मुख्तार अंसारी अब समाजवादी हो गए
लखनऊ : जी हाँ , उत्तर प्रदेश में बड़ी जोर की बह रही है समाजवादी लहर. उम्मीद है कि जब तक प्रदेश के विधानसभा चुनाव का आधिकारिक ऐलान होगा तब तक तो न जाने कितने गुंडे मवाली, माफिया, बलात्कारी, लुटेरे, दंगाई एवं भ्रष्टाचारी, सबका ह्रदय परिवर्तन हो जायेगा और वे सभी समाजवादी बन जायेंगे. और इसकी शुरुआत अब बड़े प्रतिष्ठित व बेहद सामाजिक, माफिया डॉन मुख्तार अंसारी ने समाजवादी बनकर कर दी है. आप ठीक समझ रहे हैं कि अंसारी अब समाजवादी हो गए. इस बात का शनिवार को ऐलान भी हो गया कि अगला विधानसभा चुनाव वो समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर ही लड़ेंगे. मुख्तार के बड़े भाई और कौमी एकता दल के अध्यक्ष अफजाल अंसारी ने शनिवार को आधुनिक राम मनोहर लोहिया व सपा प्रमुख, मुलायम सिंह यादव से मुलाकात के बाद समाजवादी पार्टी दफ्तर पर यह घोषणा की.
शिवपाल जीत गए और अखिलेश हार गए
वैसे यह जगजाहिर है कि केवल एक कौम को लेकर गठित कौमी एकता दल के विलय को लेकर ही उत्तर प्रदेश के (फर्स्ट फेमिली ) प्रथम यादव परिवार में गहरे मतभेद हैं. सीएम अखिलेश इसके खिलाफ हैं जबकि मुलायम और उनके दायें अंग व भाई शिवपाल इसके कट्टर पक्षधर. यानि यह समझा जा सकता है कि दोनों भाई सत्ता में बने रहने के लिए (जनहित में ) कैसे कैसे फैसले ले सकते हैं.
यह सभी को याद ही होगा कि इसी वर्ष जून माह में जब दोनों भाइयों की सहमती से कौमी एकता दल का सपा में विलय हुआ था तब विवादों से बचने के लिए बहाना बनाया गया था कि इस विलय में मुख्तार शामिल नहीं हैं. लेकिन अब तो यह जगजाहिर हो चुका है कि सपा के सिरमौर मुलायम सिंह ऐसे न जाने कितने विवादों को धूल चटाने को तैयार बैठे है.
समाजवादी पार्टी उन्हें चुनाव चिन्ह देगी
इस बात की सम्भावना मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी की ओर से शनिवार को लखनऊ में समाजवादी पार्टी दफ्तर में कहे गए शब्दों में स्पष्ट दिखती है. मुलायम और शिवपाल से चली लंबी बैठक के बाद अफजाल ने मीडिया से विना किसी लाग लपेट के कह दिया कि मुख्तार अंसारी विधायक हैं. जाहिर है आगे भी चुनाव लड़ेंगे और ताल ठोंक कर फिर विधायक भी बनेंगे. सबसे दमदार निर्णय तो यह रहा कि समाजवादी पार्टी उन्हें चुनाव चिन्ह देगी और वो चुनाव लड़ेंगे.
समझा जाता है कि समाजवादी पार्टी में मुख्तार की पार्टी के विलय कि वकालत करने वाले मानते है कि पूर्वांचल में गाजीपुर, बलिया, मऊ और वाराणसी के इलाके में 20 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में मुख्तार और उनके खानदान का बड़ा असर है. दूसरी तरफ बसपा प्रमुख मायावती द्वारा मुस्लिम उम्मीदवारों को 100 टिकट देने से समाजवादी पार्टी दबाव में है. सपा के कर्ताधर्ता को इस तोहमद से उबरने की बेसब्री है कि वे मुसलमानों को अधिक टिकट नहीं देते हैं. इसलिए ही उन्होंने मुख्तार को ह्रदय परिवर्तन करवाने का निर्णय लिया अब चाहे उन्हें इसके बदले कुछ बदनामी ही क्यों न लेनी पड़े.
इस बार सपा कि साइकिल का पहियाँ आगे बढ़ चुकी है क्योंकि लगे हाथों यह भी तय हो गया कि मुलायम सिंह मुख्तार के इलाके में रैली भी करेंगे. बकौल अफजाल अंसारी यह रैली आगामी नवंबर माह में में गाजीपुर के मोहम्मदाबाद में होगी. उन्होंने इस बात को बड़ी जिम्मेदारी के साथ कहा कि हमलोग (यानि अंसारी परिवार ) समाजवादी पार्टी के एक सिपाही की हैसियत से कम शुरू भी कर चुके हैं.
अब ऊतर प्रदेश की जनता को ही यह तय करना होगा कि कौन असली व कौन मुखोटा धारी समाजवादी है. यादव परिवार में एक तरफ अखिलेश यादव तो दूसरी तरफ उनके रहनुमा बुजुर्ग हैं. भारतीय संस्कृति तो यही सिखाती है कि बद्र बुजुर्ग कि बात आपको हमेशा माननी चाहिए. इसलिए अखिलेश तो इसे मान लेंगे लेकिन उत्तर प्रदेश के प्रबुद्ध मतदाता इस विरोधाभाषी घटना को कैसे देखेंगे यह तो समय बताएगा.