मुझको तो भैया की भैंस पसन्द है……..

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       बस यूँ ही….. निशिकांत, दरभंगा

पसन्द अपनी-अपनी और ख्याल अपना-अपना। यह खालिश दिल का मामला है। इस पर किसी का कोई जोर नहीं। हीर को रांझा तो सोनी को महिवाल ही पसन्द आया। लैला-मजनूँ मामले में भी आप ऐसा ही कह सकते हैं। यानी च्वाइस की कोई सीमा नहीं।ऐसे ही पसन्द व नापसन्दी को लेकर कई लोग आम से खास हो गए हैं।
सेलेब्रेटियों को अपने फैन्स पसन्द है तो दुकानदारों को कैश। बेबी को बेस(वोल्यूम) पसन्द है तो मुझे भाई जी वाली भैंस। मैं बचपन से ही चूजी रहा हूँ और 4g के जमाने में भी मैंने अपनी पुरानी च्वाइस 2g को बरकरार रखा हूँ यही क्या कम है?
एक बार तो उस भैंस को हमने सिर्फ इसलिए नहीं बेचने दिया कि खरीदार ने जाने-अनजाने उसकी तारीफ करते हुए कह दिया था कि उसका मुखड़ा चाँद का टुकड़ा जैसा है और होंठ तो बोन चाइना के दो प्याले। वैसे भी मैं अपनी पसन्द पर उस समय और गर्व महसूस करता हूँ जब कोई कहता है–काला अक्षर भैंस बराबर। गयी भैंस पानी में। गाय व हाथी को पानी में भेजते हुए किसी से सुना है? भैंस के आगे आप बीन भी बजाएंगे तो वह जुगाली ही करती रहेगी। वह न तो नागीन डांस करेगी और न ही डंसेंगी।
क्लास में एक बार टीचर ने सवाल गलत होने पर डाँटते हुए छात्रा को भैंस की अक्ल कहा था तो मैंने जोर से ताली बजा दी थी, मुझे अच्छी तरह से आज भी याद है।
एक दिन थाने जाने का मौका मिला तो वहां भी देखा कि मूंछ पर हाथ फेरे लाठी लिए एक दबंग किस्म का इनसान जोर जोर से चिल्लाये जा रहा था– जिसकी लाठी उसी की भैंस। सुनकर मेरा सीना 56 इंच का हो गया। मैं अपनी पसन्द पर इठला रहा था कि यहां भी मेरी च्वाईस के कदरदान हैं।
मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब एक दिन ट्रेन में दो महिलाएं नोंक झोंक में दोनों एक दूसरे को भैंस ही कहे जा रही थी।
जिसकी चर्चा चारों ओर हो, ऐसे में भला मैं अपनी पसन्द में छेड़ छाड़ कर बेवकूफी क्यों करूँ ? ओइम शांति।

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