पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढऩे से हर कोई है परेशान, ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा बढ़ जाने से उत्पाद हो गए हैं महंगे

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टैक्स घटाने से ही आम लोगों को मिल सकती है राहत


सरकार ने घाटे की भरपाई का माध्यम बना लिया है पेट्रोलियम पदार्थों को


गुरुग्राम, 14 मार्च : पूरा देश पिछले एक वर्ष से कोरोना महामारी से जूझता आ रहा है। कोरोना ने फिर से अपना चक्र चलाना शुरु कर दिया है,
जिससे आम आदमी भी परेशान होता दिखाई दे रहा है। कोरोना से उपजी परिस्ािितियों के कारण देश में खाद्य व पेट्रोलिम पदार्थों के दामों में
आई वृद्धि से हर कोई परेशान है। पेट्रोल-डीजल के बढ़ते जा रहे दामों का असर खाद्य पदार्थों व अन्य उत्पादों पर भी पड़ा है। पेट्रोलियम पदार्थों
डीजल-पेट्रोल, रसोई गैस के बढ़ते दामों से आम आदमी तो परेशान है ही, उधर गृहणियों का बजट भी गड़बड़ा गया है।

जानकारों का कहना है कि सरकार मानती है कि पेट्रोलियम के दामों में वृद्धि न हो। पदार्थों के मूल्य निर्धारण रिफाइनरी के हाथ में हैं और सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी। पेट्रोल-डीजल में तेजी का कारण इन पर भारी उत्पाद शुल्क तथा प्रदेशों का वैट भी है। हरियाणा सरकार द्वारा गत दिवस आम बजट पेश किया गया। प्रदेशवासियों को पूरी उम्मीद थी कि सरकार पेट्रोलियम पदार्थों पर वैट की दर अवश्य कम करेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जबकि पड़ोसी प्रदेश राजस्थान ने वैट 38 प्रतिशत से घटाकर 36 प्रतिशत कर दिया है।

केंद्र सरकार पहले से ही मन बनाकर बैठी हुई है कि वह पेट्रोलियम पदार्थों पर शुल्क कम नहीं करेगी। क्योंकि इन पदार्थों पर लगने वाले कर से केंद्र सरकार की अच्छी-खासी आमदनी है। उधर प्रदेश सरकारें भी पेट्रोलियम पदार्थों पर लगने वाले वैट से अच्छा-खासा कमा रही हैं। केंद्र सरकार ने गत वर्ष मार्च और मई माह में भी उत्पाद शुल्क में भारी वृद्धि की थी, जो अभी भी जारी है।

जानकारों का यह भी कहना है कि कोरोना महामारी के कारण आम लोग अभी भी सार्वजनिक परिवहन से बचना चाह रहे हैं और अपने वाहन से यात्रा करना अधिक पसंद कर रहे हैं। चाहे इसके लिए उन्हें अधिक पैसे क्यों न चुकाने पड़ें। लोगों का कहना है कि जान है तो जहान है। उधर डीजल के दाम बढ़ जाने से माल की ढुलाई पर भी बुरा असर पड़ रहा है। कारखानों में बने सामान को इधर-उधर पहुंचाने के लिए बढ़ी हुई दरें चुकानी पड़ रही हैं। जिसका सीधा असर उपभोक्ता पर पड़ रहा है। जानकारों का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाकर इस समस्या का समाधान करने के मूड में दिखाई दे रही है, लेकिन जीएसटी में इसको लाने से समस्या का समाधान नहीं होगा। सरकार ने
अपने घाटे की भरपाई का माध्यम पेट्रोलियम पदार्थों को बना लिया है। सरकार को पेट्रोलियम पदार्थोँ पर लगे टैक्स को घटाना ही होगा।

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