अमेरिकी, भारतीय फिल्में क्यों नहीं प्रदर्शित करते हैं ?

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50वां आईएफएफआई : सुभाष घई, शाजी एन. करुण और डेरेक मैल्कम के साथ संवाद

गोवा : 50वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के दौरान आज पणजी, गोवा में पिछले 50 वर्षों में भारतीय फिल्‍म के विकास पर एक संवाद सत्र का आयोजन किया गया। विख्‍यात फिल्म निर्माताओं सुभाष घई व शाजी एन. करुण और फिल्म समीक्षक डेरेक मैल्कम ने सत्र के दौरान भारतीय सिनेमा, महोत्‍सव की फिल्मों, बजट और ओटीटी प्लेटफार्म के बारे में बातचीत की।

सिनेमा की ताकत के बारे में सुभाष घई ने कहा कि सिनेमा सबसे प्रभावशाली माध्‍यम है और हमारी पौराणिक कथाओं और विरासत का महत्‍वपूर्ण आयाम है। महत्वपूर्ण यह कि हम सिनेमा प्रेमियों के लिए कैसे प्रासंगिक हो सकते है। मणि रत्नम की फिल्‍मों से मैंने तमिल लोगों और इसकी संस्‍कृति को जाना। बंगाली और मलयालम सिनेमा बहुत सुन्‍दर है।

भारत में अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए फिल्म समीक्षक डेरेक मैल्कम ने कहा कि बॉलीवुड ने एक लंबा सफर तय किया है और तकनीकी रूप से बेहतर हुआ है। 70 के दशक में एक क्रिकेटर के रूप में जब मैं पहली बार भारत आया, तो मैंने मुम्‍बई के फिल्म महोत्‍सव में भाग लिया, लेकिन महोत्‍सव में भारतीय फ़िल्में प्रदर्शित नहीं की गई। अमेरिकी समीक्षकों के साथ जब मैंने महोत्‍सव के निदेशक से इस संबंध में बातचीत की, तो उन्होंने कहा कि हम भारतीय फिल्में प्रदर्शित नहीं करते हैं, यदि भारतीय फिल्‍में देखनी है, तो आपको सिनेमाघरों में जाना होगा, लेकिन परिदृश्य अब बदल गया है।

फिल्म निर्माता शाजी एन. करुण ने कहा कि सिनेमा भारत का इतिहास भी है। सिनेमा के कई पहलू हैं। यह आपको मनोरंजन देता है और यह आपको आध्यात्मिक रूप से भी प्रभावित करता है। सत्यजीत रे जैसे फिल्म निर्माताओं ने पैसे के अभाव में भी फिल्में बनाईं, लेकिन बौद्धिक स्‍तर पर ये फिल्‍में उत्‍कृष्‍ट थीं।

फिल्म समीक्षक तरण आदर्श ने सत्र का संचालन किया। सत्र की शुरूआत में ऑल इंडिया रेडियो की महानिदेशक ईरा जोशी ने सुभाष घई, शाजी एन. करुण, डेरेक मैल्कम और तरण आदर्श को सम्‍मानित किया।

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