नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के वाराणसी लोकसभा क्षेत्र से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. यह याचिका वाराणसी से चुनाव लड़ने में सफल रहे बीएसएफ से बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव ने दायर की थी. उन्होंने अपनी याचिका में इस चुनाव को रद्द कर दोबारा चुनाव कराने की मांग की थी .इससे पहले श्री यादव ने यह याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर की थी. जहां उनकी याचिका खारी कर दी गई थी.
बताया जाता है कि हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति ही किसी भी संसदीय या अन्य क्षेत्रों से निर्वाचित व्यक्ति के खिलाफ या वहां के चुनावी परिणाम को चुनौती दे सकता है. लेकिन इस मामले में तेज बहादुर यादव जो पहले बीएसएफ में तैनात थे भोजन संबंधी कथित अनियमितताओं को उजागर करने के मामले पर बर्खास्त कर दिए गए थे. तेज बहादुर यादव, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन उनके नामांकन में तकनीकी खामियों के कारण चुनाव आयोग ने उनका नामांकन रद्द कर दिया था. इससे वह चुनाव नहीं लड़ पाए थे. कोर्ट ने कहा था कि ऐसे में कानूनी तौर पर उक्त लोकसभा सीट के निर्वाचन को चुनौती देने का अधिकार नहीं बनता है.
बताया जाता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से उनके खिलाफ फैसला आने के बाद तेज बहादुर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की जहां पिछले 6 माह में उसकी सुनवाई की तारीख को लगातार तीन बार टलवाने की विनती करते रहे. लेकिन इस बार तीन जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने उनकी इस विनती को स्वीकार करने से मना कर दिया. सुनवाई कर रहे बेंच ने कहा कि प्रधानमंत्री का पद देश में विशिष्ट और इकलौता है ऐसे में उस पद पर बैठे व्यक्ति के मामले में दायर याचिका को लंबे अर्से तक लटकाए रखना ठीक नहीं है।
अंततः चीफ जस्टिस ने तेज बहादुर के वकील प्रदीप यादव को इस मामले में बहस शुरू करने को कहा . उनके वकील ने अदालत के समक्ष चुनाव आयोग की ओर से तेज बहादुर के मामले में कथित तौर पर पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि रिटर्निंग ऑफिसर ने तेज बहादुर से चुनाव लड़ने की योग्यता पर चुनाव आयोग का प्रमाण पत्र पेश करने के लिए कहा. रिटर्निंग ऑफिसर ने उनसे कहा था जो लोग सरकारी नौकरी से बर्खास्त किए जाते हैं उन्हें प्रमाण पत्र देना होता है कि वह किसी भ्रष्टाचार या ऐसी किसी वजह से तो नौकरी से नहीं निकाले गए हैं जिसमें अगले 5 साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध रहता है . तेज बहादुर ने यह सर्टिफिकेट लाने के लिए रिटर्निंग ऑफिसर से समय मांगा लेकिन उन्हें पर्याप्त समय नहीं दिया गया और उनका नामांकन रद्द कर दिया गया।
तीन जजों वाली बेंच की ओर से तेज बहादुर के वकील से सवाल किया गया कि क्या उन्होंने इस मामले को हाईकोर्ट के सामने रखा था और हाईकोर्ट ने अपने फैसले में क्या तर्क दिया है. तेज प्रताप की वकील इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए. उन्होंने एक बार फिर मामले की सुनवाई टालने की गुजारिश की लेकिन चीफ जस्टिस ने इससे साफ इंकार कर दिया.
अंततः तेज प्रताप के वकील ने 5 मिनट का समय मांगा सवाल का जवाब देने के लिए. चीफ जस्टिस ने उनसे कहा कि आप 5 मिनट में फाइलों को देखकर हमारे सवाल का जवाब दीजिए.
इस बीच याचिका पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने बेंच को बताया कि तेज बहादुर ने उक्त लोकसभा क्षेत्र से दो बार नामांकन भरा . पहली बार 24 अप्रैल को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उन्होंने पर्चा भरा जबकि दूसरी बार 29 अप्रैल को समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल किया .उन्होंने कोर्ट को बताया कि दोनों ही बार दाखिल नामांकन पत्र में तेज बहादुर ने अलग-अलग प्रकार की जानकारी दी. एक नामांकन में तो उन्होंने सरकारी नौकरी से अपनी बर्खास्तगी की जानकारी को छुपाया जबकि दूसरे नामांकन में उन्होंने इसका खुलासा किया . यह उसके नामांकन को रद्द करने का बड़ा कारण बना.
श्री साल्वे ने कहा कि नियमों के मुताबिक तेज बहादुर यादव अपनी योग्यता का प्रमाण पत्र चुनाव आयोग से लाने में असफल रहे और इसका जवाब भी संतोषजनक वह नहीं दे पाए. ऐसे में निर्वाचन आयोग के समक्ष उनके नामांकन रद्द करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था।
दूसरी तरफ लगभग 5 मिनट के बाद अपनी फाइलों को पलटने के बावजूद तेज प्रताप यादव के वकील प्रदीप यादव जजों के सवालों का जवाब नहीं दे पाए. उन्होंने पुनः इस सुनवाई को अगले 2 दिन के लिए टालने की मांग दोहराई लेकिन बेंच ने उनकी इस मांग को ठुकरा दिया और इसे निर्णय के लिए रिजर्व रखा।
आज चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया. फैसले में कहा गया है कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल तेज बहादुर यादव की याचिका विचार के लायक नहीं है इसलिए इसे खारिज किया जाता है। फैसले में यह भी कहा गया है की याचिका में उद्धृत की गई बातें किसी सीट पर दोबारा चुनाव कराने के लिए मजबूत आधार नहीं हो सकती है।