नयी दिल्ली, 24 जनवरी: निर्वाचन आयोग ने उच्चतम न्यायालय में शुक्रवार को कहा कि चुनावी उम्मीदवारों को इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में घोषणा करने के 2018 के उनके निर्देश से राजनीति के अपराधीकरण पर रोक लगाने में मदद नहीं मिल रही है।
आयोग ने कहा कि उम्मीदवारों से उनकी आपराधिक पृष्ठभूमि की मीडिया में घोषणा करने के बारे में कहने के बजाए राजनीतिक दलों से कहा जाना चाहिए कि वे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट ही न दें।
न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन और न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट की पीठ ने आयोग को निर्देश दिया कि वह देश में राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के मद्देनजर एक सप्ताह के भीतर इसकी रूपरेखा पेश करे।
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता भाजपा नेता एवं अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और निर्वाचन आयोग से कहा कि वे साथ मिलकर विचार करें और सुझाव दें जिससे राजनीति में अपराधीकरण पर रोक लगाने में मदद मिले।
सितंबर 2018 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था कि सभी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग के समक्ष अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा करना होगी। फैसले में कहा गया था कि उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि के बारे में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए।
इस फैसले के बाद 10 अक्टूबर, 2018 को निर्वाचन आयोग ने फार्म-26 में संशोधन करने के बारे में अधिसूचना जारी की थी और सभी राजनीतिक दलों तथा प्रत्याशियों को आपराधिक पृष्ठभूमि प्रकाशित करने का निर्देश दिया था।
हालांकि, उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया कि निर्वाचन आयोग ने न तो चुनाव चिन्ह आदेश, 1968 में संशोधन किया और न ही आचार संहिता में ऐसा किया। अत: इस अधिसूचना का कोई कानूनी महत्व नहीं था।
याचिका में कहा गया था कि निर्वाचन आयोग ने इस मकसद के लिये प्रमुख समाचार पत्रों और समाचार चैनलों में ऐसी कोई सूची प्रकाशित नहीं की और न ही इसमें प्रत्याशियों द्वारा आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा के लिये समय के बारे में स्पष्ट किया था।
याचिका के अनुसार इस वजह से प्रत्याशियों ने बेतुके समय पर उन समाचार पत्रों और समाचार चैनलों में यह जानकारी प्रकाशित की जो बहुत लोकप्रिय नहीं थे।