आलोक कुमार
स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष को परिणति तक पहुंचने के ऐन पहले पांच सौ से ज्यादा देसी रियासतों में बंटे भारत वर्ष को एकसूत्र में पिरोकर भारत संघ में शामिल करना एक असंभव काम था। इसके लिए रियासतों को राजी करना, फिर आजादी के साथ ही मिले विभाजन के बेहद खुरदरे जख्म पर मखमली मरहम लगाना, ये सारे काम सबल राष्ट्र की मजबूत नींव के लिए जरुरी था। इन शुरुआती दुरुह कामों को पूरा करने की पूरी जिम्मेदारी सरदार बल्लभ भाई झवेरी भाई पटेल ने अपने कंधे पर ली। उनके अथक औऱ अहिर्निश मेहनत का नतीजा है कि आज भारतीय गणतंत्र की दुनिया भर में तूती बोल रही है। यह हमारा सौभाग्य था कि सरदार बल्लभभाई पटेल को भारत का पहला उप प्रधानमंत्री बनाया गया। गृह मंत्रालय का प्रभार उनके पास रहा। फिर उन्होंने “साम, दाम, दंड, भेद” का जबरदस्त इस्तेमाल किया। लौहपुरुष के तौर पर बनी उनकी कूटनीति छवि पीढियों के प्रेरक बनी रहेंगी । अपने इस महानायक की जयंती 31 अक्टूबर को राष्ट्र ने आजादी के सडसठ साल बाद 2014 में “राष्ट्रीय एकता दिवस” के तौर पर मनाने की शुरुआत की है। राष्ट्रीय एकता में एतिहासिक योगदान करने वाले नायक सरदार पटेल की नर्मदा डैम पर 182 मीटर ऊंची विशालकाय प्रतिमा प्रतिष्ठापित की गई है। इसके लिए देशभर से लोहे मंगवाकर एकता का अतुलनीय मिसाल पेश की गई है।
बीते तीन वर्षों की तरह ही इस बार भी 31 अक्टूबर को केंद्र सरकार का “राष्ट्रीय एकता दिवस” पर महानायक सरदार बल्लभ भाई पटेल के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए विशेष आयोजनों पर जोर है। ताकि भावी पीढी को राष्ट्रनायक के कृतत्व से परिचित कराया जा सके। भारत सरकार की ओर से बड़े पैमाने पर आयोजित कार्यक्रमों के जरिए स्वतंत्रता संग्राम में सरदार पटेल के अप्रतीम योगदान और आजादी के बाद राष्ट्र निर्माण के उनके बेजोड़ काम को याद किया जाता है।
राष्ट्रीय एकता दिवस के कार्यक्रमों की सफलता के लिए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा है। इसमें राष्ट्रीय एकता के मौके पर “एकता के संकल्प” को सुदृढ करने वाले कार्यक्रमों की सफलता में विशेष योगदान करने का आग्रह किया गया है। राष्ट्रीय एकता के संकल्प को सुदृढ करने वाले कार्यक्रम की एतिहासिक सफलता के लिए विभिन्न शासकीय मुख्यालयों पर अर्द्धसैनिक बलों का मार्च पास्ट, एकता दौड़, पोस्टर व क्विज प्रतियोगिताएं, सरदार पटेल के योगदान के रेखांकित करने वाली प्रदर्शनियों के आयोजन किए जा रहे है। स्कूल-कालेजों में इस अवसर पर विशेष आयोजनों को बढावा दिया जा रहा है।
स्वंय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राष्ट्रीय एकता दिवस की सफलता के प्रति विशेष आग्रह है। इस बार 31 अक्टूबर को “ऱाष्ट्रीय एकता दिवस” के राष्ट्रव्यापी कार्यक्रमों की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में संसद मार्ग स्थित सरदार पटेल चौक पर सरदार की आदमकद प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ शुरू होगी। इसके साथ ही नई दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में एकता के लिए यूनिटी रन को प्रधानमंत्री हरी झंडा दिखाएंगे। इसमें लगभग 15,000 छात्र, पूर्व सैनिक, प्रसिद्ध एथलीट और एनएसएस स्वयंसेवकों को भाग लेना है। इस फ्लैग-ऑफ़ में एमएसपी वी सिंधु (बैडमिंटन), एमएस मिताली राज (क्रिकेट) और सरदार सिंह (हॉकी) सहित खेलकूद के कई शीर्षस्थ खिलाडी मौजूद रहेंगे ।
इसके अलावा रेलवे, संस्कृति, पर्यटन, सूचना और प्रसारण और आवास और शहरी मामलों के मंत्रालयों समेत केंद्र सरकार के अन्य प्रतिष्ठानों को एकजुटता के संदेश को फैलाने के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करने जा रही हैं। कनॉट प्लेस के केंद्रीय पार्क और चाणक्यपुरी में शांति पथ पर रोज गार्डन में सरदार पटेल क याद में प्रदर्शनी का आयोजन है। केंद्र सरकार ने ऱाष्ट्रीय एकता दिवस को एक त्योहार का रंग देने की तैयारी कर रखी है। रेडियो व दूरदर्शन पर सरदार पटेल पर आधारित कार्यक्रमों का बोलबाला रहेगा। सरदार पटेल पर छह पुस्तकों के नए संस्करण जारी किए जाएंगे और वे ई-पुस्तक के रूप में उपलब्ध होंगे।
महानायक सरदार पटेल के योगदान के संदर्भ में उल्लेखनीय है कि वह आजादी का संक्रमण काल में ही राष्ट्र निर्माण के प्रति सक्रिय हो गए थे। रियासतों में बिखरे पडे राष्ट्र को समेटने के लिए सरदार पटेल ने अथक काम किया। उन्होंने भारत के तत्कालीन गृह मंत्री के तौर पर उन स्वंय संप्रभुता वाले रियासतों का भारतीय संघ में विलय आरंभ कर दिया जो अलग पहचान रखती थीं। उनका अलग झंडा और शासक था। देसी रियासतों को एक करने का असंभव प्रतीत होने वाले कार्य को उन्होंने विस्मित करने के अंदाज में पूरा किया। इससे दुनिया ने भारत की कूटनीति का लोहा मान लिया। बल्लभ भाई पटेल ने 1928 में बारडोली में अंग्रेजों के खिलाफ सफल किसान आंदोलन किया था। तब वहां की महिलाओं ने उनको सरदार की उपाधि दी थी। बाद में अपनी शासकीय क्षमता और अतुल्य कूटनीतिक क्षमता की वजह से सरदार पटेल को “लौहपुरुष” कहा जाने लगा। लौहपुरुष पटेल ने राष्ट्र निर्माण के लिए चाणक्य सा कौशल और अप्रतीम बुद्धिमत्ता का प्रयोग किया।
उन्होने भावी भारत के लिए 5 जुलाई 1947 को रियासतों के प्रति रीति नीति को स्पष्ट करते हुए कहा, “रियासतों को तीन विषयों- सुरक्षा, विदेश तथा संचार व्यवस्था के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जाएगा।“ यह एलान काम कर गया। इसके साथ ही देसी रियासतों के संघ में बिखराव की प्रक्रिया शुरु हो गई। धीरे धीरे बहुत सी देसी रियासतों के शासक भोपाल के नवाब से अलग हो गए। इससे नवस्थापित रियासती विभाग की योजना को सफलता का आधार मिला। यह इतिहास में भारतीय कूटनीति के लिए गर्व का हिस्सा है कि अहिर्निश मेहनत करते सरदार पटेल ज्यादातर देसी राजाओं को समझाने में सफल रहे कि उन्हें स्वायत्तता देना संभव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरुप तीन को छोड़कर सभी राजवाड़ों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
आजादी के दिन 15 अगस्त 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष रियासतें भारत संघ में शामिल हो गईं। जूनागढ़ के नवाब के खिलाफ जबरदस्त विरोध हुआ, तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया। सरदार पटेल की सदारत में जूनागढ़ का भारत में विलय हो गया। कूटनीति की असली परीक्षा हैदराबाद के निजाम ने ली। जब उसने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करवा लिया। 31 अक्टूबर 1875 को नडियाद, गुजरात के एक लेवा कृषक परिवार में हुआ था। छोटे से गांव में पैदा हुए सरदार बल्लभ भाई पटेल ने क़डी करके मेहनत से इतना पैसा बचाया कि वह उच्च कानूनी शिक्षा के लिए इंग्लैंड जा पाएं। पढाई पूरी कर वापस अहमदाबाद आ गए और अपनी कानूनी क्षमता से आम लोगों को न्याय दिलाने के लिए सक्रिय हो गए। फिर महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।
महात्मा गांधी ने अपने सफल सिपाही सरदार पटेल को लिखा, “रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।“ निस्संदेह एक रक्तहीन क्रांति से 562 रियासतों का एकीकरण दुनिया के लिए आश्चर्य का विषय है। आजादी के बाद बनी सरकार में विदेश विभाग प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु के पास था। उप प्रधानमंत्री के नाते सरदार पटेल कैबिनेट की विदेश विभाग की समिति में जाते थे। उन बैठकों में पंडित नेहरु से उनका खटपट होना बताता है कि उनकी दूरदर्शिता का लाभ लिया गया होता तो वतर्मान में मौजूद अनेक समस्याओं का जन्म नहीं होता। मसलन 1950 में पटेल ने पंडित नेहरु को खत लिखकर चीन तथा उसकी तिब्बत नीति के प्रति आगाह किया था। चीन के कपटपूर्ण और विश्वासघाती रवैए का जिक्र किया था। तिब्बत पर चीन के कब्जे को लेकर कहा था कि इससे नई समस्याएं जन्म लेंगी। 1950 में नेपाल के संदर्भ में सरदार पटेल के लिखे पत्र से भी पंडित नेहरु सहमत नहीं थे। इसी तरह गोवा को आजादी दिलाने में 1950 में ही योगदान के प्रति पटेल ने उत्सुकता दिखाई थी। गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में दो घंटे तक चली कैबिनेट बैठक में सरदार पटेल ने कहा, “क्या हम गोवा जाएंगे? दो घंटे की बात है।“ उससे नेहरु बड़े नाराज हुए थे।
प्रशासनिक कौशल का परिचय देते हुए सरदार पटेल ने नौकरशाही के सुधार पर काम किया। अंग्रेजों को सेवा देने की वजह से राजभक्ति के लिए बनी भारतीय नागरिक सेवा (आईसीएस) का भारतीयकरण किया। राजभक्ति की जगह देशभक्ति को तव्वजो देते हुए भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) बनाया। राष्ट्र निर्माण के वक्त वह पाकिस्तान क छद्म व चालाक चालों के प्रति सतर्क रहे। सरदार पटेल उन हस्तियों में से हैं जिन्होंने भारतीय गणराज्य को एक शानदार इतिहास दिया है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि “राष्ट्रीय एकता दिवस” जैसे के सफल आयोजनों के जरिए लोग प्रेरित होंगे। भावी पीढ़ियां भारत को फिर से ज्ञान, कौशल व प्रतिभा से विश्व विजयी बनाने में लगी रहेंगी।