-वाराणसी में आयोजित देव दीपावली के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की
वाराणसी : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज वाराणसी में देव दीपावली के भव्य समारोह में अपने सम्बोधन में ज़ोर देते हुए कहा कि, “भारत सनातन की भूमि है। काशी इसका केंद्र। सनातन में विश्व शांति का संदेश। सनातन सभी को समाहित करता है। सनातन विभाजनकारी ताकतों का विरोध करता है।”
उपराष्ट्रपति ने आज वाराणसी में आयोजित देव दीपावली के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की और ‘नमो घाट’ का लोकार्पण किया। इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश की राज्यपाल माननीय आनंदीबेन पटेल जी, माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी और केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पूरी सहित अन्य गढ़मान्य जन भी मौजूद थे।
अपने संबोधन में सनातन को भारत की आत्मा बताते हुए उन्होंने कहा कि सनातन राष्ट्र धर्म, भारतीयता का प्रतिबिंब है और सनातन हमको एक सीख देता है, दृढ़ रहने की, एक रहने की, मजबूत रहने की। और आज के समय में चुनौतियों को देखते हुए यह अत्यंत आवश्यक है कि सनातन की मूल भावना में हमारा विश्वास हो। सनातन भारत की आत्मा है और सनातन को चुनौती असहनीय है।
संस्कृति और विरासत के संरक्षण पर ज़ोर देते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि हमें ये याद रखना चाहिए की हमारी सांस्कृतिक जड़ें ही हमारे वर्त्तमान और भविष्य का निर्माण करती हैं और सांस्कृतिक जड़ें बहुत जरूरी होती हैं, हमें जीवंत रखती हैं।
प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा, “अपना भारत बदल रहा है। अकल्पनीय तरीके से बदल रहा है। जो सोचा नहीं था, वह देश में संभव हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में और उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी जी की तपस्या से जो बदलाव हो रहा है, उसने दुनिया को अचंभित कर दिया है। जल हो, थल हो, आकाश हो, अंतरिक्ष हो, भारत की बुलंदियों को दुनिया सराह रही है। हमारी जो सांस्कृतिक विरासत है, जो दुनिया में अनूठी है और 5000 साल से अधिक पुरानी है, उसका संरक्षण और उसका सृजन जिस प्रकार हो रहा है, वह देखने लायक है।”
स्वदेशी जागरण के महत्व पर प्रकाश डालिए हुए श्री धनखड़ ने कहा, “ स्वदेशी का भाव अपने में जागृत करें। स्वदेशी हमारी आजादी का विशेष अंग रहा है। यहाँ देखिए स्वदेशी दीप देश की मिट्टी, तेल और रुई का प्रतीक है। एक दीप से अनेक दीप, स्वदेशी भाव का जागरण और प्रसार। स्वदेशी जागरण समृद्धि का मार्ग है। इसके नतीजे क्या होते हैं – आत्मनिर्भरता, विदेशी मुद्रा का बचाव और स्वदेशी रोजगार का फैलाव। इसमें हर व्यक्ति योगदान कर सकता है।”
सामाजिक समरसता को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “ सामाजिक समरसता हमारे सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग रहा है। इस देश में कभी भी किसी ने आक्रमण की नहीं सोची है। आक्रमणकारियों को हमने समाहित किया है । हमारी संस्कृति हमें प्रेरणा देती है सभी को साथ लेकर चलें। भारत सामाजिक समरसता की नींव है। दुनिया को बड़ा संदेश देती है। मानवता का सबसे बड़ा धर्म क्या है? सामाजिक समरसता होनी चाहिए। हमारे बीच मतभेद हो सकते हैं, मनभेद कम से कम होने चाहिए ……..पर जब राष्ट्र हित के मामले में हम कुछ लोगों को देखते हैं कि वो इसको सर्वोपरि नहीं रखते हैं, तो देश में चुनौती का वातारण बनता है। उस वातावरण के प्रति सजग रहने के लिए हमारी सांस्कृतिक माला जो है, हम सबको उसी का हिस्सा रहना है। मैं आपसे आग्रह करूंगा और हमारी संस्कृति की ये बेमिसाल पूंजी है, सौहार्द पूर्ण संवाद रखिए। परिजनों से संपर्क रखे, जहां भी रहते हैं आस पड़ोस का ध्यान रखें।”