली की कगार पर लाने में यूपीए सरकार की अहम भूमिका रही है. उन्होंने आंकड़े प्रस्तुत करते हुए तथ्यात्मक तौर पर यह सिद्ध कर दिया कि इस कंपनी को जानबूझकर हजारों करोड़ के कर्ज में डुबो दिया गया. इसके कारण ही आज इस कंपनी के विनिवेश करने की स्थिति बनी है. उनकी इस उक्ति का कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी और गौरव गोगोई ने विरोध तो किया लेकिन अन्य विपक्षी दलों के सांसदों का उन्हें सहयोग नहीं मिला. इस मौके पर कांग्रेस पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी भी सदन में मौजूद थी और उनके चेहरे पर तिलमिलाहट साफ दिख रही थी। एयर इंडिया के डिसइनवेस्टमेंट का मुद्दा सदन में आरएसपी सांसद प्रेमचंद्रन और तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंधोपाध्याय ने उठाते हुए केंद्रीय मंत्री से स्पष्टीकरण की मांग की थी।
लोकसभा में नागर विमानन मंत्रालय की बजट अनुपूरक मांगो पर चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एयर इंडिया में हुए हजारों करोड़ के घपले और वित्तीय अनियमितता का चौंकाने वाला तथ्य रखा। उन्होंने कहा कि की यह एक बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है. उन्होंने कहा कि वह इस मुद्दे को सदन के पटल पर स्वयं रखना चाहते थे लेकिन समय के अभाव में उन्होंने पहले नहीं रखा .उन्होंने कहा कि क्योंकि सुदीप बंदोपाध्याय और प्रेमचंद्रन ने इस मामले पर पुनः स्पष्टीकरण देने की मांग की है तो इसलिए वह विस्तार से अपनी बात रखने को मजबूर हैं।
उन्होंने कहा कि यह बात सही है कि एयर इंडिया देश की नवरत्न कंपनी थी .निजी क्षेत्र से इसकी शुरुआत हुई. इसका राष्ट्रीयकरण किया गया. राष्ट्रीयकरण करने के बाद कई वर्षों तक इसे सफलतापूर्वक चलाया गया।
उन्होंने कहा की सुदीप बंधोपाध्याय और प्रेमचंद्रन ने विस्तृत तरीके से अपने कट मोशन में भी इस मामले की ओर सदन का ध्यान दिलाया है. लेकिन सवाल ये उठता है कि एयर इंडिया जैसी नवरत्न कंपनी की यह हालत क्यों हुई ? इसे समझने की आवश्यकता है. उन्होंने सदन को बताया कि वर्ष 2005- 6 में जिस एयर इंडिया की क्षमता केवल 14 करोड़ रु मुनाफे की थी उस कंपनी के द्वारा बोइंग की 68 एयरक्राफ्ट खरीदने के मसौदे पर हस्ताक्षर किया गया. साथ ही 43 एयरक्राफ्ट एअरबस भी खरीदने के मसौदे पर हस्ताक्षर किया गया।
उन्होंने सदन में बल देते हुए कहा कि जिस कंपनी की क्षमता केवल ₹15 करोड़ मुनाफे की थी उस कंपनी यानी एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस के द्वारा 111 एयरक्राफ्ट खरीदने के अव्यवहारिक निर्णय लिए गए। उन्होंने कहा कि इसके पीछे के क्या कारण हैं उसका विश्लेषण मैं नहीं करना चाहता . लेकिन यह सदन को अवश्य समझना चाहिए कि 2005 के पहले जो एयर इंडिया कंपनी ₹15 करोड़ की प्रॉफिट बनाती है और इंडियन एयरलाइंस ₹50 करोड़ की प्रॉफिट बनाती है उन कंपनियों के लिए तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा 55000 करोड़ रुपए का कर्ज का बोझ लेने का निर्णय लिया गया।
उन्होंने सदन को बताया कि इसमें चौंकाने वाली बात यह है की जो 111 एयरक्राफ्ट की खरीद हुई उनमें से 15b ट्777 ई आर जरूरत से ज्यादा खरीदी गई इसके अलावा 5 एयरक्राफ्ट वी 300 2 ई के वर्ष 13- 14 में बेच दी गई।
उन्होंने कहा कि किसी भी कंपनी के लिए कर्ज लेने के समय उसकी कुल आर्थिक क्षमता टर्नओवर को ध्यान में रखा जाता है. अन्यथा क्षमता से अधिक कर्ज लेने वाली कंपनी डूब जाती है. लेकिन एयर इंडिया के मामले में इन सारी बातों को दरकिनार करते हुए यह निर्णय लिया गया.
उन्होंने कहा कि एयर इंडिया के मामले में 55 हजार करोड़ का कर्ज लिया गया और एयर इंडिया इंडियन एयरलाइंस को मर्ज कर दिया गया. उन्होंने कहा जब दोनों कंपनियों के काम के तौर तरीके और उसकी सीमा अलग अलग थी उनके कर्मचारियों के लिए नियम कानून अलग-अलग थे लेकिन उन्हें मर्ज किया गया।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सदन को बताया कि इसे जिस वर्ष किया गया उसी साल यह कंपनी 3000 करोड़ रु के घाटे में चली गई . उन्होंने बताया कि वर्ष 2007- 8 से लगातार 3000 करोड़ से साढ़े 7000 करोड़ प्रतिवर्ष का घाटा होता चला गया। इस संयुक्त कंपनी का घाटा 85000 करोड़ रुपए हो गया. उन्होंने कहा कि इस कंपनी को गलत नीतियों एवं निर्णयों के कारण ₹20 करोड़ प्रतिदिन का घाटा होता चला गया।
श्री सिंधिया के इन तथ्यों के रखने के क्रम में कांग्रेस पार्टी की हालत देखने वाली बन गई. बीच-बीच में कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी और गौरव गोगोई ने टोका टोकी करने की कोशिश की. जबकि कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी तिलमिलाती नजर आई. लेकिन विपक्ष के अन्य दलों की ओर से कोई भी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा रखे जा रहे इन तथ्यों को काटने की स्थिति में नहीं दिखे . सदन में विपक्षी सांसदों को जैसे सांप सूंघ गया। सोनिया गांधी के ठीक पीछे बैठी एन सी पी सांसद सुप्रिया सुले जो अक्सर कांग्रेस के समर्थन में बोलती हैं इस मामले पर चुप रहीं जबकि टीएमसी की ओर से भी कोई प्रातिक्रिया नहीं आई. ऐसा लगा जैसे नागर विमानन मंत्री सिंधिया की बातों का विपक्ष के पास कोई जवाब नहीं था .
उन्होंने चर्चा का जवाब देते हुए लोकसभा में बताया कि 2004-5 में जो लिबरलाइजेशन ऑफ बाय लेटरल की गई इस मामले में भी भारतीय विमानन कंपनियों के हितों के साथ समझौता किया गया. उन्होंने कहा कि भारत के कैरियर की 51 मिलियन की बायलेटरल थी। इसके तहत भारतीय एयरलाइंस को विदेश जाने की और विदेशी एयरलाइंस को भारत आने की क्षमता तय होती है. इसे भी बढ़ाकर 180 मिलियन कर दिया गया। उन्होंने कहा कि इसे खाड़ी देशों में 100 से 200% बढ़ाया गया. साउथ ईस्ट एशियन देशों को 200% बढ़ा दिया गया और यूरोपियन देशों को 400% तक बढ़ा दिया गया जबकि भारत के कैरियर के पास यह क्षमता नहीं थी।
उन्होंने कहा इन तथ्यों से साफ होता है कि इंडियन एयरलाइंस की क्या स्थिति बना दी गई. उन्होंने कहा कि कुल 14 वर्षों के 85 हजार करोड़ रुपए घाटे हो गए। भारत सरकार की इक्विटी की इन्फ्यूजन 54000 करोड़ रुपए और गवर्मेंट ग्रांट 50000 करोड़ रुपए हुए। यह कुल 190 हजार करोड़ रुपए हो गए। और वर्तमान नेट कर्ज था 86 हजार करोड़। उन्होंने कहा कि एयर इंडिया में 50000 करोड़ के कर्ज की खाई हो गई थी और यह पैसा भारत सरकार का नहीं भारत की जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा है।
केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह निर्णय लिया कि इस घाटे को बंद करना ही पड़ेगा ताकि भारत सरकार और भारत की जनता के पैसे का संरक्षण किया जाए और उसका सदुपयोग किया जा सके. इन पैसों का उपयोग उज्जवला योजना के लिए, राशन के लिए, सड़कों के लिए, जल जीवन के लिए, आमजन के लिए किया जा सके. इसीलिए इस कंपनी का विनिवेश करने का निर्णय लिया गया।
उल्लेखनीय है कि इस मामले को विपक्ष के सांसद प्रेमचंद्रन और सुदीप बंदोपाध्याय ने सदन में उठाया था. उन्होंने इन कंपनियों में कार्यरत सभी कर्मचारियों के भविष्य के प्रति भी चिंता जाहिर की थी। दोनों विपक्षी सांसदों के इस सवाल पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बताया कि विनिवेश के लिए भारत सरकार और टाटा कंपनी के साथ हुए एग्रीमेंट में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि 1 वर्ष तक किसी भी कर्मचारी को कंपनी से बाहर नहीं किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि इसमें यह भी शर्त शामिल है कि अगर 1 साल के बाद किसी कर्मचारी को कंपनी से निकाला जाएगा तो उन्हें वीआरएस योजना के तहत ही निकाला जा सकेगा।
उन्होंने कहा कि इस कंपनी में कार्यरत कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति के बाद उनके हेल्थ की दृष्टि से उन्हें वहीं सी जी एच एस की सुविधा मिलती रहेगी जो केंद्र सरकार के अन्य विभागों में कार्यरत कर्मचारियों को मिलती है.
उन्होंने यह साफ किया कि वर्तमान सरकार की यह स्पष्ट नीति है कि कर्मचारियों के भविष्य की सुरक्षा की जाए. उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि इस क्षेत्र को दोबारा स्थापित किया जाए और भारत सरकार एवं भारतीय जनता के पैसे की रक्षा की जाए।
इससे पहले श्री सिंधिया ने सदन में मंत्रालय की अनुपूरक मांगों पर लगभग 8 घंटे की चर्चा में उन सभी 57 सांसदों द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों का विस्तार से जवाब दिया.