गैर जिम्मेदाराना रवैये के लिए बदनाम गुरुग्राम का सिविल अस्पताल !

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सिविल अस्पताल के गेट पर एम्बुलेंस में हुई महिला की डिलिवरी का मामला 

स्वास्थ्य मंत्री ने तीन डाक्टरों को निलंबित और एक को टर्मिनेट कर औपचारिकता निभाई 

पीएमओ का बयान विरोधाभाषी, सीएमओ निजी अस्पतालों पर नजर रखने में व्यस्त 

लगातार हो रही अमानवीय घटनाओं पर बड़े अधिकारी संज्ञान नहीं लेते 

डाक्टरों को वीवीआईपी की तीमारदारी करने से फुर्सत नहीं 

कई डाक्टर तो विधानसभा का चुनाव लड़ने की फिराक में 

एम् एल ए बनने का सपना देखने वाले कई डाक्टर राजनीतिक दलों के आकाओं का लगाते हैं चक्कर 

 

सुभाष चौधरी/प्रधान संपादक 

गुरुग्राम : बुधवार को सिविल अस्पताल के गेट पर एम्बुलेंस में हुई महिला की डिलिवरी मामले में हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने तीन डाक्टरों को निलंबित करने का आदेश जारी किया है जबकि एक डॉक्टर को टर्मिनेट कर दिया है. निलंबित डाक्टरों में डॉ ज्योति, डॉ हरप्रीत ओर डॉ अक्षिता के नाम शामिल है. यह अस्पताल अपने गैर जिम्मेदाराना रवैये के लिए पूरी तरह बदनाम हो चुका है. रोगियों के साथ आये दिन दुर्व्यवहार करना और उपेक्षापूर्ण तौर तरीके यहाँ नियुक्त डाक्टरों की फितरत बन गयी है. अक्सर इस प्रकार के मामले इस अस्पताल से देखने को मिलते है लेकिन जिला अस्पताल के पीएमओ और सीएमओ हमेशा खाना पूर्ति कर मामले को रफादफा कर देते हैं. यहाँ तक कि जिला प्रशासन के प्रमुख जिला उपायुक्त और कमिश्नरी के प्रमुख डिवीज़नल कमिशनर भी यहाँ बैठते हैं लेकिन इस अस्पताल को भगवान् भरोसे छोड़ देते हैं. सीएमओ निजी अस्पतालों पर नजर रखने में व्यस्त रहते हैं . अक्सर केंद्र और अन्य राज्य सरकारों व राजनीतिक दलों के मामले में त्वरित प्रतिक्रिया देने वाले हरियाणा प्रदेश के बडबोले स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज अपने लगभग चार साल के कार्यकाल के बाद भी यहाँ की हालत सुधारने में नाकाम रहे हैं.  

अन्य मामलों की भाँती इस बार भी डीसी महोदय ने इस अमानवीय घटना के बाद अपने औपचारिक आदेश दिए और उनके आदेशों के बाद हॉस्पिटल प्रबंधन हरकत में आया. उन्होंने ओपचारिकता वाली चुस्ती दिखाई और मामले में संबंधित डॉक्टरों और कर्मचारियों के बयान गुरुवार को दर्ज कर अपनी  चमड़ी बचाने की जुगत कर ली. जैसा कि अक्सर होता है ठीक उसी तरह इस बार इस मामले में भी गायनी के डाक्टरों ने अपने बयान में दावा किया कि नियमों के तहत ही गर्भवती महिला को सफदरजंग के लिए रेफर किया गया था। उनके लिए नियम ज्यादा महत्वपूर्ण हैं जबकि गर्ववती महिला की एवं बच्चे की जान सस्ती. उनके सुर में सुर मिलाते हुए अस्पताल के पीएमओ प्रदीप शर्मा ने भी बुधवार को अपने बयान में कहा कि गर्भवती महिला सिरियस कंडीशन में थी इसलिए इसे रेफर ही किया जाना था। लेकिन जब उन्हें लगा कि उनका यह बयान उनके लिए उल्टा पड सकता है तो उन्होंने लगे हाथों गुरुवार को अपना बयान पलटकर कहा कि पैशेंट को रेफर नहीं करना चाहिए था । उनके अनुसार आगे की जांच के लिए इस केस को डिस्ट्रिक्ट मेडिकल नेग्लिजेंसी बोर्ड को रेफर कर दिया गया है। यह कदम उठा कर उन्होंने अपना पल्ला झाड लिया.

 

इस देश में एक फैशन बन गया है जब भी किसी निजी अस्पताल में कोई घटना होती है तो पूरे देश में हाय तौबा मचने लगता है लेकिन जब सरकारी अस्पताल की बात आती है तो  यह कह कर चुप करा दिया जाता है कि इससे अस्पताल की विश्वसनीयता खतरे में पड जायेगी और गरीब जनता का नुक्सान होगा. हकीकत यह है कि इस अस्पताल में वर्षों से बैठे कई डाक्टरों की सोच में जंग लग गए हैं. सूत्र तो यहाँ तक बताते हैं कि यहाँ तैनात कुछ डाक्टरों को चुपके से निजी प्रैक्टिस करने से फुर्सत नहीं है. उनकी इंसानियत केवल गुरुग्राम आने वाले वी वी आई पी राजनेताओं का इलाज करने और उनकी तीमारदारी करने तक सीमित रह गयी है. यहाँ कई उदाहरण ऐसे मिल जायेंगे जब राजनेताओं से सम्बन्ध बना कर यहाँ के डाक्टर अपने ख़ास लक्ष्य की प्राप्ति कर निकल जाते हैं.हाल कुछ उदाहरण से यह बात सिद्ध होती है. कई तो आने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान हरियाणा से चुनाव भी लड़ने के इच्छुक हैं और अलग अलग पार्टियों से टिकट लेने की फ़िराक में भी लगे हुए हैं. यह अस्पताल कई डाक्टरों के लिए टाइम पास स्थल बन गया है. रोगियों को हाथ लगा कर देखने का रिवाज यहाँ वर्षों से नहीं है. अदालती काम काज में व्यस्ततता, वी आई पी आगमन में ड्यूटी और अन्य प्रसाशनिक काम काज के बहाने बना कर रोगियों को इन्तजार कराने की परम्परा यहाँ खूब देखने को मिलती है. एक तरफ स्वास्थ्य मंत्री कहते हैं कि यह अस्पताल सभी प्रकार की आधुनिक सुविधाओं और चिकित्सा विशेषज्ञों से लैस है जबकि दूसरी तरफ अक्सर देखने को मिलते हैं कि यहाँ से रोगी दिल्ली रेफर किए जाते हैं.

तीन महिने में तीन बार हुए इस प्रकार के मामलों में स्वास्थ्य विभाग को पहले भी किरकिरी का सामना करना पडा है लेकिन स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज व्यर्थ के विवाद में बयानबाजी करने में व्यस्त रहते हैं और अस्पताल के डाक्टर अपनी ड्यूटी की ओपचारिकता निभाने में। मीडिया के कारन अब मामला तूल पकड़ गया.

मामले में बड़े अधिकारियों की संवेदनहीनता तो देखिये कि घटना की हकीकत और संवेदनशीलता को दरकिनार करने की कोशिश में सुविधाओं को नजरअंदाज कर जूनियर डॉक्टरों के सिर पर ही ठीकरा फोड़ने की कोशिश कर रहे है। बुधवार को जिस समय महिला को अस्पताल लाया गया उस समय गायनी वॉर्ड में तैनात डॉक्टर ने कहा कि महिला की स्थिति को देखते हुए उसे प्रथम उपचार देने के बाद सुबह 9 बजकर 10 मिनट पर दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल के लिए रेफर कर दिया था। लेकिन महिला के परिजन उसे 9 बजकर 55 मिनट तक हॉस्पिटल में लेकर ही घूमते रहे। ऐम्बुलेंस चालक का कहना था कि एक साथ दो पैशेंट को सफदरजंग लेकर जाना था पहले वाला मरीज समय पर नहीं आया इसलिए जाने में देरी हुई। जाहिर है कि यहाँ इस प्रकार के इमरजेंसी वाले रोगियों के लिए कोई मुक्कमल इंतजाम नहीं है.

गुरुग्राम जैसे शहर के लिए जो अंतर्राष्ट्रीय शहर की श्रेणी में अक्सर राजनेताओं व अधिकारियों द्वारा रखा जाता है लेकिन एक गर्ववती महिला को पूर्ण इलाज मुहैया कराने की स्थिति में नहीं है. इस मामले के उजागर होने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने माना कि गंभीर हालत में आने वाली गर्भवती को स्वास्थ्य सेवा देने के लिए सिविल हॉस्पिटल में सुविधाएं नही है। वे कहते है कि 7 महिने से कम की गर्भवती महिलाओं को यहां इलाज नहीं किया जा सकता इसलिए उन्हें रेफर किया जाता है। हाई ब्लड प्रेशर वाली पैशेंट को भी यहां इलाज नहीं दिया जा सकता। एनिमिक पैशेंट की सर्जरी के लिए यहां आईसीयू रूम नहीं है। ऐसी महिलाओं को सिजेरियन डिलिवरी के लिए बड़े हॉस्पिटल रेफर किया जाता है। जबकि बुधवार को जिस महिला ने ऐम्बुलेंस में बच्चे को जन्म दिया वो एनिमिक पैशेंट थी और 7 महिने से कम की गर्भवती थी इसलिए उसे रेफर करना तार्किक बताया जा रहा है .

इन हालात को जान कर कोई कह सकता है कि यह वही गुरुग्राम है जिसकी तुलना यहाँ के मुख्यमंत्री न्यूयार्क व सिलिकन वैली से करते हैं. हकीकत में स्वास्थ्य सेवा की दृष्टि से यह शहर भगवान् भरोसे है. हरियाणा की व्यावसायिक राजधानी कहलाने वाले गुरुग्राम शहर की यही नियति है कि यहाँ निम्न माध्यम वर्गीय परिवार की जान बचाने की कोई व्यवस्था नहीं है.

 

अगले अंक में पढ़िए : कौन कौन डाक्टर लड़ना चाहते हैं चुनाव ? 

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