नयी दिल्ली। संसद ने सोमवार को ‘पोत पुनर्चक्रण विधेयक-2019’ को मंजूरी दे दी तथा सरकार ने पोत तोड़ने के उद्योग के कारण पर्यावरण को नुकसान पहुंचने के संबंध में विपक्ष की आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि प्रस्तावित कानून से इस उद्योग के बेहतर नियमन में मदद मिलेगी।
राज्यसभा में विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए पोत परिवहन मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि मौजूदा समय में दुनिया के पोत रिसाइकलिंग उद्योग में भारत की 30 फीसदी हिस्सेदारी है और इस विधेयक के कानून का रूप लेने के बाद इसमें और बढ़ोतरी होगी।
मंत्री ने कहा कि हांगकांग संधि का अनुमोदन करने और अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) के मानकों के आधार पर कानून बनाने से पोत उद्योग को बहुत लाभ होगा।
कुछ सदस्यों की चिंताओं को दूर करने का प्रयास करते हुए मांडविया ने कहा कि यह संधि देश और उद्योग के हित में है, इसलिये इसे लागू कर रहे हैं। मोदी सरकार किसी संधि को लागू करने के लिये किसी के दवाब में नहीं आती है। आरसीईपी देश के हित में नहीं था, तो हमने स्वीकार नहीं किया।
उन्होंने गुजरात के अलंग का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां 131 फ्लोट हैं जिनमें से 72 फ्लोट हांगकांग संधि के अनुरूप हैं।
उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान में जहाज तोड़ने का उद्योग कचरा पैदा करने वाला नहीं बल्कि धन पैदा करने वाला उद्योग है। इन जहाजों से इस्पात के अलावा मोटर, इंजन, फर्नीचर आदि प्राप्त होते हैं।
मांडविया ने कहा कि इसमें स्वास्थ्य एवं श्रमिक सुरक्षा का खास ध्यान रखा गया है। इसमें ऐसा प्रावधान है कि उद्योग को जहाज से जुड़ी सामग्री की जानकारी तैयार करनी होती है जिसमें यह भी बताना होगा है कि घातक सामग्री क्या-क्या हैं। इसके अलावा अधिकार सम्पन्न प्राधिकारी इसकी जांच करते हैं।
मंत्री के जवाब के बाद सदन ने विधेयक को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। भाषा माधव राजेश मनीषा