सपा – बसपा गठबंधन के सामने भाजपा हुई पूरी तरह फेल

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गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में सपा ने बाजी मारी

बहुतयात जनता भाजपा की नीतियों से सख्त नाराज 

सीएम व डिप्टी सीएम दोनों की प्रतिष्ठा को लगा झटका

विपक्ष की राजनीति को लगे पंख ,

सुभाष चौधरी/प्रधान संपादक

लखनऊ । देश के तीन लोक सभा सीटों के उपचुनाव ने भाजपा की जीत के सिलसिले को धूल चटा दिया। इनमे से उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने भाजपा को जोर का झटका धीरे से देकर यह जता दिया कि अब भी बहुतायत जनता भाजपा की नीतियों से सख्त नाराज है। गोरखपुर और फूलपुर की सीटों पर बसपा के सहारे विजय हासिल कर सपा ने आने वाले भविष्य की राजनीति की पृष्ठभूमि तैयार कर दी। ऐसा लगता है कि यह उपचुनाव योगी सरकार के एक साल पूरे होने पर उनके काम काज की समीक्षा है जिसे जनता ने बारीकी से किया और दोनों सीटों पर विपक्ष के साथ जाना स्वीकार कर लिया। विपक्ष ने चुनाव प्रचार के दौरान विकास सम्बंधित मुद्दों पर घेरने की पुरजोर कोशिश की थी जिसमें वे कामयाब रहे।

राज्य के फूलपुर लोक सभा सीट जहां पहले वर्तमान डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य सांसद थे में समाजवादी पार्टी के नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल ने 59,000 वोटों से जीत हासिल कर उनके राजनीतिक कद को काफी छोटा कर दिया। दूसरी तरफ गोरखपुर में सपा के ही परवीन निषाद ने भाजपा के उपेन्द्र दत्त शुक्ला को 21,881 वोटों से पराजित कर भाजपा की परंपरागत सीट पर कब्जा जमा लिया। दोनों ही सीट दो बड़े नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का सावाल थी लेकिन उनकी अतिविश्वास में लबरेज रहने व दिखने की फितरत ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। जाहिर है इस राजनीतिक घटना से योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक भविष्य को लेकर विश्लेषण होने लगे हैं और उनके राजनीतिक विरोधी अपनी आवाज मुखर करेंगे। भाजपा इस बात पर भी विचार कर सकती है कि 2019 तक उन्हें राज्य के सीएम के पद पर बनाये रखा जाए या नहीं।
हालांकि योगी आदित्यनाथ ने अपनी हार पर पर्दा डालने हुए कहा है की पार्टी 2019 के लोक सभा चुनाव के लिए आत्मविश्लेषण करेगी और अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव भी करेगी लेकिन प्रदेश व केंद्र दोनों में सत्ता में बैठी भाजपा के कामकाज से नाराज होने वालों की संख्या को कम करना बेहद कठिन होगा। इसी उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी सरकार ने सर्वाधिक एल पी जी कनेक्शन बाटें हैं और प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत मकान बनाकर देने की योजना भी तैयार की है। किसानों की कर्जमाफी योजना भी लागू की है लेकिन दो लोकसभा सीटों पर भाजपा की करारी हार उनके लिए ऐसा दर्द दे गई जिसका भय उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव की घोषणा तक सताते रहेगा।

इस देश में अब तक का ट्रेंड रहा है कि उपचुनाव में जनता अक्सर सत्ता के साथ जाती है लेकिन अब यह ट्रेंड बदलने लगा है। इसका जीत जागता उदाहरण हाल ही में राजस्थान और मध्य प्रदेश में देखने को मिला था जहां कांग्रेस को विजयी बना कर मतदाताओं ने इस परंपरा से तौबा करने का संकेत दिया था। लगता है भाजपा नेतृत्व ने इस उदाहरण से नही सीखा और उत्तर प्रदेश में अपनी जीत की गारंटी मान ली। संकेत साफ है कि जनता अब सभी राजनीतिक दलों को सत्ता में आने बाद सोते हुए नहीं बल्कि जागते हुए देखना चाहती है। उन्हें काम चाहिए, लॉलीपॉप नहीं।

बिहार के अररिया लोक सभा सीट पर भी भाजपा जद यू गठबंधन को झटका लगा। यहां राजद के प्रत्याशी ने जीत हासिल की । मजेदार बात यह है कि राजनीतिक विश्लेषक लालू यादव को भ्रष्टाचार के मामले में सजा मिलने के बाद राजनीतिक रूप से कमजोर मानने लगे थे लेकिन जनता ने इसके उलट फैसला दिया। नीतीश कुमार और सुशील मोदी की जोड़ी के खिलाफ आये इस फैसले की हनक आगे भी देखने को मिल सकती है।

अब देश की दिलचस्पी इस बात में होगी कि क्या अगले एक साल में योगी सरकार अपनी विकास नितियो से जनता को लुभाने में सफल होगी ? अगर ऐसा हो पाया तो 2019 के महासंग्राम में उबरना आसान होगा अन्यथा केंद्र में वापस होना टेढी खीर होगी।

उल्लेखनीय है कि गोरखपुर सीट उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और फूलपूर सीट उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के सांसद पद से इस्तीफा देने के बाद खाली हुई थी। दोनों पर सपा को कामयाबी मिलने से विपक्ष को इठलाने की बहुत दिनों बाद एक मजबूत वजह मिल गई है। यह भी देखना कौतूहल का विषय होगा कि बसपा और सपा का यह मिलन किस हद तक जायेग। इसका राष्ट्रीय राजनीति में क्या स्वरूप होगा ? क्या राज्य व राष्ट्रीय राजनीति का दोनों के बीच बंटवारा होगा या फिर सिरफुटौव्वल शुरू होगा।

साथ ही पिछले विधान सभा चुनाव में सपा व कांग्रेस साथ थी और बसपा के लिए जगह नही होने की बात की थी लेकिन अब सपा व बसपा साथ ही ऐसे में कांग्रेस के लिए इनके दिलों में कितनी जगह होगी यह भी महत्वपूर्ण है।

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