न्‍यायालयों को सुनवाई टालने की आदत से परहेज करना चाहिए : राष्‍ट्रपति

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रामनाथ कोविंद ने आम आदमी की भाषा में न्‍यायिक कार्य किये जाने पर बल दिया

इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के आवासीय और प्रशिक्षण परिसर ‘न्‍यायग्राम’ की रखी आधारशिला

न्‍यायालयों को सुनवाई टालने की आदत से परहेज करना चाहिए : राष्‍ट्रपति 2इलाहाबाद : राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आम आदमी की भाषा में न्‍यायिक कार्य किये जाने पर बल दिया है। आज इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के आवासीय और प्रशिक्षण परिसर ‘न्‍यायग्राम’ की आधारशिला रखने के बाद उन्‍होंने कहा कि गरीब लोगों को न्‍याय उपलब्‍ध कराने के लिए न्‍यायालयों को सुनवाई टालने की आदत से परहेज करना चाहिए।

उन्‍होंने कहा कि न्‍यायपालिका की स्‍वतंत्रता हमारे लोकतंत्र का आधार है। उन्‍होंने कहा कि समय से सभी को न्‍याय मिले, न्‍याय व्‍यवसथा कम खर्चीली हो और सामान्‍य आदमी की समझ में आने वाली भाषा में न्‍याय देने की व्‍यवस्‍था की जानी चाहिए। उन्‍होंने खासकर महिलाओं तथा कमजोर वर्ग के लोगों को न्‍याय दिलाने की आवश्‍यकता पर बल दिया। उन्‍होंने कहा कि यह हम सबकी जिम्‍मेदारी है। श्री कोविंद ने कहा कि न्‍याय मिलने में देर होना भी एक तरह का अन्‍याय है। गरीबों के लिए न्‍याय प्रक्रिया में होने वाले विलंब का बोझ असहनीय होता है।

राष्‍ट्रपति ने कहा कि न्‍यायिक ढांचे को मजबूत बनाने की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने उम्‍मीद ज़ाहिर की कि न्‍यायग्राम परियोजना इलाहबाद उच्‍च न्‍यायालय की जरूरतें पूरी करने में मील का पत्‍थर साबित होगी।

 

भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द जी का इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ‘न्याय ग्राम परियोजना’ के शिलान्यास समारोह के अवसर पर सम्बोधन

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का लगभग एक सौ पचास वर्षों का बहुत ही गौरवशाली इतिहास रहा है। इस दौरान, भारत की आजादी की लड़ाई, और उसके बाद भारत के लोकतन्त्र के विकास में इस न्यायालय से जुड़े लोगों ने अपना अमूल्य योगदान दिया है। यहां की शानदार परंपरा के निर्माण में ‘बार और बेंच’ दोनों ने अहम भूमिका निभाई है। इस उच्च न्यायालय की एक गौरवमयी परंपरा को निरंतर आगे बढ़ाने के लिए मैं ‘बार और बेंच’ दोनों के प्रतिनिधियों को हार्दिक बधाई देता हूं।
मैं इस ‘न्याय ग्राम परियोजना’ के समयबद्ध और प्रभावी रूप से सम्पन्न होने की शुभकामनाएं देता हूं और आशा करता हूं कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय से जुड़े सभी लोग इस न्यायालय के गौरव को बढ़ाते रहेंगे।
इस न्यायालय से जुड़े महामना मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू, सर तेज बहादुर सप्रू और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे देश-प्रेमी विधिवेत्ताओं की एक लंबी सूची है जिनमे से मैंने कुछ ही के नाम लिए हैं। ‘चौरी-चौरा’ और ‘मेरठ कोन्स्पिरेसी’ जैसे मामलों में इस न्यायालय ने स्वतन्त्रता या लिबर्टी की परिभाषा देते हुए ऐतिहासिक निर्णय दिए। इसी उच्च न्यायालय ने सन 1921 में भारत की पहली महिला वकील सुश्री कोर्नीलिया सोराबजी को enroll करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था। उन्होने कई उच्च न्यायालयों में आवेदन किया था परंतु उन्हे enrollment नहीं मिला था। अब तक इस उच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों ने उच्चतम न्यायालय के मुख्य-न्यायाधीश के पद को सुशोभित किया है।
न्याय-पालिका की स्वतन्त्रता हमारे लोकतन्त्र की आधारशिला है। संविधान के अनुरूप, अपने स्वतंत्र और भय-मुक्त योगदान द्वारा हमारी न्याय-पालिका ने पूरे विश्व में एक लोकतन्त्र के रूप में भारत की साख बढ़ाई है। आज न्याय-पालिका हमारे देश की सबसे सम्मानित संस्थाओं में से एक है।
अपने सार्वजनिक जीवन में मुझे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य के तीनों अंगो — विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका — से जुड़कर कार्य करने का अवसर मिला है। न्याय व्यवस्था से जुड़कर मैंने गरीब लोगों के न्याय पाने के संघर्ष को नजदीक से देखा है। न्याय पालिका ही सबका सहारा होती है। फिर भी देश का सामान्य नागरिक भरसक न्यायालय की चौखट खटखटाने से बचना चाहता है। इस स्थिति को बदलना जरूरी है। समय से सभी को न्याय मिले, न्याय व्यवस्था कम खर्चीली हो, सामान्य आदमी की भाषा समझ में निर्णय देने की व्यवस्था हो, और खासकर महिलाओं तथा कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय मिले, यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है।
न्याय मिलने में देर होना भी एक तरह का अन्याय है। गरीबों के लिए न्याय-प्रक्रिया में होने वाले विलंब का बोझ असहनीय होता है। इस अन्याय को दूर करने के लिए हमें adjournment से परहेज करना चाहिए। Adjournment तभी हो जब और कोई चारा न हो।
पूरे देश के न्यायालयों में लगभग तीन करोड़ मामले pending हैं। इनमे से लगभग चालीस लाख मामले उच्च-न्यायालयों में pending हैं। और इनमे से भी छ लाख मामले ऐसे हैं जो दस साल से भी अधिक पुराने हैं। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपनी निचली अदालतों में लंबित लगभग साठ लाख विवादों को अगले कुछ वर्षों में शून्य के स्तर पर लाने का लक्ष्य रखा है। इस पहल के लिए मैं मुख्य-न्यायाधीश और न्यायालय के सभी संबद्ध लोगों को साधुवाद देता हूं।
मुझे यह जानकारी आप सबके साथ साझा करने में खुशी हो रही है कि अन्य कई उच्च न्यायालय भी लंबित मामलों का शीघ्रता से निपटारे करने के लिए कदम उठा रहे हैं। एक राज्य में, निचली अदालतों में 30 जून 2017 तक, पांच साल से भी अधिक पुराने, लगभग छिहत्तर हजार मामले लंबित थे। वहां 30 जून 2018 तक इस संख्या को आधा कर देने का लक्ष्य तय किया गया है। एक अन्य राज्य में निचली अदालतों में दस साल से अधिक समय से लंबित मामलों को 30 अप्रैल 2018 तक, तथा पांच से दस साल की अवधि वाले मामलों को 30 सितंबर 2018 तक निबटाने के लक्ष्य रखे गए हैं। मुझे आशा है कि उत्तर प्रदेश में भी नियत समायावधि में ऐसे लक्ष्य हासिल कर लिए जाएंगे।
आज अधिकांश मामलों में यह स्थिति है कि जो गरीब मुवक्किल पैसा खर्च करता है और जिसके लिए पूरी प्रक्रिया सबसे अधिक महत्वपूर्ण है वही इस प्रक्रिया के बारे में कुछ भी नहीं जान पाता है। वह पूरी तरह से अपने वकील या अन्य लोगों पर आश्रित रहता है। यदि स्थानीय भाषा में बहस करने का चलन ज़ोर पकड़े तो सामान्य नागरिक अपने मामले की प्रगति को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे। साथ ही निर्णयों और आदेशों की सत्य प्रतिलिपि का स्थानीय भाषा में अनुवाद उपलब्ध कराने की व्यवस्था होनी चाहिए। मुझे आप सबको यह बताने में खुशी हो रही है कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने निर्णयों और आदेशों के हिन्दी अनुवाद उपलब्ध कराने का प्रावधान कर दिया है। और अन्य कई उच्च न्यायालय इस दिशा में आगे बढ़ रहे है।
एक अधिवक्ता के रूप में मेरा अनुभव रहा है कि यदि वैकल्पिक न्याय प्रणाली को मजबूत बनाया जाए तो सामान्य नागरिकों को बहुत लाभ पहुंचेगा। मुझे प्रसन्नता है कि यहां मुख्य-न्यायाधीश महोदय ने मध्यस्थता को प्रोत्साहित करने के लिए कदम उठाए हैं।
हमारी न्याय-पालिका के सामने बहुत सी चुनौतियां हैं। Information और Communication Technology के उपयोग से उन चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी। मुझे यह जानकर काफी खुशी हुई है कि कागज रहित न्यायालयों को स्थापित करने की दिशा में इस उच्च न्यायालय द्वारा यहां दो E-courts की स्थापना की गई है।
Judicial Infrastructure को मजबूत बनाना बहुत जरूरी है। नए कोर्ट कॉम्प्लेक्स, आवासीय एवं अन्य सुविधाएं न्याय-पालिका से जुड़े लोगों के बेहतर काम करने में सहायक होंगी। मैं आशा करता हूं कि यह ‘न्याय ग्राम परियोजना’ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की आवश्यकताओं को पूरा करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगी।
निचली अदालतों की कार्य-क्षमता और गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए न्यायिक-अधिकारियों का प्रशिक्षण बहुत जरूरी है। मुझे बताया गया है कि ‘न्याय ग्राम’ परिसर में एक न्यायिक अकादमी की स्थापना करने की योजना है। मुझे विश्वास है कि यह न्यायिक अकादमी उत्तर प्रदेश की Lower Judiciary की क्षमता को बढ़ाने में अपना बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान देगी।
संयोग से आज ‘विजय दिवस’ भी है। आज ही के दिन सन 1971 में भारत ने अपने इतिहास की सबसे शानदार सामरिक विजय हासिल की थी। ढाका में पाकिस्तान के Generals ने लगभग 90 हज़ार फौजियों के साथ भारतीय सेना के सम्मुख आत्म-समर्पण किया था। मैं आज के इस शिलान्यास को अपने उन बहादुर भारतीय सैनिकों के सम्मान में समर्पित करता हूं।

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