नयी दिल्ली, 19 फरवरी । उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को व्यवस्था दी कि अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं के सदस्य सीधी भर्ती के माध्यम से जिला न्यायाधीशों के तौर पर नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होंगे।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जिला जज के पद के लिहाज से ऐसे वकीलों के लिए नियुक्तियां सीमित हैं जिन्हें बार में लगातार कम से कम सात वर्ष की प्रैक्टिस का अनुभव हो।
पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 233 के उपखंड 2 की विवेचना करते हुए कहा कि इस प्रावधान में न्यायिक सेवा में कार्यरत अभ्यर्थियों के जिला न्यायाधीशों के रूप में सीधी भर्ती के माध्यम से नियुक्ति पर प्रतिबंध लगाया गया है।
अनुच्छेद 233 का उपखंड 2 कहता है कि कोई व्यक्ति जो पहले ही केंद्र या राज्य की सेवा में है, वह जिला जज के तौर पर नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा।
प्रावधान यह भी कहता है कि जिला न्यायाधीश के पद के लिए पात्र व्यक्ति के पास वकील के तौर पर प्रैक्टिस का अनुभव सात साल से कम नहीं होना चाहिए और नियुक्ति के लिए उच्च न्यायालय द्वारा उसके नाम की सिफारिश की जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हालांकि अधीनस्थ न्यायपालिका के सदस्यों के नाम पर पदोन्नति के माध्यम से जिला न्यायाधीश के पद के लिए विचार किया जा सकता है।