जब इस्लाम में दहेज लेना-देना गुनाह है तो फिर काजी उनका निकाह क्यों पढ़ाते हैं : शबाना खान

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: इसलाम धर्म के आमिलों को ऐसी शादियों का बहिष्कार कर उनका निकाह नहीं पढाना चाहिए: शबाना खान

: दहेज से पीडित शबाना ने अपनी 6 बहनों को साथ लेकर देश में दहेज के खिलाफ मुहिम शुरू की

: सहेली संस्था के जरिये इसकी शुरूआत मेवात से शुरू की

: बेटियों की मुहिम को सफल बनाने के लिए उनके पिता फिरोज खान भी साथ दे रहे हैं

यूनुस अलवी

मेवात :    जब इसलाम धर्म में दहेज का लेना-देना गुनाह (पाप) है तो फिर काजी और मस्जिदों के इमाम ऐसी होनी वाली शादियों का निकाह क्यों पढाते हैं? इसलाम धर्म के आमिलों को चाहिए की जिन शादियों में दहेज का लेना-देता पाया जाता है उन शादियों का बहिष्कार करें और उनको निकाह नहीं पढाना चाहिए। ये विचार सहेली संस्था की राष्ट्रीय संयोजिका शबाना खान ने शनिवार को मेवात के कस्बा पिनगवां में लोगों को सम्बोधित करते हुऐ व्यक्त किए।
 
     दहेज से पीडित और सहेली संस्था की राष्ट्रीय संयोजिका शबाना खान ने भारत को दहेज मुक्त बनाने के लिए अपने माता-पिता और 6 सगी बहनों के साथ इसकी मेवात से शुरूआत कर दी है। दहेज है बेटी का अधिकार नारे को गांव-गांव और घर-घर पहुंचने के लिए शनिवार को शबाना ने कस्बा पिनगवां में एक नुक्क्ड सभा के जरिये लोगों को दहेज ना लेने और ना देने का लोगों से आहवान किया और वहीं छोटे-छोटे बच्चों ने भी नाटक के जरिये दहेज को एक बडी बुराई बताया और इसे रोकने के लिए इलाके के बुजुर्ग और युवाओं को आगे आने का संदेश दिया।
 
   शबाना खान का कहना है कि उसकी दस साल पहले शादी हुई थी लेकिन कम दहेज देने को लेकर उसकी ससुराल वाले आजतक उसे परेशान करते आ रहे हैं जिसकी वजह से वह करीब आठ साल से अपने पिता के घर पर रहकर इसकी लडाई लड रही हैं। दहेज ना देने या कम देने की वजह से देश में हर साल लाखों बेटियों को या तो घर से निकाल दिया जाता है या फिर उनको मार दिया जाता है। आज देश में दहेज ने विकराल बिमारी का रूप ले लिया है। भले ही देश के कानून और इसलाम धर्म में दहेज का लेना-देना मना हो फिर भी ये खुलेआम चल रहा है। इसे रोकने के लिए ना तो दीन के उमेला कोई कदम उठा रहे हैं और ना कानून अपनी सख्ती दिखा रहा है। शबाना का कहना है कि जिन शादियों में दहेज का लेना-देना होता ऐसी शादियों में मुसलमानों के काजियों को निकाह नहीं पढाना चाहिए बल्कि उनको ऐसी शादियों में जाने का ही बहिष्कार करना चाहिए। पंडितों को भी ऐसी शादियों के फैरे नहीं पडवाने चाहिए तभी इस दहेज रूपी कैंसर को रोका जा सकता है।
   सहेल संस्था की राष्ट्रीय प्रवक्ता और शबाना की छोटी बहन शाहीन का कहना है कि दहेज की खातिर जब उनकी बहन का घर बरबाद हो गया तो बाकी 5 बहनों ने तैय किया है कि वे अब शादी नहीं करेंगी बल्कि अपने माता-पिता के सहयोग से देश में दहेज के खिलाफ शुरू की गई मुहिम में अपने बहन का साथ देंगी। उन्होने कहा कि अगर कोई युवक बिना दहेज के उनसे शादी करने को तैयार है और दहेज के खिलाफ मुहिम में अपना योगदान देने को तैयार है तो वे उससे शादी करने पर विचार कर सकती हैं।
 
शबाना खान के पिता फिरोज खान का कहना है कि वे बेसिक तौर से मेवात के रहने वाले हैं और काफी समय से दिल्ली में रह रहे हैं। उसके ञ बेटियां हैं जिनमें बडी बेटी का दस साल पहले रिश्ता किया उसने अपनी बेटी को बेहतरीन शिक्षा तो दी लेकिन वह दहेज में कार और नगद पैसे नहीं दे सका। जिसकी वजह से बेटी का रिश्ता खराब हो गया है। एक बेटी का रिश्ता खराब होने की वजह से सभी बेटियों में शादी करने से एक नफरत सी पैदा हो गई है। उनके काफी समझाने पर भी वे शादी करने को तैयार नहीं हैं और मेवात ही नहीं बल्कि देश को दहेज मुक्त बनाने की एक मुहिम में सभी बेटियां पिछले चार साल से जुटी हुई हैं। उसने भी अपनी बेटियों की उम्मीदों को पूरा करने के लिए तन-मन-धन से साथ देने का मन बना लिया है। 

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