हरियाणा पुलिस हर बार नाकाम क्यों होती है ?

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सुभाष चौधरी/ प्रधान संपादक 

नई दिल्ली : वर्तमान प्रदेश सरकार के लगभग तीन वर्ष के कार्यकाल में पिछली दो बड़ी घटनाओं की तरह ही इस बार भी सबसे अधिक जनता और मीडिया के निशाने पर अगर कोई है तो वह हरियाणा पुलिस है. सवाल उठाये जा रहे हैं कि लगभग 355 आईपीएस और एचपीएस अधिकारियों के नेतृत्व में हरियाणा की 2.696 करोड़ जनता की सुरक्षा में तैनात अधिकारियों सहित कुल 56 हजार 979 पुलिस बल एक बार फिर एक रेप अभियुक्त के षड्यंत्र की शिकार हुई या फिर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी ने उन्हें सवालों के घेरे में खडा होने को मजबूर कर दिया ? वर्षों से अपना साम्राज्य अनैतिक तरीके से चला रहे ह्त्या व अन्य संगीन मामलों के आरोपी और अब रेप के सजायाफ्ता गुरमीत राम रहीम को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए हरियाणा पुलिस को कोई क्रेडिट नहीं दे रहा है. अधिकतर व्यक्ति 36 लोगों के मारे जाने का जिम्मेदार अवश्य ठहरा रहे हैं. धारणा पुख्ता हो गई है कि 25 अगस्त को हुई पंचकूला की विभत्स घटना ने आम लोगों की नजरों में हरियाणा पुलिस के सहयोग, सेवा और सुरक्षा के दावे को खोखला साबित किया है. लोग चर्चा करने लगे हैं कि हरियाणा पुलिस और अर्ध सैनिक बलों के अधिकारियों के वेतन व सुविधाएं एक समान हैं फिर दोनों बलों के काम में इतना बड़ा अन्तर क्यों ? यह प्रशिक्षण में कमी का नतीजा है या राजनेताओं के प्रकोप से बाहर निकलने की इच्छाशक्ति का अभाव ?

 

प्रदेश का आम जन आज एक दूसरे से पूछ रहा है कि क्या पंजाब से 1966 में अलग अस्तित्व में आने के बाद इस प्रदेश की प्रशासनिक दक्षता उस स्थिति में नहीं पहुंची है कि किसी विषम या दूभर स्थिति का मजबूती से सामना कर सके या उसे प्रभावी तरीके से नियंत्रित कर सके ? या कालांतर में राज्य की पुलिस व्यवस्था को अनायास ही खोखला होने दिया गया ? आखिर हर बार केन्द्रीय अर्ध सैनिक व सैनिक बलों पर राज्य को क्यों निर्भर होना पड़ता है. जाहिर है , इससे राज्य की प्रशासनिक पृष्ठभूमि में कहीं कोई चूक रहने का स्पष्ट संकेत मिलता है.

 

अक्सर भारत- चीन, भारत –पाकिस्तान , अमेरिका-रूस, या फिर अमेरिका- चीन की सैनिक क्षमता की तुलना करते हुए मिडिया को देखा जाता है लेकिन राज्य की पुलिस और केन्द्रीय सुरक्षा बलों की दक्षता का तुलनात्मक अध्ययन कम ही होता है. अक्सर पुलिस रिफार्म की बात चर्चा में आती है. देश में पुलिस रिफार्म के लिए प्रकास कमिटी से पहले और बाद में भी कमिटी का गठन हुआ. उसकी रिपोर्ट भी आई लेकिन उस पर अमल रत्ती भर भी नहीं हुआ. संभव है प्रशासनिक व राजनीतिक स्तर पर इसकी कोशिश होती रही हो परन्तु इसका असर नहीं दिखता है अन्यथा हरियाणा पुलिस को बार बार केंद्र की ओर देखने की जरूरत नहीं पड़ती. अगर संख्या बल की दृष्टि से केन्द्रीय बल मंगाए जाएँ तो समझा जा सकता है लेकिन उग्र भीड़ से निपटने के तौर तरीके, उसकी रणनीति व उसकी प्रभावी कार्रवाई के तरीके के आगे राज्य की पुलिस कमतर साबित होती है. जहाँ तक उनके हथियार की बात है तो इस मद में कोई तुलना नहीं है और अर्ध सैनिक बल,  राज्य पुलिस से बेहद अलग होते हैं. और सबसे बड़ी बात विषम परिस्थितियों से लड़ने के जज्बे में भी बड़ा अन्तर देखने को मिलता है.

 

यह जान कर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आज की पुलिस वयवस्था भी ब्रिटिश इंडियन गवर्नमेंट द्वारा एच एम् कोर्ट की अध्यक्षता में 1860 में गठित पुलिस कमीशन के निर्धारित नियमों के अनुसार ही चल रही है. हमने उस व्यवस्था व तंत्र को स्वीकार किया लेकिन उसके मूल व्यावहारिकता पर कभी अमल नहीं किया. उसमें साफ तौर पर कहा गया था कि पुलिस की ड्यूटी केवल और केवल नागरिक सेवा के लिए होगी लेकिन इसका प्रशिक्षण एवं अनुशासन आर्मी की तरह ही होगा. अब तक की तीन बड़ी घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पुलिस को आर्मी के स्तर वाला तो दूर अर्ध सैनिक स्तर का प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता है. भीड़ की पत्थरबाजी के आगे स्थानीय पुलिस को इस बार भी पीछे हटते देखा गया.

 

आजादी से पूर्व गठित देश के पहले पुलिस कमीशन के प्रवधान के आलोक में ही 1934 में पंजाब पुलिस रूल्स बना और इसके नियमों के अनुसार ही आज भी देश के पांच राज्यों, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, चंडीगढ़ और हरियाणा की पुलिस व्यवस्था काम कर रही है. दिल्ली व चंडीगढ़ पुलिस तो केंद्र के अधीन है इसलिए उनमें काफी सुधार हुए, उन्हें प्रोफेसनल बनाने की कोशिश हुई और इसका असर दिखता भी है लेकिन हरियाणा पुलिस घिसी पिटी राह पर ही चलती रही. जिसका परिणाम अक्सर देखने को मिलता है. मिडियाकर्मियों ने भीड़ के आगे बेबस, लाचार एवं जूझने के जज्बे की कमी से परेशान हरियाणा पुलिस को पंचकूला में मैदान छोड़ कर भागते हुए दिखाया. यहाँ तक कि ड्यूटी मजिस्ट्रेट के भी भागने की खबर आई. यह देख व सुन कर जनता कैसे इन पर अपनी सुरक्षा के लिए भरोसा कर सकती है यह सवाल उठना लाजिमी है. 36 लोग मारे गए, हाजारों की संख्या में वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया और सैकड़ों भवनों में आगजनी व तोड़फोड़ हुई. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से हरियाणा के डीजीपी ने पुलिस की किसी प्रकार की नाकामी से इनकार किया है.

 

यह हालत तो तब हुयी जब इन्हें बलवा करने वालों की संख्या का पूरा पूरा अंदाजा था. यह अचानक आई भीड़ नहीं थी. घटना के तीन दिन पूर्व से ही राम रहीम के समर्थक गुंडों का जमाबडा लग चुका था. स्थिति क्या बनने वाली थी इसके आसार इन्हें पहले से ही दिखाई दे रहे थे. इस भीड़ में महिलायें व बच्चे भी बड़ी संख्या में थे. संकेत स्पष्ट था कि उपद्रवी महिलाओं व बच्चों को अपनी आड़ बना सकते हैं लेकिन सतर्कता केवल बाबा राम रहीम को सुरक्षित कोर्ट लाने और जेल पहुंचाने में बरती गयी , जनता राम भरोसे.

 

मीडिया के दावे के अनुसार स्वयं डीजीपी ने पत्र लिख कर इस भीड़ के पास किस प्रकार के घातक साजो सामान थे उसकी जानकारी सभी एस पी व पुलिस आयुक्त को दी थी. उन्होंने इनके दुरूपयोग की आशंका जताते हुए उन्हें सतर्क भी किया था. फिर इतनी बड़ी चूक कैसे ? 

 

कभी एक पुलिस रेंज वाले इस प्रदेश में अब 4 पुलिस रेंज और तीन पुलिस आयुक्तालय (commissionerate ) हैं जबकि 17 जिले और रेलवे पुलिस की जिम्मेदारी निभाने वाले अधिकारी अलग तैनात हैं . पंजाब से अलग होने पर इस राज्य को केवल 12165 पुलिस बल मिले थे आज इनकी संख्या अधिकारियों को मिला कर 56979 है. इनमें डीजीपी व एडीजीपी सहित 86 आईपीएस अधिकारी हैं जबकि एचपीएस पुलिस अधिकारियों की संख्या भी दो सौ के आसपास है. अगर हरियाणा पुलिस के खुद के आंकड़े पर विश्वास करें तो इनकी टीम में 800 पुलिस इंस्पेक्टर, एस आई 2006, एएसआई 4595, हेड कांस्टेबल 9230 और 39993 कांस्टेबल शामिल हैं.

 

किसी भी अर्ध सैनिक बल से अगर तुलना की जाए तो हरियाणा पुलिस के पास सक्षम पुलिस अधिकारियों की संख्या कहीं अधिक है. मसलन सीआरपीऍफ़ में 50 आईपीएस अधिकारी हैं तो हरियाणा में 86. फिर हर बार की तरह इस बार भी नाकामी क्यों हाथ लगी ?

 

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