पहाड़ काट कर बना डाली सड़क, 4 की बजाए चलना पड़ता था 40 किमी
नीरज कुमार
गया : बिहार के गया के दशरथ मांझी को माउंटेन मैन के नाम से नवाजा गया, जिन्होंने पहाड़ काटकर अपने गांव आने जाने का रास्त बनाया था. कुछ ऐसी ही कहानी दोहरायी गई है रोहतास के कैमूर पहाड़ियों पर बसे औरइयां, भुड़कुड़ा, उरदाग, चपरा और कुसुम्हा गांव के लोगों ने.
इन गांवों में करीब तीन हजार की आबादी समुद्रतल से डेढ़ हजार फीट की ऊंचाई पर बसी है. कोई बीमार पड़ तो उसे कंधे पर उठाए पहाड़ियों और पत्थरों को पैदल पार करते घंटों बाद ये लोग ताराचंडी पहुंचते हैं. नेताओं और अधिकारियों के चौखट चूमते-चुमते थक हार कर ग्रामीणों ने फैसला किया की अब वो अपनी तकदीर खुद बदलेंगे.
एक माह पहले आपस में बैठक कर पहाड़ियों को काट कर सड़क बनाने का फैसला लिया. 15 दिनों में लोगों के प्रयास से 2 किमी सड़क का निर्माण किया जा चुका है. शेष सड़क को बनाने में गांव वाले जोरशोर से जुटे हुए हैं. ग्रामीणों को जिला मुख्यालय चेनारी जाने के लिए 40 किलोमीटर घूमना पड़ता था. जिसे ग्रामीणों ने पहाड़ काटकर रास्ते बना डाले और आज 40 किलोमीटर का सड़क 4 किलोमीटर में बदल गयी.
वन विभाग के अधिकारियों की लगातार धमकी ने भी इनलोगों के हौसले नहीं तोड़े. आज चेनारी के पचौरा से औरइया, भुरकुरा,कुशुमा,चपरा,उडदगा जाने के लिए ग्रामीणों को नरवा,भोखरवा तथा गोड़िया घूम कर नही जाना पड़ता है. वो चेनारी प्रखंड मुख्यालय से आराम से अपना गांव पहुंच जाते है. हालांकि सड़कें गाडियों के चलने लायक नहीं बनी है फिर भी पैदल ही गांव में पहुंचने में समय नही लगाता.
औरइया के पूजन प्रजापति तथा बसंत खरवार कहते है कि वन विभाग उनलोगों को धमकी देता है कि पहाड़ तोड़े तो जेल भेज देंगे. लेकिन उनका कहना है कि जब गांव में भी कोई सुविधा नहीं तो जेल में ही रह लेंगे. कोई फर्क नहीं पड़ता है.
अमरीक मांझी कुसुम्हा के रहने वाले हैं. उनका कहना है कि कि हमलोग आसपास के चार-पांच गांव के ढाई से तीन सौ महिला पुरुष रात दिन लगे हैं और यह जल्द बनकर तैयार हो जाएगा.
चेनारी के बीडीओ राजेश कुमार कहते है कि उन्हे कुछ जानकारी नहीं है. वही वन विभाग के रेंजर बालेश्वर पाठक इस मामले में बात करने से कतरा रहे हैं.