जेपीसी से जाँच कराने की मांग, सरकार ने किया ख़ारिज
नई दिल्ली : नोटबंदी के सरकार फैसले पर राज्यसभ में बहस शुरू है. पक्ष व विपक्ष एक बात फिर उच्च सदन में आमने सामने है. विपक्ष ने नोटबंदी से उत्पन्न स्थिति की जाँच जेपीसी से कराने की मांग की है जबकि सरकार इसे अनावश्यक बता रही है. पीएम नरेन्द्र मोदी के इस फैसले से देश के लोगों को विशेषकर गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों के नागरिकों को होने वाली भारी परेशानी की ओर ध्यान दिलाते हुए विपक्ष ने आज कई गंभीर आरोप लगाइ. उन्होंने कहा कि इससे न केवल देश में आर्थिक अराजकता पैदा हो गई बल्कि पूरी दुनिया में यह संदेश गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था में काले धन का बोलबाला है. हालांकि सरकार ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया और कहा कि देश के अधिकतर लोग इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं. तर्क दिया गया कि इस फैसले से दीर्घकाल में ब्याज कम होने सहित आम लोगों को कई फायदे मिलेंगे.
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह देश हित में उठाया गया कदम है और पहली बार देश में ईमानदारों का सम्मान और बेईमानों को नुकसान हुआ है.
राज्यसभा में आज शीतकालीन सत्र के पहले दिन नोटबंदी और इससे आम जनता को हो रही परेशानी के मुद्दे को उठाते हुए कांग्रेस ने कहा कि सरकार सबसे पहले यह बताए कि काले धन की परिभाषा क्या है. कांग्रेस के आनंद शर्मा ने नोटबंदी के मुद्दे पर उच्च सदन में चर्चा की शुरूआत की और कहा कि आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश में 500 रूपये और 1000 रूपये के नोटों को मध्य रात्रि से अमान्य किए जाने का ऐलान किया. स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संदेश के माध्यम से इतने बड़े फैसले की जानकारी दी.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा था कि काले धन, आतंकवाद पर रोक के लिए यह कदम जरूरी है. रूपये का उपयोग आतंकवादी भी कर रहे हैं और जाली मुद्रा भी चलन में है. इसलिए यह कदम जरूरी है. शर्मा ने कहा कि जब यह ऐलान किया गया तब देश में 16 लाख 63 हजार के करेंसी नोट सकरुलेशन में थे और इनमें से 86.4 फीसदी नोट 500 और 1000 रूपये के नोटों के थे. उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह 86.4 फीसदी नोट काले धन का था जो बाजार में लगा था.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि आतंकवाद, काला धन, भ्रष्टाचार, नकली मुद्रा के मुद्दे पर पूरा सदन एकजुट है और इसमें कोई दो राय नहीं है. शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री की अचानक की गई इस घोषणा से देश में आपात स्थित पैदा हो गई है और लोग बुरी तरह परेशान हैं.
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने न केवल आर्थिक अराजकता पैदा की बल्कि नगदी से चलने वाली अर्थव्यवस्था की रीढ़ ही तोड़ दी. उन्होंने कहा कि हमारी अर्थव्यवस्था नगदी के लेन देन की है और आम आदमी, छोटे व्यापारी, किसान, गृहणियां अपने साथ क्रेडिट कार्ड और चेकबुक ले कर नहीं चलते. जब प्रधानमंत्री ने काले धन की बात कही तब क्या उन्होंने इस बात को ध्यान में रखा था. क्या बाजार में, घरों में, किसानों, मजदूरों, सरकारी कर्मियों के पास काला धन था. क्या खेतों में अनाज उगा कर मंडी ले कर आने वाला किसान अपने साथ काला धन लाता और ले जाता है.
शर्मा ने कहा कि दुनिया भर में यह संदेश गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में काले धन का बोलबाला है। उन्होंने कहा ‘देश को कृपया कलंकित न करें. उन्होंने कहा कि सरकार को यह कदम उठाने से पहले कोई समय सीमा बतानी चाहिए थी. आप कहते हैं कि पहले बताने से आतंकियों को, जाली नोट वालों को फायदा होता लेकिन आपका यह तर्क समझ से परे है. पूर्व की सरकारों ने भी नोटबंदी की है लेकिन तब लोगों को समय दिया जाता था.
बहस में जदयू नेता शरद यादव ने किसानो को रहत दने की मांग की जबकि सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने चाय बागानों के मजदूरों व एनी क्षेत्र के मह्दूरों व किसानो को इससे छुट देने की मांग की. उन्होंने कोलकात में एक बीजेपी नेता द्वारा बड़ी मात्रा में ५०० व १००० के नोट इससे पहले जमा कराने पर सवाल खड़ा किया व इसकी जाँच के लिए जेपीसी गठन करने की मांग की.