नई दिल्ली/इस्लामाबाद : बड़ी पुरानी कहावत है “ खाने को अनाज नहीं और चला पूरे नगर को निमंत्रण देने ” कुछ ऐसा ही हाल पाकिस्तान का है. सार्क देशों में पूरी तरह अलग थलग पड चुका पाकिस्तान अब सार्क का विकल्प ढूढ़ रहा है. उसका लक्ष्य है एशिया में भारत के प्रभाव को कम करना. यह अच्छी तरह समझा जा जा सकता है इसके पीछे चीन का हाथ है.
खबर है कि पाकिस्तान एक वृहद दक्षिण एशिया आर्थिक संगठन के नाम से सगठन खड़ा करना चाहता है. इसमें उसके आका चीन, ईरान और आस-पास के पश्चिम एशियाई गणराज्यों को शामिल करने की संभावना तलाशी जा रही है.
पाकिस्तानी समाचार पत्र डॉन न्यूज ने राजनयिक पर्यवेक्षकों का हवाला देते हुए कहा है कि आठ सदस्यीय दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन में भारत के प्रभाव को कम करने के लिए पाकिस्तान एक वृहद दक्षिण एशियाई आर्थिक संगठन के निर्माण की दिशा में संभावना तलाश रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान का एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल पिछले सप्ताह वाशिंगटन की यात्रा पर था. इसी यात्रा के दौरान प्रतिनिधिमंडल के दिमाग में यह आईडिया आया . फ़िलहाल यह प्रतिनिधि मंडल न्यूयॉर्क में है.
सीनेटर मुशाहिद हुसैन सैयद की मीडिया के साथ हुई बातचीत का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि एक वृहद दक्षिण एशिया में चीन, ईरान और आस-पास के पश्चिम एशियाई गणराज्य शामिल होंगे. पाकिस्तान की ओर से यह दवा किया जा रहा है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा के माध्यम से दक्षिण एशिया को मध्य एशिया से जोड़ने में मदद मिलेगी. उल्लेखनीय है कि यह गलियारा पाकिस्तान में चीन के निवेश से तैयार किया जा रहा है.
सैयद का मानना है कि ग्वादर बंदरगाह चीन सहित उसके आस-पास के सभी दक्षिण एशियाई देशों के लिए नजदीकी बंदरगाह होगा. उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि भारत भी इसमें शामिल हो. लेकिन भारत शायद इस पेशकश को स्वीकारने को तैयार नहीं है क्योंकि वर्त्तमान सार्क के सदस्य देशों से जो फायदा उन्हें मिलता है वह पर्याप्त है.
उल्लेखनीय है कि जम्मू कश्मीर में उरी हमले के बाद भारत ने इस्लामाबाद में प्रस्तावित सार्क के 19वें शिखर सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेने का निर्णय लिया. पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया. इसके कारण सार्क के चार अन्य सदस्य बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका और अफगानिस्तान ने भी शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं का ऐलान कर दिया था.
गौरतलब है कि सार्क के आठ सदस्य देशों में अफगानिस्तान और बांग्लादेश भारत के मजबूत सहयोगी हैं जबकि भूटान प्राकृतिक रूप से भारत से अलग होने कि स्थिति में नहीं है. दूसरी तरफ मालदीव, नेपाल और श्रीलंका के पाकिस्तान के साथ अच्छे सम्बन्ध तो हैं लेकिन भारत का सीधा विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं. ऐसे में पाकिस्तान को इस तरह के संगठन में चीन और ईरान का साथ चाहिए जो अनैतिक कृत्यों में भी उसका साथ दे सके. इसलिए पाकिस्तान एक ऐसे संगठन की खोज में लगा हुआ ही जहाँ वो भारत को नीचा दिखा सके.
पाकिस्तान के राजनयिकों का मानना है कि जब भारत अपने फैसले उन पर थोपने की कोशिश करेगा तो इस नये संगठन में इससे निपटने के लिए उसे चीन का साथ मिल सकेगा. कहा जा रहा है कि इस नई व्यवस्था से चीन भी सहमत है क्योंकि चीन के माथे पर भी भारत के इस क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव से बल पड़ने लगे हैं.
अफगानिस्तान को यह कह कर लुभाने कोशिश हो रही है कि उसके लिए यह प्रस्ताव सबसे अधिक मददगार साबित होगा. उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान ने 2006 में सार्क की सदस्यता के लिए आवेदन दिया था. एक साल बाद उसे सार्क कि सदस्यता मिली थी . लेकिन इससे दक्षिण एशिया की परिभाषा पर सवाल खड़े हो गए थे क्योंकि अफगानिस्तान पश्चिम एशियाई देश है.
यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि पाकिस्तान खुद ही यह मानता है कि पश्चिम एशिया के कई ऐसे देश हैं जिनके भारत और ईरान के साथ मजबूत संबंध हैं, लेकिन पाकिस्तान के साथ रिश्ते अच्छे नहीं हैं. इसलिए भी उसे सार्क सगठन रास नहीं आ रहा है.