नगर निगम गुरूग्राम द्वारा उस्ताद शकील अहमद की महफिल-ए-गजल का हुआ आयोजन

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–    कला और कलाकार को जाति, मजहब और सरहद की बेडिय़ों में बांध पाना मुश्किल-संजय
     भसीन
–    शकील अहमद ने गजलों के माध्यम से सबका मालिक एक का दिया संदेश
–    सांस्कृतिक आयोजन के लिए नगर निगम आयुक्त वी. उमाशंकर का किया धन्यवाद
–    शनिवार, 13 जनवरी को सैक्टर-4 के बाल भवन में सत्यम उपाध्याय की लाईव कंसर्ट

नगर निगम गुरूग्राम द्वारा उस्ताद शकील अहमद की महफिल-ए-गजल का हुआ आयोजन 2गुरूग्राम, 7 जनवरी। कला और कलाकार किसी जाति, धर्म, मजहब, संप्रदाय तथा सरहदों के बंधन में नहीं बंध सकते। चाहे कोई भी मौलवी कलाकार के खिलाफ कितने ही फतवे जारी कर ले, लेकिन कलाकार को जाति और धर्म की बेडिय़ों में बांध पाना मुश्किल है। उक्त विचार हरियाणा कला परिषद के अतिरिक्त मुख्य सलाहकार एवं मल्टी आर्ट कल्चरल सैंटर कुरूक्षेत्र के प्रभारी डा. संजय भसीन ने व्यक्त किए। वे नगर निगम गुरूग्राम द्वारा सैक्टर-4 स्थित बाल भवन में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय गजल गायक उस्ताद शकील अहमद की महफिल-ए-गजल में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। शनिवार, 13 जनवरी को यंगैस्ट प्रोफेशनल सिंगर अवार्डी सत्यम उपाध्याय की लाईव कंसर्ट का आयोजन किया जाएगा। गुरूग्राम के रहने वाले सत्यम मात्र 13 वर्ष की उम्र में कई अवार्डों से नवाजे जा चुके हैं तथा कई मंचों पर अपना लाईव कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं।

डा. भसीन ने नगर निगम गुरूग्राम द्वारा प्रत्येक सप्ताह आयोजित की जा रही सांस्कृतिक संध्याओं के लिए नगर निगम आयुक्त वी. उमाशंकर एवं उनकी टीम की सराहना की। उन्होंने कहा कि हरियाणा का यह पहला ऐसा नगर निगम है, जो कला और संस्कृति को बढ़ाने, कलाकारों को बेहतरीन मंच उपलब्ध करवाने तथा आमजन को स्वच्छ मनोरंजन नि:शुल्क उपलब्ध करवाने का सराहनीय कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि नाट्यशास्त्र के अनुसार जिस शहर में कला और संस्कृति को बढ़ावा मिलता है, वहां पर आपराधिक ग्राफ में स्वत: ही गिरावट आती है। उन्होंने विशेषकर युवाओं से आह्वान किया कि वे भले ही कितने भी पाश्चात्य संस्कृति के साथ जुड़ें, लेकिन भारतीय संस्कृति और कला रूपी अपनी जड़ों को ना छोड़ें क्योंकि जो पेड़ अपनी जड़ों को छोड़ देते हैं, वे सूख जाते हैं। उन्होंने कहा कि नगर निगम गुरूग्राम द्वारा आयोजित किए जा रहे सांस्कृतिक कार्यक्रमों से आज की पीढ़ी को अपनी कला और संस्कृति से जुडऩे और रूबरू होने का मौका मिलता है। उन्होंने उस्ताद शकील अहमद द्वारा राधा-कृष्ण, गंगा, जमुना और अल्ला को मिलाकर पेश की गई गजल की सराहना की और कहा कि सब धर्मों की मंजिल एक ही है और सबका मालिक एक की बात आज इन्होंने अपनी गजल के माध्यम से पेश की है।

    महफिल-ए-गजल में उस्ताद शकील अहमद ने अपनी नई एलबम ‘देखो तो’ से कई मशहूर गजलें पेश की, जिनमें मुख्य रूप से ‘जरा सा आप से बाहर निकलकर देखो तो’ पर श्रोताओं की खूब तालियां एवं वाहवाही लूटी। इसके साथ ही उन्होंने फिल्म सरफरोश की मशहूर गजल ‘होश वालों को खबर क्या, जिन्दगी क्या चीज है’ सहित गई मशहूर गजलें पेश की। उनकी नई एलबम देखो तो में 8 गजलों का संग्रह है, जिनमें जैसा मेरा ख्याल, मेरे मिजाज की, जरा सा आप से बाहर निकलकर देखो तो, मोहब्बत को, मैं बेहुनार हूं, गजल नजर-ए-शमात, तुम्हारे साथ भी तन्हा हूं तथा खुशियों के लिए अफशुरदा हैं शामिल हैं।

श्रीमती मृदुला टंडन के प्रोडक्शन में इन गजलों को फरहात शाजाद द्वारा लिखा गया है, स्वर उस्ताद शकील अहमद का है तथा म्यूजिक उस्ताद अलीम खान द्वारा दिया गया है। कार्यक्रम में उस्ताद अलीम खान का वायलन वादन सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा, जबकि मंच का सफल संचालन शिक्षाविद अनिल जेटली द्वारा किया गया।

    इस मौके पर दिल्ली से विशेष रूप से पधारी गजल पे्रमी श्रीमती वंदना यादव व श्रीमती मृदुला टंडन, प्रसिद्ध कवि लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, कवयित्री श्रीमती ममता किरण, फिल्म एवं टीवी कलाकार मोहनकांत, गायक अनिल संदूजा, रंगकर्मी हर्षवर्धन कुमार व नवीन कपूर, मैक फाऊंडेशन से हरीश आहुजा सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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