नई दिल्ली : केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज संसद में ‘आर्थिक समीक्षा 2023-24’ पेश करते हुए कहा कि 2024-25 में भारत की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 6.5 से 7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। भारत की अर्थव्यवस्था महामारी के बाद सुगमता से पुनर्बहाल हुई है। कोविड से पहले वित्त वर्ष 2020 के स्तरों की तुलना में वित्त वर्ष 2024 में भारत की वास्तविक जीडीपी 20 प्रतिशत अधिक रही है। ये बातें केन्द्रीय वित्त और कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण के द्वारा आज संसद में पेश आर्थिक समीक्षा 2023-24 में कही गई हैं।
इस समीक्षा में इस बात का उल्लेख किया गया है कि अनिश्चित, वैश्विक, आर्थिक प्रदर्शन के बावजूद घरेलू वृद्धि कारकों ने वित्त वर्ष 2024 में आर्थिक वृद्धि का समर्थन किया है। इसके अलावा, दशक के अंत यानी वित्त वर्ष 2020 में भारत ने 6.6 प्रतिशत औसत वार्षिक दर से प्रगति की है। यह अधिक या कमोबेश अर्थव्यवस्था की लंबे समय तक चलने वाली वृद्धि की संभावनाओं को प्रतिबिंबित करता है।
यह समीक्षा इस बात को लेकर सावधान करती है कि 2024 में किसी भी भूराजनीतिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होने पर आपूर्ति में बाधा, कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि व मुद्रास्फीति दबावों का फिर से बढ़ना और पूंजी प्रवाहों के लिए संभावित परिणामों की स्थिति उत्पन्न करने वाली मौद्रिक नीति में रूकावट पैदा होगी। इसके अलावा, यह आरबीआई की मौद्रिक नीति को प्रभावित करेगी। वर्ष 2023 में मर्केंडाइज व्यापार में गिरावट दर्ज होने के बाद 2024 के दौरान इसमें बढोतरी होने का अनुमान है, जिससे 2024 के लिए वैश्विक व्यापार आउटलुक सकारात्मक बना रहेगा।
यह समीक्षा इस बात को रेखांकित करती है कि सरकार द्वारा की गई पहल और उभरते हुए बाजारों में उत्पन्न अवसरों से लाभान्वित होने के कारण व्यापार के निर्यात, परामर्शदात्री और आईटी सक्षम सेवाओं का विस्तार किया जा सकता है। मुख्य महंगाई दर लगभग तीन प्रतिशत रहने के बावजूद आरबीआई की एक नजर सुविधाओं को वापस लेने पर और दूसरी नजर अमरीका के केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व पर है, जो पिछले कुछ समय से ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखे हुए है और यह अनुमानित है कि ब्याज दरों को कम करने में देरी हो सकती है।
आर्थिक समीक्षा बताती है कि भारत की अर्थव्यवस्था ने वैश्विक व बाहरी चुनौतियों के बावजूद अपनी लचीलता दिखाई है और वित्त वर्ष 2024 में जीडीपी 8.2 प्रतिशत की दर से बढ रही है। टिकाऊ उपभोक्ता मांग और निवेश की मांग में लगातार बढोतरी की वजह से वित्त वर्ष 2024 के चार तिमाहियों में से तीन तिमाहियों में यह दर 8 प्रतिशत से अधिक रही है।
यह समीक्षा रेखांकित करती है कि वित्त वर्ष 2024 में वर्तमान मूल्यों पर समग्र जीवीए में कृषि, उद्योग और सेवा की हिस्सेदारी क्रमश: 17.7 प्रतिशत, 27.6 प्रतिशत और 54.7 प्रतिशत थी। कृषि क्षेत्र के जीवीए में वृद्धि जारी रही, हालांकि इसकी गति धीमी रही। वर्ष के दौरान अनियमित मौसम और वर्ष 2023 में मानसून के असमान स्थानिक वितरण ने समग्र उत्पादन को प्रभावित किया है।
औद्योगिक क्षेत्र में विनिर्माण जीवीए में वित्त वर्ष 2023 के निराशाजनक प्रदर्शन को पीछे छोड दिया और वित्त वर्ष 2024 में 9.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। स्थिर घरेलू मांग को पूरा करते हुए विनिर्माण गतिविधियों को इनपुट कीमतों में कमी का लाभ मिला। इसी तरह निर्माण गतिविधियां तेज हुईं और बुनियादी ढांचे के निर्माण व आवासीय अचल संपत्ति की बढती मांग के कारण वित्त वर्ष 2024 में 9.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
सेवा क्षेत्र में विभिन्न उच्च आर्थिक संकेतक वृद्धि को दर्शाते हैं। वित्त वर्ष 2024 में थोक और खुदरा व्यापार को दर्शाते हुए वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) संग्रह और ई-वे बिल को जारी करके वित्त वर्ष 2024 में दोहरे अंकों की वृद्धि प्रदर्शित की। इस समीक्षा में आगे कहा गया है कि वित्तीय और पेशेवर सेवाएं महामारी के बाद विकास का एक प्रमुख कारक रहे हैं।
सकल स्थिर पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) विकास के एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में उभर रहा है। वित्त वर्ष 2023 में निजी गैर-वित्तीय निगमों द्वारा जीएफसीएफ में 19.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसके शुरूआती संकेत है कि वित्त वर्ष 2024 में निजी पूंजी निर्माण की गति बरकरार रही है। एक्सिस बैंक रिसर्च द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकडों के अनुसार 3,200 से अधिक सूचीबद्ध और गैर-सूचीबद्ध गैर-वित्तीय फर्मों के एक सुसंगत समूह में निजी निवेश वित्त वर्ष 2024 में 19.8 प्रतिशत बढा है। निजी निगमों के अलावा, परिवार भी पूंजी निर्माण प्रक्रिया में आगे बढ रहे हैं। वर्ष 2023 में भारत में आवासीय अचल संपत्ति की बिक्री वर्ष 2013 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर थी, जिसमें 33 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि देखी गई। शीर्ष आठ शहरों में कुल 4.1 लाख इकाइयों की बिक्री हुई।
स्वच्छ बैलेंस शीट और पर्याप्त पूंजी बफर के साथ बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र निवेश मांग की बढती वित्त पोषण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अच्छी स्थिति में है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) द्वारा औद्योगिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) और सेवाओं को ऋण वितरण उच्च आधार के बावजूद दोहरे अंकों में बढ रहा है। इसी तरह आवास की मांग में वृद्धि के अनुरूप आवास के लिए व्यक्तिगत ऋण में उछाल आया है।
यह समीक्षा बताती है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और प्रतिकूल मौसम की स्थिति के बावजूद वित्त वर्ष 2024 में घरेलू मुद्रास्फीति का दबाव कम हुआ है। वित्त वर्ष 2023 में औसतन 6.7 प्रतिशत के बाद वित्त वर्ष 2024 में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 5.4 प्रतिशत हो गई है। यह सरकार और आरबीआई द्वारा किए गए उपायों के संयोजन के कारण हुआ है। केन्द्र सरकार ने खुले बाजार में बिक्री, विनिर्दिष्ट दुकानों में खुदरा बिक्री, समय पर आयात, तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) सिलेंडर की कीमतों में कमी और पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती जैसे त्वरित उपाय किए। आरबीआई ने मई 2022 और फरवरी 2023 के बीच नीतिगत दरों में कुल 250 आधार अंकों की बढोतरी की।
आर्थिक समीक्षा के अनुसार, बढते राजकोषीय घाटे और बढते ऋण बोझ की वैश्विक प्रवृत्ति के विपरीत भारतीय राजकोषीय संमेकन की राह पर बना हुआ है। नियंत्रक महालेखा कार्यालय (सीजीए) द्वारा जारी अनंतिम वास्तविक (पीए) आंकडों के अनुसार, केन्द्र सरकार का राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2023 में सकल घरेलू उत्पाद के 6.4 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2024 में जीडीपी के 5.6 प्रतिशत पर आ गया।
वित्त वर्ष 2024 में सकल कर राजस्व (जीटीआर) 13.4 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया, जो 1.4 के कर राजस्व उछाल में तब्दील हो गया। यह वृद्धि वित्त वर्ष 2023 की तुलना में प्रत्यक्ष करों में 15.8 प्रतिशत की वृद्धि और अप्रत्यक्ष करों में 10.6 प्रतिशत की वृद्धि के कारण हुई।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि मोटेतौर पर जीटीआर का 15 प्रतिशत प्रत्यक्ष करों से और बाकी 45 प्रतिशत अप्रत्यक्ष करों से प्राप्त हुआ। वित्त वर्ष 2024 में अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि मुख्य रूप से जीएसटी संग्रह में 12.7 प्रतिशत की वृद्धि के कारण हुई। महामारी के बाद जीएसटी ई-वे बिल में भी वृद्धि दर्ज की गई।
वित्त वर्ष 2024 के लिए पूंजीगत व्यय 9.5 लाख करोड रुपए रहा, जो साल दर साल आधार पर 28.2 प्रतिशत की वृद्धि है और वित्त वर्ष 2020 के स्तर से 2.8 गुना अधिक है। अनिश्चित और चुनौतीपूर्ण वैश्विक माहौल के बीच केन्द्र सरकार का पूंजीगत व्यय पर जोर आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण कारक रहा है। सडक परिवहन और राजमार्ग, रेलवे, रक्षा सेवाओं और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में खर्च करने से लॉजिस्टिक संबधी बाधाओं को दूर करके और उत्पादक क्षमताओं का विस्तार करके विकास को उच्च और दीर्घकालिक गति मिलती है।
समीक्षा में कहा गया है कि, निजी क्षेत्र के लिए यह भी आवश्यक है कि स्वयं के प्रयासों से तथा सरकार की भागीदारी के माध्यम से पूंजी निर्माण की गति में तेजी लाएं। मशीनरी एवं उपकरण के लिहाज से पूंजी स्टॉक के अतिरिक्त उनका हिस्सा केवल वित्त वर्ष 2022 से मजबूती से बढ़ना आरंभ हुआ जो एक ऐसा रुझान है जिसे उनके सुधरते आधार और बैलेंस सीट की शक्ति के आधार पर बनाए रखने की आवश्यकता है जिससे कि उच्च-गुणवत्ता वाले रोजगारों का सृजन हो सके।
समीक्षा में बताया गया है कि राज्य सरकारों ने वित्त वर्ष 2024 में अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार करना जारी रखा। महालेखानियंत्रक द्वारा 23 राज्यों के एक समूह के लिए जारी वित्तों के आरंभिक गैर-अंकेक्षित अनुमान से संकेत मिलता है कि इन 23 राज्यों का सकल वित्तीय घाटा 9.1 लाख करोड़ रुपये के बजटीय अनुमान की तुलना में 8.6 प्रतिशत कम था। इसका अर्थ यह हुआ कि इन राज्यों के लिए जीडीपी के प्रतिशत के रूप में वित्तीय घाटा बजट के 3.1 प्रतिशत के मुकाबले 2.8 प्रतिशत रहा। राज्य सरकारों द्वारा कैपैक्स पर भी ध्यान केन्द्रित किये जाने से राज्य सरकारों द्वारा व्यय की गुणवत्ता में सुधार आया है।
राज्यों को केन्द्र सरकार का हस्तांतरण काफी प्रगतिशील रहा है और प्रति व्यक्ति निम्न सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) वाले राज्यों ने उनके जीएसडीपी की तुलना में उच्चतर हस्तांतरण प्राप्त किया है।
समीक्षा में रेखांकित किया गया है कि बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली पर भारतीय रिजर्व बैंक की चौकसी और इसके त्वरित नियामकीय कार्रवाइयों ने यह सुनिश्चित किया है कि बैंकिंग प्रणाली किसी भी वृहद आर्थिक या प्रणालीगत आघातों का सामना कर सकती है। जून 2024 की भारतीय रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के आंकड़े प्रदर्शित करते हैं कि मार्च 2024 में सकल गैर-निष्पादनकारी परिसम्पत्ति (जीएनपीए) अनुपात के गिरकर 2.8 प्रतिशत पर आने और यह 12 वर्ष के सबसे निचले स्तर पर है, के साथ अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की परिसम्पत्ति गुणवत्ता में सुधार आया है।
मार्च 2024 में इक्विटी और परिसम्पत्ति अनुपातों पर क्रमशः 13.8 प्रतिशत और 1.3 प्रतिशत के रिटर्न के साथ एससीबी की लाभप्रदत्ता मजबूत बनी रही। वृहद दबाव परीक्षणों से भी यह पता चलता है कि एससीबी भीषण दबाव परिदृश्यों में भी न्यूनतम पूंजी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं। बैंकिंग प्रणाली की मजबूती उत्पादक अवसरों के वित्त पोषण और वित्तीय चक्र की वृद्धि में सुविधा प्रदान करेगी। ये दोनों ही आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।
समीक्षा में रेखांकित किया गया है कि बाह्य मोर्चे पर वस्तु निर्यात की नरमी वित्त वर्ष 2024 में भी बनी रही जो मुख्य रूप से कमजोर वैश्विक मांग और निरंतर जारी भू-राजनीतिक तनावों के कारण रही। इसके बावजूद भारत का सेवानिर्यात मजबूत बना रहा और वित्त वर्ष 2024 में 341.1 बिलियन डॉलर की नई ऊंचाई पर पहुंच गया। समीक्षा में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2024 में निर्यात (वस्तु एवं सेवाएं) 0.15 प्रतिशत बढ़ा, जबकि कुल आयातों में 4.9 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई।
शुद्ध निजी हस्तांतरण, जिनमें मुख्यरूप से विदेशों से प्रेषण शामिल था, वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर 106.6 बिलियन डॉलर पहुंच गया। इसके परिणामस्वरूप वर्ष के दौरान, चालू खाता घाटा (सीएडी) जीडीपी का 0.7 प्रतिशत रहा, जो वित्त वर्ष 2023 के जीडीपी के 2.0 प्रतिशत के घाटे की तुलना में सुधार प्रदर्शित करता है। पिछले 2 वर्षों के शुद्ध बाह्य प्रवाह की तुलना में वित्त वर्ष 2024 के दौरान शुद्ध एफपीआई आवक 44.1 बिलियन डॉलर रही।
कुल मिलाकर भारत का बाह्य क्षेत्र अनुकूल विदेशी मुद्रा भंडार और स्थिर विनिमय दर के साथ कुशलतापूर्वक प्रबंधित किया जा रहा है। मार्च 2024 के अंत तक विदेशी मुद्रा भंडार 11 महीनों के अनुमानित आयातों को कवर करने के लिए पर्याप्त था।
समीक्षा में रेखांकित किया गया है कि भारतीय रुपया भी वर्ष 2024 में अपने उभरते बाजार समकक्षों की तुलना में सबसे कम उतार चढ़ाव वाली मुद्रा ही है। भारत के बाह्य ऋण संवेदनशीलता सूचकांक में भी नरमी बनी रही। जीडीपी के एक अनुपात के रूप में बाह्य ऋण मार्च 2024 के अंत में 18.7 प्रतिशत के निम्न स्तर पर रहा। आर्थिक समीक्षा 2024 के अनुसार, मार्च 2024 में कुल ऋण के मुकाबले विदेशी मुद्रा भंडार का अनुपात 97.4 प्रतिशत रहा।
समीक्षा में बताया गया है कि भारत के सामाजिक कल्याण दृष्टिकोण में एक बदलाव आया है जो इनपुट आधारित दृष्टिकोण से बदलकर परिणाम आधारित अधिकारिता में परिवर्तित हो गया है। प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत निःशुल्क गैस कनेक्शन उपलब्ध कराने, स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालयों का निर्माण करने, जनधन योजना के तहत बैंक खाते खोलने, पीएम-आवास योजना के तहत पक्के घरों का निर्माण करने जैसे सरकारी कार्यक्रमों ने वंचित वर्गों की क्षमताओं में सुधार किया है और उनके लिए अवसरों में वृद्धि की है। समीक्षा में कहा गया है कि इस दृष्टिकोण में “कोई भी व्यक्ति वंचित न रहे” के ध्येय को पूर्ण रूप से प्राप्त करने के उद्देश्य से समग्र सेवा प्रदान करने के लिए सुधारों का लक्षित कार्यान्वयन भी शामिल है।
प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) और जनधन योजना-आधार-मोबाइल ट्रिनिटी ने वित्तीय दक्षता को बढ़ाने और 2013 में अपनी शुरूआत के साथ डीबीटी के माध्यम से 36.9 लाख करोड़ रूपये के हस्तांतरण के साथ रिसाव को न्यूनतम बनाने में बड़ी भूमिका निभायी है।
समीक्षा में कहा गया है कि महामारी के बाद से अखिल भारतीय वार्षिक बेरोजगारी दर (सामान्य स्थिति के अनुसार 15 वर्ष और इससे अधिक आयु के व्यक्ति) दर में गिरावट बनी रही है और इसके साथ-साथ श्रमबल भागीदारी दर और श्रमिक-जनसंख्या अनुपात में वृद्धि भी होती रही है। लैंगिक परिपेक्ष्य में, महिला श्रमिक बल भागीदारी दर 6 वर्षों से बढ़ रही है। यह 2017-18 के 23.3 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 37 प्रतिशत हो गई। इसके पीछे मुख्य भूमिका ग्रामीण महिलाओं की बढ़ती भागीदारी रही।
समीक्षा में कहा गया है कि वैश्विक अनिश्चिताओं और उतार चढ़ाव के एक वर्ष के बाद, वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर, अर्थव्यवस्था ने 2023 में अधिक स्थिरता हासिल की। जहां प्रतिकूल भू-राजनीतिक घटनाओं में तेजी के कारण अनिश्चिता बनी रही, वहीं वैश्विक आर्थिक विकास आश्चर्यजनक रूप से मजबूत बना रहा।
समीक्षा में कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के विश्व आर्थिक आउटलुक (डब्ल्यूईओ), अप्रैल 2024 के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2023 में 3.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है।