नयी दिल्ली, 20 जुलाई । उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर खुदाई के दौरान मिली कलाकृतियों को संरक्षित करने के लिये दायर दो जनहित याचिकायें सोमवार को खारिज कर दीं।
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने इन याचिकाओं को गंभीरता से विचार करने योग्य नहीं पाया। पीठ ने याचिकाकर्ताओं पर एक-एक लाख रूपए का अर्थदंड लगाते हुये उन्हें एक महीने के भीतर यह राशि जमा करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि पांच सदस्यीय पीठ इस मामले में अपना फैसला सुना चुकी है और यह इन जनहित याचिकाओं के माध्यम से इस निर्णय से आगे निकलने का प्रयास है।
याचिकाकर्ताओं की ओर पेश वकील ने कहा कि राम जन्मभूमि न्यास ने भी स्वीकार किया है कि इस क्षेत्र में ऐसी अनेक कलाकृतियां हैं जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है।
पीठ ने याचिकाकर्ताओं से जानना चाहा कि उन्होंने संविधान के अनुच्छेद32 के अंतर्गत शीर्ष अदालत में याचिका क्यों दायर की।
पीठ ने कहा, ‘‘आपको इस तरह की तुच्छ याचिका दायर करना बंद करना चाहिए। इस तरह की याचिका से आपका तात्पर्य क्या है? क्या आप यह कहना चाहते हैं कि कानून का शासन नहीं है और इस न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का कोई पालन नहीं करेगा।’’
केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्यायालय को याचिकाकर्ता पर अर्थदंड लगाने के बारे में विचार करना चाहिए।
पीठ ने कहा कि प्रत्येक याचिकाकर्ता पर एक-एक लाख रूपए का अर्थदड लगाया जाता है जिसका भुगतान एक महीने के भीतर किया जाना चाहिए।
ये याचिकायें सतीश चिंदूजी शंभार्कर और डा आम्बेडकर फाउण्डेशन ने दायर की थीं। इनमें इलाहाबाद उच्च न्यायालाय में सुनवाई के दौरान अदालत की निगरानी में हुयी खुदाई के समय मिली कलाकृतियों को संरक्षित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
इन याचिकाओं में नये राम मंदिर के लिये नींव की खुदाई के दौरान मिलने वाली कलाकृतियों को भी संरक्षित करने तथा यह काम पुरातत्व सर्वेक्षण की निगरानी में कराने का अनुरोध किया गया था।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल नौ नवंबर को अपने ऐतिहासिक फैसले में अयोध्या में राम जन्म भूमि स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिये एक न्यास गठित करने का निर्णय दिया था। न्यायालय ने इसके साथ ही मस्जिद के लिये पांच एकड़ भूमि आबंटित करने का निर्देश भी सरकार को दिया था।