सुभाष चौधरी
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय रेलवे के रूपांतरकारी संगठनात्मक पुनर्गठन को मंजूरी दे दी है। यह ऐतिहासिक सुधार भारतीय रेलवे को भारत की ‘विकास यात्रा’ का विकास इंजन बनाने संबंधी सरकार के विजन को साकार करने में काफी मददगार साबित होगा।
सुधारों में निम्नलिखित शामिल हैं:
I. रेलवे के समूह ‘ए’ की मौजूदा आठ सेवाओं का एक केन्द्रीय सेवा ‘भारतीय रेलवे प्रबंधन सेवा (आईआरएमएस)’ में एकीकरण
II. रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन कार्यात्मक तर्ज पर होगा, जिसकी अध्यक्षता सीआरबी करेंगे। इसमें 4 सदस्यों के अलावा कुछ स्वतंत्र सदस्य होंगे।
III. मौजूदा सेवा ‘भारतीय रेलवे चिकित्सा सेवा (आईआरएमएस)’ का नाम बदलकर भारतीय रेलवे स्वास्थ्य सेवा (आईआरएचएस) रखा जाएगा।
रेलवे ने अगले 12 वर्षों के दौरान 50 लाख करोड़ रुपये के प्रस्तावित निवेश से आधुनिकीकरण के साथ-साथ यात्रियों को उच्च मानकों वाली सुरक्षा, गति एवं सेवाएं मुहैया कराने के लिए एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम बनाया है। इसके लिए तेज गति एवं व्यापक स्तर से युक्त एक एकीकृत एवं चुस्त-दुरुस्त संगठन की आवश्यकता है, ताकि वह इस जिम्मेदारी को पूरी एकाग्रता के साथ पूरा कर सके और इसके साथ ही वह विभिन्न चुनौतियों से निपटने में सक्षम हो सके। आज के ये सुधार दरअसल वर्तमान सरकार के अधीन पहले लागू किए जा चुके उन विभिन्न सुधारों की श्रृंखला के अंतर्गत आते हैं जिसमें रेल बजट का विलय केन्द्रीय बजट में करना, महाप्रबंधकों (जीएम) एवं क्षेत्रीय अधिकारियों (फील्ड ऑफिसर) को सशक्त बनाने के लिए उन्हें अधिकार सौंपना, प्रतिस्पर्धी ऑपरेटरों को रेलगाडि़यां चलाने की अनुमति देना इत्यादि शामिल हैं।
अगले स्तर की चुनौतियों से निपटने और विभिन्न मौजूदा कठिनाइयों को दूर करने के लिए यह कदम उठाने की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। विश्व भर की रेल प्रणालियों, जिनका निगमीकरण हो चुका है, के विपरीत भारतीय रेलवे का प्रबंधन सीधे तौर पर सरकार द्वारा किया जाता है। इसे विभिन्न विभागों जैसे कि यातायात, सिविल, यांत्रिक, विद्युतीय, सिग्नल एवं दूरसंचार, स्टोर, कार्मिक, लेखा इत्यादि में संगठित किया जाता है। इन विभागों को ऊपर से लेकर नीचे की ओर पृथक किया जाता है और इनकी अध्यक्षता रेलवे बोर्ड में सचिव स्तर के अधिकारी (सदस्य) द्वारा की जाती है। विभाग का यह गठन ऊपर से लेकर नीचे की ओर जाते हुए रेलवे के जमीनी स्तर तक सुनिश्चित किया जाता है। सेवाओं के एकीकरण से यह ‘नौकरशाही’ खत्म हो जाएगी, रेलवे के सुव्यवस्थित कामकाज को बढ़ावा मिलेगा, निर्णय लेने में तेजी आएगी, संगठन के लिए एक सुसंगत विजन सृजित होगा और तर्कसंगत निर्णय लेने को प्रोत्साहन मिलेगा।
रेलवे में सुधार के लिए गठित विभिन्न समितियों ने सेवाओं के एकीकरण की सिफारिश की है जिनमें प्रकाश टंडन समिति (1994), राकेश मोहन समिति (2001), सैम पित्रोदा समिति (2012) और बिबेक देबरॉय समिति (2015) शामिल हैं।
7 एवं 8 दिसम्बर, 2019 को दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय ‘परिवर्तन संगोष्ठी’ में रेल अधिकारियों की आम सहमति और व्यापक समर्थन से यह सुधार किया गया है। इस भावना की कद्र करने और रेल अधिकारियों के सुझावों को अहमियत दिए जाने को लेकर उनमें व्यापक भरोसा उत्पन्न करने के लिए रेलवे बोर्ड ने 8 दिसम्बर, 2019 को ही सम्मेलन के दौरान बोर्ड की असाधारण बैठक आयोजित की थी और उपर्युक्त सुधारों सहित अनेक सुधारों की अनुशंसा की थी।
अब आगामी भर्ती चक्र या प्रक्रिया से एक एकीकृत समूह ‘ए’ सेवा को सृजित करने का प्रस्ताव किया जाता है जो ‘भारतीय रेलवे प्रबंधन सेवा (आईआरएमएस) कहलाएगी। अगले भर्ती वर्ष में भर्तियों में सुविधा के लिए डीओपीटी और यूपीएससी से परामर्श कर नई सेवा के सृजन का काम पूरा किया जाएगा। इससे रेलवे अपनी जरूरत के अनुसार अभियंताओं/गैर-अभियंताओं की भर्ती करने और इसके साथ ही करियर में उन्नति के लिए इन दोनों ही श्रेणियों को अवसरों में समानता की पेशकश करने में सक्षम हो जाएगी। रेल मंत्रालय निष्पक्षता एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कैबिनेट द्वारा गठित की जाने वाली वैकल्पिक व्यवस्था की मंजूरी से डीओपीटी के साथ परामर्श कर सेवाओं के एकीकरण की रूपरेखा तय करेगा। यह प्रक्रिया एक साल के भीतर पूरी हो जाएगी।
भर्ती किए जाने वाले नए अधिकारी आवश्यकतानुसार अभियांत्रिकी एवं गैर-अभियांत्रिकी क्षेत्रों से आएंगे और उनके कौशल एवं विशेषज्ञता के अनुसार उनकी तैनाती की जाएगी, ताकि वे किसी एक क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल कर सकें, एक समग्र परिप्रेक्ष्य विकसित कर सकें और इसके साथ ही वरिष्ठ स्तरों पर सामान्य प्रबंधन जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए तैयार हो सकें। सामान्य प्रबंधन पदों के लिए चयन योग्यता आधारित प्रणाली के जरिए किया जाएगा।
रेलवे बोर्ड का गठन अब से विभागीय तर्ज पर नहीं होगा और इसका स्थान एक छोटे आकार वाली संरचना लेगी जिसका गठन कार्यात्मक तर्ज पर होगा। इसमें एक चेयरमैन होगा जो ‘मुख्य कार्यकारी अधिकारी’ के रूप में कार्य करेगा। इसके साथ ही 4 सदस्य होंगे जिन्हें अवसंरचना, परिचालन एवं व्यावसायिक विकास, रोलिंग स्टॉक एवं वित्तीय से जुड़े कार्यों की अलग-अलग जवाबदेही दी जाएगी। चेयरमैन दरअसल कैडर नियंत्रणकारी अधिकारी होगा जो मानव संसाधनों (एचआर) के लिए जवाबदेह होगा और जिसे एक डीजी (एचआर) आवश्यक सहायता प्रदान करेगा। शीर्ष स्तर के तीन पदों को रेलवे बोर्ड से खत्म (सरेंडर) कर दिया जाएगा और रेलवे बोर्ड के शेष पद सभी अधिकारियों के लिए खुले रहेंगे, चाहे वे किसी भी सेवा के अंतर्गत आते हों। बोर्ड में कुछ स्वतंत्र सदस्य (इनकी संख्या समय-समय पर सक्षम प्राधिकरण द्वारा तय की जाएगी) भी होंगे जो गहन ज्ञान वाले अत्यंत विशिष्ट प्रोफेशनल होंगे और जिन्हें उद्योग जगत, वित्त, अर्थशास्त्र एवं प्रबंधन क्षेत्रों में शीर्ष स्तरों पर काम करने सहित 30 वर्षों का व्यापक अनुभव होगा। स्वतंत्र सदस्य विशिष्ट रणनीतिक दिशा तय करने में रेलवे बोर्ड की मदद करेंगे। बोर्ड से मंजूरी मिलने के बाद पुनर्गठित बोर्ड काम करना शुरू कर देगा। इसके तहत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अधिकारियों को पुनर्गठित बोर्ड में शामिल किया जाए अथवा उनकी सेवानिवृत्ति तक समान वेतन एवं रैंक में समायोजित किया जाए।