नई दिल्ली। नई शिक्षा नीति के लागू होने से पहले जारी विवाद के बीच केंद्र सरकार की तरफ से साफतौर पर कह दिया गया है कि इस ड्राफ्ट में विवाद जैसा कोई मसला नहीं है। सरकार किसी पर कुछ भी जबरन नहीं थोपने जा रही है।
सरकार ने दक्षिण भारतीय राज्यों और गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी भाषा को लेकर जारी विवाद के बीच इस बात का ऐलान किया है। सरकार ने कहा है कि नई शिक्षा नीति में हिंदी भाषा वैकल्पिक तौर पर रखी गई है और इस पर किसी तरह का कोई नहीं होना चाहिए। नए ड्राफ्ट में हिंदी अनिवार्य होने वाली शर्त को हटा दिया गया है। तीन जून की सुबह केंद्र सरकार ने शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में बदलाव की घोषणा की है।
वहीं इस मामले पर डीएमके नेता स्टालिन के बाद कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना भी हिंदी को तीसरी भाषा बनाने जाने के विरोध में खड़ी हो गई है। सिद्दारमैया ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में गैर-हिंदी राज्यों पर हिंदी थोपी जा रही है जो कि हमारी भावनाओं के खिलाफ है। मनसे ने अपने एक ट्वीट में कहा, ‘हिंदी हमारी मातृ भाषा नहीं। इसे हम पर थोपे और हमें उकसाए नहीं।