आइजॉल । मिजोरम में जोरामथंगा ने शनिवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। कभी खूंखार उग्रवादी रहे जोरामथंगा तीसरी बार मिजोरम की सत्ता संभाल रहे हैं। हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट ने प्रदेश में दस साल से सत्ता में काबिज कांग्रेस को करारी शिकस्त दी। 74 वर्षीय जोरामथंगा ने हाल ही में अपनी ऑटोबायोग्राफी भी पूरी कर ली है। वह भारतीय सेना के खिलाफ गुरिल्ला वॉर में भी शामिल रह चुके हैं।
मार्च 1966 में लालडेंगा की अगुवाई वाली नेशनल मिज़ो फ्रंट (एनएमएफ) ने भारत से आज़ादी की घोषणा कर दी थी। नेशनल मिज़ो फ्रंट को लगा था कि सरकार राज्य में आए अकाल से ठीक ढंग से निपट नहीं पाई और निष्क्रिय रही है। एनएमएफ की बगावत पूर्वोत्तर में नगा विरोध के बाद दूसरा सबसे बड़ा विद्रोह था। दोनों पक्षों से मानवाधिकारों के उल्लंघन, हिंसा, लोगों के विस्थापन के बावजूद 1986 में सरकार और एमएनएफ के बीच मिजोरम पीस एकॉर्ड पर हस्ताक्षर हुए और इस समस्या का हल निकाल लिया गया।
जोरामथंगा 1966 में एमएनएफ से जुड़े थे। उस दौरान एमएनएफ एक भूमिगत संगठन के तौर पर काम करता था। इस संगठन में रहते हुए 1966 से 1986 तक करीब 20 साल तक वह अंडर ग्राउंड रहे। हाल ही में उन्होंने बताया था कि अपनी किताब में उन्होंने उन 20 सालों की जिंदगी पर डिटेल में लिखा है।
जोरामथंगा ने मणिपुर के डीएम कॉलेज से इंग्लिश में ग्रेजुएशन किया है। जब वह एमएनएफ में शामिल हुए तब वह अपने नतीजों का इंतजार कर रहे थे। जब उन्हें ग्रेजुएट होने की खबर मिली तब वह जंगल में छिपे हुए थे। उन्हें 1969 में एमएनएफ ‘अध्यक्ष’ लालडेंगा का सचिव नियुक्त किया गया था और वह एमएनएफ पार्टी के उपाध्यक्ष भी रहे। वह एमएनएफ नेता लालडेंगा के करीबी सहयोगी रहे हैं। एमएनएफ के झंडे तले निर्दलीय उम्मीदवारों के एक समूह ने पहली बार 1987 में 40 सदस्यीय मिजोरम विधानसभा के लिए चुनाव लड़ा, जिनमें से जोरामथंगा समेत 24 उम्मीदवार निर्वाचित हुए। बाद में कुछ विधायकों द्वारा दलबदल के बाद 1988 में मिजोरम में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।