माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी, सदन के सम्मानित नेता श्री अरुण जेटली, सम्मानित नेता प्रतिपक्ष श्री गुलाम नबी आजाद, माननीय उपसभापति श्री पी.जे. कुरियन, प्रतिष्ठित सदन के माननीय मंत्रिगण और विशिष्ट सदस्यगण।
1998 में एक सदस्य के तौर पर जब मैंने इस प्रतिष्ठित सदन में प्रवेश किया था, तो उस समय मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन मुझे इस सदन की अध्यक्षता करने का सम्मान मिलेगा। यही हमारे संसदीय जनतंत्र की सुन्दरता और महिमा होने के साथ ही इसकी ताकत भी है। यह मेरे जैसे आम व्यक्ति को उठाकर ऐसे उच्च स्थान पर बैठा सकता है और इस महान पद के अनुरूप जिम्मेदारियों का निर्वाह करने का अवसर प्रदान करता है।
सदन के माननीय सदस्यों द्वारा मुझे देश का उपराष्ट्रपति निर्वाचित करने पर मैं स्वयं को अत्यधिक सम्मानित महसूस कर रहा हूं और इस लोकतांत्रिक विशेषता की वजह से ही मुझे राज्यसभा के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
मुझ पर दोबारा भरोसा करने और विश्वास जताने तथा मुझे यह जिम्मेदारी सौंपने के लिये मैं आप सभी का आभारी हूं। शुरूआत में ही मैं आप सभी को आश्वस्त करना चाहता हूं मैं आपकी आशाओं को पूरा करने का हर संभव प्रयास करूंगा।
इस महान सदन के सभापति के तौर पर विस्तार से अपने विचार रखने से पहले मैं संक्षिप्त में देश की संसद के इस संघीय सदन के उदभव और भूमिका के बारे में बताना चाहता हूं। 1918 में मोन्टेग-चेर्म्सफोर्ड रिपोर्ट में इसके बारे में सबसे पहले बताया गया था। भारत सरकार अधिनियम 1919 पारित होने के बाद 1921 में सीमित मताधिकार के साथ तत्कालीन विधायिका के दूसरे सदन के रूप में राज्य सभा अस्तित्व में आई।
इसके बाद, संविधान सभा में इस सदन की आवश्यकता पर व्यापक बहस हुई थी। यह माना गया था कि प्रत्यक्ष मतदान द्वारा चुना गया केवल एक सदन स्वतंत्र भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए अपर्याप्त होगा। तदनुसार, ‘राज्य सभा’ एक संघीय सदन यानी निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने गए सदन के रूप में गठित गई थी। देश के उप-राष्ट्रपति को सदन का पदेन अध्यक्ष बनाकर इस सभा को सम्मान और प्रतिष्ठा प्रदान की गई थी।
संविधान सभा के विद्वान सदस्य इस सभा को ‘चिंतनशील और मूल्यांकन तर्क के सदन’ के रूप में मानते हैं। स्वर्गीय श्री एन गोपालास्वामी अय्ययंगार ने इसे ‘शालीनता बनाए रखने का सदन’ करार दिया था। स्वर्गीय श्री लोकनाथ मिश्रा ने इसे ‘मर्यादित सदन, समीक्षा करने वाला सदन, गुणवत्तापरक सदन बताया। इस सदन के सदस्यों को विशेष समस्याओं पर सदन की चर्चा में मर्यादित रूप से अपनी बात रखने का अधिकर है।
राज्य सभा का अर्थ विधायिका में संघीय संतुलन और समता सुनिश्चित करना है। बहस को अधिक समृद्ध बनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के जानकार व्यक्तियों को बड़ी संख्या में नामांकित करने का प्रावधान भी किया गया है। इस सदन से संघीय योजनाओं में राज्यों के हितों की रक्षा करने की भी आशा की जाती है।
इससे यह साबित होता है कि इस महान सदन को कार्य करने का स्पष्ट जनादेश प्रदान किया गया है, बशर्ते सदस्य अनिच्छा से ही अपनी भूमिका को कम कर अप्रासंगिक न बना दें, जैसा कि कुछ अवसरो पर देखा गया है। यह माननीय सदस्यों पर निर्भर करता है।
माननीय सदस्यगण!
विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले हमारे देश को अपनी प्रक्रियाओं, संसाधन बढ़ाने, साझेदारी करने और सामाजिक-आर्थिक गुणवत्ता आदि सुनिश्चित करने के लिए सक्षम तथा प्रभावी विधायिका की आवश्यकता है।
माननीय सदस्यगण समय हमारे पक्ष में नहीं है। स्वतंत्रता के 70 वर्ष होने के बावजूद हम गरीबी, निरक्षरता, असमानता, कृषि और ग्रामीण विकास की चुनौतियों, सत्ता का दुरूपयोग आदि जैसे मौलिक मुद्दों से जूझ रहे हैं, जबकि हमारे ही साथ स्वतंत्र हुए कई राष्ट्र अधिक केन्द्रित प्रयासों के साथ अपनी ऊर्जा का बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर हमसे काफी आगे हैं।
किसी व्यक्ति, संस्थान या राष्ट्र की सफलता के लिए समय प्रबंधन महत्वपूर्ण होता है। हमारे पास समय की विलासिता नहीं है। हमें पिछले सात दशकों में गंवाए गए अवसरों को दोबारा बनाने की आवश्यकता है, जिसे हमारे देश ने अपनी पूरी क्षमता, बड़ी आबादी और प्राकृतिक संसाधनों एवं अन्य खासियतों के बारे में अनभिज्ञता के कारण गंवाए थे।
इस महान सदन की प्रति वर्ष 100 दिन से भी कम बैठकें होती हैं। क्या माननीय सदस्यों को अपने देश और लोगों के हित में उपलब्ध इस समय का बेहतर उपयोग नहीं करना चाहिए? इसका निर्णय प्रबुद्ध सदस्यों को करना चाहिए।
हमें अपनी विविधता और एकता पर गर्व है, तो इस मामले में भी क्या हम एक समान राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करने और युवा भारत की आकांक्षाओं को समझने के लिए एकजुट नहीं हो सकते? हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में विभिन्न सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर अलग-अलग विचार रखने और व्यापक विचार-विमर्श की संभावना है। लेकिन संसद की कार्यवाही को बुरी तरह से प्रभावित करने की विपरीत राजनीति की अनुमति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे हमारे राष्ट्र की प्रगति प्रभावित होती है।
राष्ट्रीय हित के लिए राजनीतिक जनतंत्र पवित्र साधन है, लेकिन सदनों में गूंजने वाली गड़बड़ी की राजनीति हमारे देश और लोगों की प्रगति में बाधा डालती है। हमारे संसदीय जनतंत्र के किसी भी सदन में ऐसी गड़बड़ी की राजनीति फैलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
प्रत्येक चुनाव में विजेता को जनादेश दिया जाता है और विपक्ष को जवाबदेही सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। संसदीय लोकतंत्र संख्या के बारे में है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि मात्र संख्या के खेल के लिए हमारे सदनों के कामकाज को कम किया जाए। सरकार गठन के साथ ही संख्याओं का खेल समाप्त हो जाना चाहिए और उसके बाद केवल दुर्लभ मामलों में ही इसका उपयोग किया जाना चाहिए। हमारे जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था की विधायिका का कामकाज भविष्य प्रेरित होने चाहिए।
माननीय सदस्यों,
हमारे देश की जनता की यह इच्छा है कि संसद प्रबुद्धजनों की आवाज़ होनी चाहिए, जो लोगों की चिंताओं की आवाज से गूंजती रहे और उनकी समस्याओं का समाधान निकालती रहे, क्योंकि यही सबसे अच्छा तरीका है। वर्षों से संसद के दोनों सदनों ने बहुत अच्छा काम किया है। लेकिन किसी कारण से हमारे कामकाज के बारे में लोगों में चिंता और असंतोष बढ़ा है। इस बढ़ते हुए असंतोष के बारे में गंभीरता से आत्मविश्लेषण करने की आवश्यकता है। लोगों से यह कहा जाए कि हमने अभी तक इस बारे में पर्याप्त कार्य नहीं किया है। हमें अपने बोलने के तरीके और कार्य में उचित बदलाव करके राज्य विधानसभाओं के लिए एक उदाहरण स्थापित करने की आवश्यकता है।
सदन का प्रभावी कामकाज समय और स्थान के प्रबंधन के बारे में है। सत्ता और विपक्षी दोनों बेंचों में स्थान और समय-सीमा निर्धारित है। हमें बेहतर परिणामों के हित में अपने आपको समय और स्थान की इन निर्धारित सीमाओं के भीतर ही समायोजित करने की जरूरत है। दोनों पक्षों की ओर से आपसी तालमेल के रवैये को अपनाने की जरूरत है। ऐसा सदन में अवरोध पैदा करने की बजाए प्रभावी कामकाज की रणनीति के माध्यम से ही संभव है। इसके लिए सभी संबंधित पक्षों की ओर से एक प्रबुद्ध दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।
दुर्भाग्य से, पूरे देश भर में हमारी विधानसभाओं में इस अवरोध और रुकावट की कार्यवाही को ही एक मात्र संसदीय विकल्प के रूप में चुनने के काम में बढ़ोत्तरी हुई है। इससे हमारे संसदीय लोकतंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं। इस विकल्प को हमारी जनता के सामने आ रही समस्याओं के समाधान खोजने और मुद्दों को सुलझाने के लिए प्रभावी बहस और चर्चा की चाहत के द्वारा तुरंत हटाने की जरूरत है।
हम यह कैसे कर सकते हैं? हमें इस महान सदन के सदस्य होने के अवसर का अच्छा उपयोग करने के लिए कुछ विशेष काम करने की ज़रूरत नहीं है। हमें जो काम करना है, वह अलग तरह से करना है और इस काम के लिए सदन में व्यवधान और अवरोध पैदा करने की बजाए मुद्दों पर जोरदार बहस और चर्चा करने की जरूरत है। मेरा विपक्ष में बहुत दृढ़ विश्वास है और वर्तमान सरकार का अपना तरीका है। इसका अनिवार्य रूप से यह मतलब है कि दोनों ही पक्ष इस प्रक्रिया में एक-दूसरे का सम्मान करें और समायोजन करें।
जो मैं कह सकता हूं और करना चाहता हूं, वह यह है कि आप सभी को अपनी बात कहने देने का पूरा प्रयास करूं जिससे आप इस सदन का कामकाज प्रभावी रूप से करने में समर्थ हों। मैं निश्चित रूप से गुमराह छात्रों को अनुशासन के मार्ग पर लाने की कोशिश करने वाले हेडमास्टर जैसा नहीं बनना चाहता। मुझे यकीन है कि इस तरह से काम नहीं हो सकता। मेरा एक दूसरे के साथ सौहार्दपूर्ण और विश्वास के माहौल को बढ़ावा देने के लिए प्रयास होगा। हमारे देश को विधानसभाओं के कामकाज के लिए नए सामान्य माहौल की जरूरत है। मेरा आप सभी के सहयोग से इस महान सदन में नया सामान्य माहौल बनाने का प्रयास होगा।
समग्र और त्वरित सामाजिक-आर्थिक विकास के माध्यम से राष्ट्र का निर्माण ही वर्तमान सरकार की एकमात्र प्राथमिकता और जिम्मेदारी नहीं है। यह एक राष्ट्रीय कार्य है जिसके लिए राष्ट्रीय प्रयास की आवश्यकता है। विपक्ष इस प्रयास में एक प्रमुख हितधारक है, जबकि विधानसभाएं प्रभावी सक्षम मंच हैं। विपक्ष द्वारा कार्यकारी की जवाबदेही लागू करने का सबसे अच्छा तरीका है, सरकार को शामिल करना और एक अच्छी बहस में उसे घेरना। मेरा यह मानना है कि प्रश्नकाल को छोड़ने या सार्वजनिक हित के अविलम्बनीय मुद्दों पर बहस को पटरी से उतारने से सबसे अधिक फायदा कार्यकारी को होता है। कार्यकारी को भी यह स्वीकार करने की जरूरत है कि विपक्ष को बहस में शामिल करना उनके हित में है, क्योंकि विपक्ष के रचनात्मक सहयोग से कोई भी कानून सार्वजनिक सम्मान और कानूनों की स्वीकार्यता को बढ़ा देता है। हमारी विधानसभाओं के कामकाज में प्रबुद्ध दृष्टिकोण के साथ एक नये सामान्य माहौल की स्थापना संभव है।
19 वर्षों से इस महान सदन के एक सदस्य, और वह भी अधिकांश रूप से विपक्ष के सदस्य के रूप में, मैं सदन के दोनों पक्षों की संवेदनशीलता, सदन के कार्य के नियमों, माननीय सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों और कुछ अवसरों पर उनकी भावनाओं और निराशाओं से भली भांति अवगत हूं।
मैं इस बारे में भी सचेत हूं कि डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. जाकिर हुसैन, न्यायमूर्ति हिदायतुल्ला, श्री आर. वेंकटरमन, डॉ. शकर दयाल शर्मा, श्री के.आर. नारायणन, श्री भैरों सिंह शेखावत जैसी विशिष्ट हस्तियों और अन्य लोगों ने इस महान सदन की कार्यवाही की विशिष्टता के साथ अध्यक्षता की है। मेरे तात्कालिक पूर्ववर्ती श्री हामिद अंसारी ने ऐसा दस साल तक किया। मेरा यह प्रयास होगा कि मैं इन योग्य व्यक्तियों द्वारा स्थापित परंपराओं और मानकों को बनाए रखूं।
आइए हम अपने संविधान के जगमगाते सिद्धांतों, स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों, महात्मा गांधी, डॉ. बी. आर. अंबेडकर और सभी अन्य नेताओं, जिन्होंने हमारे देश को इतने आगे पहुंचाने के लिए अपना खून और पसीना बहाया है, की महान आत्माओं के महान विचारों से मार्गदर्शन लें। इस देश के अंतर्राष्ट्रीय सौजन्य में अपना निर्धारित स्थान प्राप्त करने से पहले हम उस दूरी का हमेशा ध्यान रखें जिसे हमारे देश को अभी भी तय करने की जरूरत है। तभी देश के प्रत्येक नागरिक के चेहरे पर मुस्कान सुनिश्चित होगी। आइए हम बेहतर भविष्य के लिए लोगों के अधिकार से मार्गदर्शन प्राप्त करें।
लोगों को बेहतर जीवन के अधिक अवसर प्रस्तुत करने के लिए विकास की गति बढ़ाने हेतु प्रतिस्पर्धा और सहकारी संघवाद की भावना से केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा उद्देश्य और तात्कालिकता की कुछ नई भावना का प्रदर्शन किया जा रहा है। आइये हम इस राष्ट्रीय जरूरत को पूरा करने में एक उत्प्रेरक की भूमिका निभाएं।
मैं आप सभी को यह आश्वासन देना चाहूंगा कि भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के अध्यक्ष के पद की गरिमा को बनाए रखने के लिए मेरा सशक्त प्रयास रहेगा और मैं आपके भरोसे पर खरा उतरने का भी प्रयास करुंगा। मैं आपकी सेवा में हूं और आपके सामूहिक ज्ञान के अऩुसार इस महान सदन के कामकाज में सुधार लाने के लिए आपके सुझावों का सदैव स्वागत रहेगा।
1997 में हमारी आजादी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित विशेष सत्र में इस महान सदन के माननीय सदस्यों द्वारा लिए गए संकल्प को स्मरण करना चाहूंगा। सदस्यों ने संसद की प्रतिष्ठा को बनाए रखने और उसे बढ़ाने के लिए संकल्प लिया था और सदन की प्रक्रिया और कार्य के आचरण के नियमों के पूरे शासन और पीठासीन अधिकारी के निर्देश के जागरूक और सम्मानजनक अनुपालन द्वारा संसद की प्रतिष्ठा बढ़ाने का भी संकल्प लिया था। आइये हम इस महत्वपूर्ण संकल्प का अनुपालन करें।
सभी माननीय सदस्यों को धन्यवाद।