नई दिल्ली । बीजेपी के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूजा स्थल एक्ट 1991 में संशोधन करने की मांग की है। उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि ऊक्त अधिनियम में पारित किए गए कुछ प्रावधान देश के नागरिकों के लिए संविधान में निहित मौलिक अधिकार स्वतंत्रता की भावना के विरुद्ध है। कई प्रकार की संभावनाओं को जन्म देने वाले इस पत्र में श्री स्वामी ने कहा है कि पूजा स्थल ( एक्ट ) अधिनियम की धारा 4 में संशोधन किया जाना चाहिए क्योंकि यह उपासना के अधिकार की अल्ट्रा वायर्स है।
राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखने वाले बीजेपी नेता स्वामी ने जोरदार शब्दों में आरोप लगाया है कि सितंबर 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार द्वारा पारित पूजा अधिनियम को अयोध्या में राम मंदिर के लिए संघ परिवार के व्यापक आंदोलन को नियंत्रित करने के लिए लाया गया था। उन्होंने बताया है कि ऊक्त अधिनियम की धारा 4 में कहा गया है कि अयोध्या मामले को छोड़कर, मंदिरों और अन्य पूजा स्थलों की यथास्थिति 15 अगस्त 1947 जिस दिन भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की थी के अनुसार बरकरार रखी जाएगी । इस अधिनियम के अनुसार, कोई भी अदालत या न्यायाधिकरण मंदिरों और पूजा स्थलों के मामले की सुनवाई नहीं कर सकता है और कोई उस पर अधिकार नहीं जमा सकता है।
बीजेपी नेता ने साफ शब्दों में आरोप लगाया है कि नरसिम्हा राव सरकार की ओर से तब इस अधिनियम को संघ परिवार को रोकने के लिए लागू किया गया था जो पहले से ही काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा श्री कृष्ण मंदिर को मुक्त कराने की मांग कर रहा है और औरंगजेब द्वारा आंशिक रूप से नष्ट कर दिया गया था और उन पर मस्जिद का निर्माण किया गया था।
उनके अनुसार अयोध्या का मामला पहले से ही न्यायालयों में था इसलिए सरकार ने इस विवादास्पद स्थान को 1991 के पूजा अधिनियम से मुक्त कर दिया था। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या मामले पर दिया गया हालिया फैसला भी इस अधिनियम के बारे में विवरण देता है।
श्री स्वामी ने लिखा है कि “मैं यह पत्र लिखता हूं कि द मिनिस्टर ऑफ लॉ ऑफ पूजा (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 और विशेष रूप से धारा 4 में एक संशोधन को प्रभावी करने के लिए आपकी दिशा तलाशने के लिए अनुच्छेद 25 और 26 के तहत मेरे मौलिक अधिकारों का हनन है और संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। यह अधिनियम नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा पारित किया गया था। मौलिक अधिकारों को संसद द्वारा पारित किसी कानून द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता है। इसका अनुच्छेद 25 और 26 के तहत पूजा की स्वतंत्रता के मेरे मौलिक अधिकार को समाप्त करने की संविधान विरोधी कोशिश हुई है, क्योंकि संविधान की प्रस्तावना में यह अधिकार निहित है। यह इसे संविधान की मूल संरचना का हिस्सा बनाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे अपने पत्र में सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि कानून मंत्रालय को इस अधिनियम को संशोधित करने के लिए एक संशोधन प्रस्ताव लाना चाहिए कि यह उन धार्मिक संस्थानों पर लागू नहीं होता है जहां मौलिक अधिकार और विश्वास का प्रश्न है। इसलिए मैं इस मामले के बारे में विस्तार से बताने के लिए कानून मंत्री, रविशंकर प्रसाद से बात करूंगा। मैं आपके हस्तक्षेप और कानून और न्याय मंत्रालय को उचित दिशा निर्देशन चाहता हूं, ”