क्या है उमा भारती की तीन साल चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा का तिलिस्म ?

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मध्य प्रदेश में सत्ता के करीब जाने की छटपटाहट 

विरोधी  भी मानते हैं , उमा का बयान पार्टी पर दबाव डालने वाला 

सुभाष चौधरी /प्रधान संपादक 

झांसी । केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा की वरिष्ठ नेता उमा भारती ने कहा है कि वह तीन साल तक कोई भी चुनाव नहीं लड़ेंगी। उन्होंने स्पष्ट किया है कि लोक सभा और विधानसभा दोनों में से कोई भी चुनाव नहीं लड़ेंगी। तर्क यह है कि उनका स्वास्थ्य अब उनका साथ नहीं दे रहा है और उम्र भी अधिक हो चली है। उनके घुटने में अक्सर दर्द रहता है और अधिक भागदौड़ सम्भव नहीं है। उन्होंने कहा है कि उनके डॉक्टर ने उन्हें तीन साल तक भागदौड़ नहीं करने की सलाह दी है। लेकिन उनका कहना है कि चुनाव तो नहीं लड़ेंगी अलबत्ता पार्टी के लिए सक्रिय रूप में काम करती रहेंगी।उनकी इस घोषणा से उतर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों ही राज्यों के भाजपा नेताओं ने उनके बयान का विश्लेषण करना शुरू कर दिया है। कहना न होगा कि पार्टी में उनके विरोधियों की बांछें भी खिलने लगीं है।

केंद्रीय मंत्री उमा भारती की राजनीतिक पटाक्षेप की इस अप्रत्याशित घोषणा से भाजपा के राजनीतिक हलकों में कुछ को शुकुन तो कुछ को अपना राजनीतिक भविष्य निखरता दिखने लगा है। एक तरफ उत्तर प्रदेश के झांसी लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के संभावित उम्मीदवारों को अपनी सम्भावना दिखने लगी है जबकि मौरानीपुर, गरौठा, बदिना और झांसी विधानसभा क्षेत्र में भी आने वाले समय में उमा भारती की सहमति से भाजपा के उम्मीदवार तय नहीं किये जाने के प्रबल आसार बनने लगे हैं । स्थानीय राजनीतिक विश्लेषक मानते है कि उमा भारती के झांसी की राजनीति से दूर होने से यहां की राजनीति में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं क्योंकि उनके इस बयान से भाजपा के पुराने समर्थकों व वोटरों में भी हलचल तेज है।

गौरतलब है कि केवल झांसी ही नहीं बल्कि यूपी की राजनीति में भी जिन दलित नेताओं की अहमियत उमा भारती के आने से कम हुयी थी अब उन्हें भी भाजपा में नई भूमिका मिलने के आसार हैं। कहा यह जा रहा है कि उमा भारती की छाया से भाजपा के कई दलित नेता अलग होने को छटपटा रहे थे लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में शामिल होने के बाद किसी की हिम्मत इनके खिलाफ बोलने की नहीं होती थी। इनका असर लोक सभा चुनाव 2014 के दौरान ही नहीं बल्कि यूपी विधानसभा में झांसी लोकसभा क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों के भाजपा उम्मीदवारों के चयन में भी दिखा था। कहा जाता है कि कई ऐसे प्रबल दावेदारों को अपनी ताकत का इस्तेमाल कर इन्होंने ठिकाने लगा दिया था जो वहां वर्षों से भाजपा का झंडा ढो रहे थे और टिकट की प्रबल दावेदारी रखते थे। लेकिन उमा भारती ने ऐसे लोगों को टिकट दिलवाई जो चर्चा में भी नहीं थे। कहा जाता है कि यहां भाजपा की जमीन किसी और ने तैयार की और फसल काट ली उमा भारती ने । कुछ स्थानीय नेताओं को तो विधासभा चुनाव में पार्टी टिकट दिलवाने का आश्वासन दिया लेकिन उस वक्त भी उन जमीनी लोगों को छलावा ही हाथ लगी।
हालाकिं मोदी लहर के कारण क्षेत्र के स्थानीय नेताओं के भारी विरोध के बीच सभी सीटों पर भाजपा को जीत मिली लेकिन विरोध के गुबार अब भी भरे हुए हैं। संभव है इस बात की भनक उमा भारती को पूरी तरह है इसलिए ही लोकसभा चुनाव से ठीक एक वर्ष पूर्व इस प्रकार के बयान देकर पार्टी और अपने विरोधी दोनों को द्विअर्थी संदेश देना चाहते हैं।
झांसी में इनके धुर विरोधी बने एक भाजपा नेता का कहना है कि इस प्रकार के बयान देकर सुश्री भारती पार्टी संगठन पर दबाव बनाना चाहती है। यह उनकी सोची समझी रणनीति का हिस्सा है जिससे वे अपने प्रति स्थानीय लोगों के गुस्से को हल्का करना चाहती है जबकि पार्टी पर दबाव बना कर एक तरफ उत्तर प्रदेश की सत्ता में दखल चाहती है जबकि दूसरी तरफ आने वाले समय में मध्य प्रदेश की राजनीति में भी हिस्सा चाहती है। मध्य प्रदेश में जिन हालात में इन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी यह जगजाहिर है ओर वह टीस इनके हृदय में बारम्बार उठती है जिसका संकेत इनके बयानों से मिलता रहता है और हाल का यह बयान भी उसी का दूसरा रूप है।

कहा यह जा रहा है कि पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले मंत्री मंडल फेरबदल में इनसे गंगा स्वच्छता योजना का काम छीनने से इन्हें अपना राजनीतिक भविष्य अंधकारमय लगने लगा है। इस कदम से यह संदेश स्पस्ट गया कि इनके काम से मोदी जी खुश नही हैं और आगे आने वाले समय में जिस प्रकार पुराने व वरिष्ठ नेताओं को उम्र का हवाला देकर निष्क्रियता की दुनिया में धकेल दिया गया उसी तरह इन्हें भी अगले लोक सभा चुनाव में पार्टी टिकट से हाथ धोना पड़ सकता है और इनकी भूमिका भी सीमित या लगभग मृत प्रायः हो सकती है। भाजपा की आंतरिक राजनीति के जानकार मानते है कि उमा भारती इस भय से ग्रसित होकर इस प्रकार का बयान दे रही हैं । उनका मकसद राजनीति से दूर जाना नहीं बल्कि मध्य प्रदेश की सत्ता के बेहद करीब जाना है।
गौरतलब है कि आने वाले समय में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है और अपने तीन साल तक चुनाव नहीं लड़ने के ऐलान के माध्यम से मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव प्रचार में भागीदारी सुनिश्चित करना चाहती है। लेकिन मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान किसी भी कीमत पर उमा भारती की एंट्री नहीं होने देंगे। दूसरी तरफ शिवराज सिंह आर एस एस का भी विश्वास पात्र है इसलिए वहां उमा भारती के लिए कोई जगह नही। है। भाजपा की मध्य प्रदेश यूनिट शिवराज सिंह के साथ है इसलिए इनके लिए वहां जगह बनना नामुमकिन सा लगता है।
अपने पहले के बयान को तोड़मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगा कर उन्होंने अब केवल तीन साल के लिए चुनाव से बनवास लेने की बात की है और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से इस संबंध में हुई बातचीत का हवाला दिया है। अब उनका यह कहना कि श्री शाह ने उन्हें 75 साल की उम्र तक राजनीति में सक्रिय रहने की सलाह दी है अपनी राजनीतिक अहमियत दिखाने की कोशिश लगती है। उनका यह कहना कि तीन साल के स्वघोषित बनवास के बाद 15 साल और राजनीति कर सकती हैं जिसमें कम से कम तीन चुनाव लड़ने की संभावना है , अपने आप में उनके बयान के अंदर के आशय को स्पष्ट करता है।इसलिए उमा भारती की अनुपस्थिति में लाभ मिलने की उम्मीद लगाए भाजपाइयों को अभी और इंतजार करना पड़ेग।

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