ऑस्ट्रेलिया के साथ समझौते के बाद ऑस्ट्रेलिया को निर्यात होने वाला सारा इस्पात शुल्क मुक्त हो जाएगा : पीयूष गोयल

Font Size

नई दिल्ली :  केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण तथा कपड़ा मंत्री पीयूष गोयल ने इस्पात उद्योग से भारत ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौते (ईसीटीए) समझौते का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करने तथा ऑस्ट्रेलिया में नए अवसरों का लाभ उठाने का अनुरोध किया। वह आज नई दिल्ली में आईएसए इस्पात सम्मेलन के तीसरे संस्करण को संबोधित कर रहे थे।

श्री गोयल ने उपस्थित जनसमूह को जानकारी दी कि भारत ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौते (ईसीटीए) को ऑस्ट्रेलिया की संसद द्वारा पारित कर दिया गया है। इस एक उल्लेखनीय उपलब्धि करार देते हुए, उन्होंने रेखांकित किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व के विकसित देशों के साथ शक्तिशाली तरीके से जुड़ रहा है। उन्होंने कहा कि विकसित देश स्वीकार करते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व के विकास को प्रेरित करेगी। उन्होंने रेखांकित किया कि ऑस्ट्रेलिया के साथ हमारे समझौते के बाद ऑस्ट्रेलिया को निर्यात होने वाला हमारा सारा इस्पात शुल्क मुक्त हो जाएगा। श्री गोयल ने इस समझौते का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करने तथा ऑस्ट्रेलिया में नए अवसरों का लाभ उठाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि विकसित देशों के साथ ये व्यापारिक समझौते सभी सेक्टरों में हमारे युवाओं, कंपनियों के लिए नए अवसरों की शुरुआत करेंगे।

श्री गोयल ने कहा कि इस्पात उद्योग एक प्रमुख हितधारक है जो निर्यात से होने वाली आय में उल्लेखनीय रूप से योगदान देता है। उन्होंने कहा कि भारत की कई इस्पात कंपनियां विश्व की शीर्ष स्तरीय इस्पात आपूर्तिकर्ता कंपनियां हैं। भारतीय इस्पात से निर्मित्त इंजन, वाल्व जैसे उच्च गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उस गुणवत्ता वाले इस्पात के प्रमाण हैं जो इस्पात उद्योग उत्पादन कर रहा है। श्री गोयल ने उनसे ब्रांड इंडिया विकसित करने का आग्रह किया और कहा कि इस्पात उद्योग की बदौलत भारतीय उत्पादों के लिए वैश्विक पहचान का सृजन करने के भारत के समेकित प्रयासों का लाभ आसानी से अर्जित किया जा सकता है।

श्री गोयल ने इस्पात उद्योग की उनके द्वारा कोविड अवधि के दौरान किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए सराहना की। यह देखते हुए कि कई इस्पात कंपनियों ने तरल मेडिकल ऑक्सीजन को प्राथमिकता देने के लिए अपने उत्पादन तक में कटौती कर दी थी, उन्होंने उन्हें कोविड के उपचार के लिए चिकित्सा उपकरणों का निर्माण करने, तरल मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति करने के लिए आवश्यक अनिवार्य उपकरणों के विनिर्माण के माध्यम से उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए धन्यवाद दिया।

श्री गोयल ने विचार व्यक्त किया कि इस्पात उद्योग के पास एक उल्लेखनीय विकास क्षमता है और उन्होंने उनसे 2030 तक 300 मिलियन टन के लक्ष्य को अर्जित करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि भविष्य में आने वाले विशाल निवेशों को देखते हुए, यह उद्योग और भी समृद्ध तथा विकसित होता रहेगा। श्री गोयल ने कहा कि जहां कई अन्य इस्पात के बड़े उत्पादक देश गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं, भारत में बड़े घरेलू बाजार, लागत प्रतिस्पर्धात्मकता, आधुनिक प्रौद्योगिकी, उत्पादों के व्यापक रेंज और घरेलू लौह अयस्क क्षमता के लिहाज से विशाल अवसर हैं।

श्री गोयल ने कहा कि सरकार हमारे विनिर्माताओं, विशेष रूप से उन उद्योगों जो प्रतिस्पर्धी हैं, जिनमें उच्च गुणवत्ता मानक हैं तथा जो वैश्विक रूप से संगत हैं, के लिए और अधिक बाजार अवसरों की खोज करने के लिए अन्य देशों के साथ मिल कर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 ने भारत को दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बनने में सहायता की है।

इस्पातों तथा विभिन्न इस्पात उत्पादों पर निर्यात शुल्क की वापसी का उल्लेख करते हुए श्री गोयल ने बताया कि यह शुल्क मूल्य स्थिरता बनाये रखने तथा देश में विकास की गति को बरकरार रखने के लिए अस्थायी उपाय के रूप में लगाया गया था। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा उठाये गए इन कदमों का परिणाम मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाए जाने के रूप में आया है। उन्होंने समस्या को समझने तथा सरकार के कदम की पूरी सहायता करने के लिए इस्पात उद्योग की सराहना की।

श्री गोयल ने कहा कि सरकार की कोशिश एफटीए में ‘मेल्ट एंड पोर‘ प्रावधान के माध्यम से भारतीय इस्पात उद्योग की सुरक्षा करने की रही है। उन्होंने आश्वासन दिया कि इस प्रावधान के माध्यम से केवल इस्पात जिसे उन देशों में स्थानीय रूप से उत्पादित किया जाता है, को भारत में आयात किया जा सकता है। उन्होंने विचार व्यक्त किया कि इस्पात निर्यातों पर शुल्कों को हटाये जाने से भारतीय इस्पात उद्योग की अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़त बनी रहेगी।

उन्होंने यह भी बताया कि कुकिंग कोयले की उपलब्धता इस्पात उद्योग के लिए एक प्रमुख चुनौती है। उन्होंने उद्योग से इसका वैकल्पिक टिकाऊ समाधान ढूंढने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों के साथ सहयोग करने तथा अध्ययन आरंभ करने की अपील की। उन्होंने कूकिंग कोयले के लिए कुछ विशेष देशों पर निर्भर न रहने तथ आत्म निर्भर बनने के लिए नए रास्तों की खोज करने की आवश्यकता पर बल दिया।

श्री गोयल ने कहा कि भारत की प्रति व्यक्ति इस्पात खपत वैश्विक औसत की तुलना में बहुत कम है तथा उन्होंने उद्योग से वैश्विक औसत तक पहुंचने के लिए इसमें कम से कम तीन गुनी बढोतरी के लिए आकांक्षा रखने के लिए उद्योग से आग्रह किया।

उन्होंने कहा कि समृद्धि के बढ़ते स्तरों के साथ बढ़ता ईवी ऑटो बाजार इस्पात तथा अल्युमिनियम उद्योग के लिए संभावित उद्योग में बदल जाएगा। उन्होंने उद्योग जगत से निवेश की प्रक्रिया की प्रक्रिया में में तेजी लाने तथा इस्पात में पीएलआई के त्वरित रौल आउट में सहायता करने की अपील की।

श्री गोयल ने उद्योग को कार्बन फुटप्रिंट कम करने के लिए निर्वहनीयता के क्षेत्र में सामूहिक अनुसंधान आरंभ करने का सुझाव दिया। यह भारतीय इस्पात को अन्य देशों के मुकाबले प्राथमिकता दिलाने एवं बड़े बाजारों में अवसर प्राप्त करने तथा टिकाऊ इस्पात के लिए बेहतर मूल्य दिलाने में भी सहायता करेगा।

उन्होंने उद्योग जगत के प्रमुखों से छोटे विनिर्माताओं की सहायता करने पर विचार करें और इसके लिए एक तंत्र का निर्माण करें तथा यह सुनिश्चित करें कि इस्पात पर निर्यात शुल्कों की वापसी से छोटे विनिर्माताओं को नुकसान न पहुंचे। उन्होंने एमएसएमई उद्योग तथा इंजीनियरिंग उत्पादों के निर्यातकों की सहायता जारी रखने के लिए भी उन्हें प्रेरित किया।

You cannot copy content of this page