सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील पर क्या कहा ?

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कोर्ट ने जांच सम्बन्धी सभी याचिकाएं खारिज कर दी  

कोर्ट ने कहा : रक्षा सौदों में कोर्ट की दखलंदाजी ठीक नहीं

नई दिल्ली। राफेल डील की जांच के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया . इससे केंद्र की मोदी सरकार के लिए बड़ी राहत वाली खबर आई । अपने निर्णय में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि राफेल डील की जरूरत पर कोई विवाद नहीं है।सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट की निगरानी में जांच वाली याचिका को खारिज कर दी। इस सिलसिले में कई याचिकाएं दायर की गई थीं । अदालत ने फैसले में कहा है कि कोई वजह नजर नहीं आ रहा है कि इस डील में कानूनी तौर पर हस्तक्षेप किया जाए। अदालत ने ये भी कहा कि इसके व्यवसायिक पक्ष में भी किसी तरह की हेराफेरी नहीं हुई है। कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि इसमें सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

चीफ जस्टिस ने कहा कि हम सरकार को 126 एयरक्रॉफ्ट्स खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकते हैं। ये अदालत के लिए उचित नहीं है कि वो इस केस से सभी संबंधित पक्षों का परीक्षण करे। ये अदालत का काम नहीं है कि वो विमान की कीमतों की तुलना करे।

अदालत ने राफेल विमानों की खरीद को लेकर दाखिल याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा, रक्षा सौदों में कोर्ट की दखलंदाजी ठीक नहीं है। याचिकाओं में राफेल खरीद की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की मांग की गई थी। इस मामले में दायर याचिकाओं पर 14 नवंबर को सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि प्राइस और ऑफसेट पार्टनर की समीक्षा करना कोर्ट का काम नहीं। सरकार की निर्णय लेने की प्रक्रिया बिल्कुल सही थी। कोर्ट ने कहा कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति के बयान के बाद याचिकाएं दायर की गई जो विचारणीय नहीं हैं। कोर्ट ने कहा, राफेल सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह करने का कोई अवसर नहीं है।

ऑफसेट पार्टनर यानि अनिल अंबानी की कंपनी को ठेका दिये जाने के संबंध में सीजेाई रंजन गोगोई ने कहा कि वो इस विषय में भी हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। जहां तक ऑफसेट पार्टनर का सवाल है तो उस विषय पर हर एक शख्स की अलग सोच हो सकती है। लेकिन इन आधारों पर संवेदनशील रक्षा सौदों में जांच की इजाजत नहीं दी जा सकती है।

इस सौदे में कथित अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए सबसे पहले अधिवक्ता मनोहरलाल शर्मा ने जनहित याचिका दायर की थी। इसके बाद, एक अन्य अधिवक्ता विनीत ढांडा ने याचिका दायर कर शीर्ष अदालत की निगरानी में इस सौदे की जांच कराने का अनुरोध किया था। इस सौदे को लेकर आप पार्टी के सांसद संजय सिंह और इसके बाद दो पूर्व मंत्रियों तथा भाजपा नेताओं यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के साथ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी एक अलग याचिका दायर की।

 

राफेल डील सम्बन्धी महत्वपूर्ण तथ्य : 

इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट से अदालत की निगरानी में जांच की मांग की गई थी।।
डील में कथित अनियमितता का आरोप लगाया गया था।
ये पूरी डील 58 हजार करोड़ रुपए की है।
कांग्रेस इस मुद्दे पर केंद्र सरकार खासतौर से पीएम नरेंद्र मोदी को घेरती रही है।
सरकार का पक्ष है कि 2013 में यूपीए सरकार के दौरान डील के मसौदे को आगे बढ़ाया गया।
केंद्र सरकार का कहना है कि नियमों के तहत डील हुई किसी तरह की अनियमितता नहीं
36 राफेल विमान खरीदे जाएंगे।
सरकार के मुताबिक सभी राफेल विमान फ्रांस में ही बनाए जाएंगे।
​नेगोशिएशन कमेटी की 74 बैठकों के बाज कैबिनेट ने इस डील को मंजूरी दी।
2002 से करीब 40 फीसद रक्षा सौदे सरकारों के बीच हुए।
यूपीए सरकार द्वारा फैसले लेने में देरी की वजह से राफेल विमान की कीमतों में इजाफा हुआ।

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