……ऐसे में काके लागूं पांय  

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बस यूँ ही…..
 दरभंगा । आज शिक्षक दिवस है। सो सबसे पहले उन तमाम शिक्षकों को कोटिशः नमन जिनमें आज भी छात्रों के प्रति सही मायने में दर्द शेष है और शिक्षा दान को लेकर उदारता बनी हुई है। मैं भी मूलतः शिक्षक ही हूँ।सुबह सुबह स्नान ध्यान कर एकलौती बेटी सौम्या श्री को मैडोना प्राइमरी स्कूल , अल्लपट्टी, छोड़ने गया तो वहां का दृश्य देखकर भौचक्के रह गया। कीचड़ से सने स्कूल के मुख्य गेट पर झुण्ड बनाकर खड़े बच्चे अपने सीनियर-जूनियर साथियों से इंट्री पास दिखाने को कह रहे थे। जिसे पास नहीं था उसे वहीं रोका जा रहा था। यह क्या? पूछने पर बताया कि जिन बच्चों को पास नहीं है उसे स्कूल में प्रवेश नहीं मिलेगा। मैं दंग था और चिंतित भी। एक बार तो गुस्सा भी आया इन नादानों पर लेकिन हैरानी तब हुई जब मैंने देखा कि स्कूल के कुछ पूजनीय शिक्षकगण बरामदे पर लगे ग्रील से बच्चों का सारा तमाशा धृतराष्ट्र की तरह देख रहे थे। पता करने पर बताया गया कि शिक्षक दिवस पर स्कूल में डांस कम्पिटिशन का आयोजन है और इसके लिए बच्चों ने शिक्षकों के कहने पर ही क्लास में घूम घूमकर न सिर्फ चन्दा उगाही की है बल्कि बकायदा स्कूल की मुहर लगे पास भी बच्चे को दिए गए हैं और उसी पास की आज मांग की जा रही है।
   यहां एक बड़ा सवाल कि क्या शिक्षक आज अपनी पुरानी गौरव गाथा को भूल गए हैं?क्या शिक्षक दिवस पर बुगी बुगी या फिर डोला रे..डोला रे के साथ साथ अन्य फिल्मी धुनों पर डांस कराना जरूरी है? बच्चों को बहुमुखी बनाना जरूरी है लेकिन इस तरह कतई नहीं। क्या ऐसे संकीर्ण मानसिकता में ये तथाकथित शिक्षक आज के बच्चों में लव – कुश, ध्रुव,एकलव्य,नचिकेता व आरुणी जैसे पवित्र आत्माओं को पिरो पायेंगें, शायद हरगिज नहीं।
  हमें अच्छी तरह से याद है कि बचपन में बताया गया था” गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय…।” शायद खास कर अधिकांश निजी स्कूलों में अब (माफ़ करेंगे)न तो गुरु रहे और न ही गोविन्द। तो ऐसे में बच्चों का कहना सौ फीसदी उचित है कि आज काके लागूं पांय।
    यहां यह भी गौर करने वाली बात है कि मेरी बेटी  तो 80 रुपये चन्दा अदा कर पास पाने में भययशाली रही लेकिन उन मासूमों के लिए आप सभी क्या कहेंगे जो किन्हीं कारणों से पास से बंचित रह गए थे और स्कूल में प्रवेश की मनाही से बेचारे को मुंह लटकाकर वापस घर जाना पड़ा। भगवान ऐसे शिक्षकों को सद्बुद्धि दें। ओइम शांति।

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